देश में महज 4 हजार मनोचिकित्सक ! विशेषज्ञों ने कहा- जरूरतमंद लोगों तक पहुंचें

By अनुराग गुप्ता | Jun 15, 2020

मुंबई। एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत की खबर सुनकर हर कोई स्तब्ध हैं। इस खबर के सामने आने के बाद मनोचिकित्सक तरह-तरह की बाते कर रहे हैं। बता दें कि मुंबई स्थित आवास में सुशांत सिंह राजपूत ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। जिसके बाद अवसाद जैसे विषय पर बहुतों ने प्रतिक्रिया दर्ज कराई। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत के मानसिक स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े चितांजनक है। अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के बारे में लिखा गया है।

300 से अधिक लोग रोजाना करते हैं आत्महत्या ! 

एनसीआरबी की रिपोर्ट में कहा गया है कि 300 से अधिक भारतीय प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं। वहीं राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 में सामने आया कि 15 फीसदी भारतीय मानसिक स्वास्थ्य परेशानियों से जूझ रहे हैं। अगर हम इसे इंसानों के हिसाब से देखें तो हर 20 में से एक व्यक्ति या तो किसी मानसिक समस्या से जूझ रहा है या फिर अवसाद से ग्रसित है। 

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पुणे स्थित मनोचिकित्सक डॉ सौमित्र पाथरे ने कहा कि जिन राज्यों में आत्महत्या के रोकथाम के लिए कुछ रणनीति है वह इसे लागू करने के लिए चितिंत नजर नहीं आते हैं। हमारे समाज में काफी लोग ऐसे हैं जो मनोचिकित्सक के पास जाने से लोगों को रोकते हैं वह इसे बीमारी के तौर पर नहीं देखते हैं। विशेषज्ञों ने कहा कि अवसाद से ग्रसित या फिर आत्महत्या के बारे में सोचने वाले मरीज को काफी लंबे समय तक मदद की जरूरत होती है मगर कई लोग इससे बचते हैं।

सिओन हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग प्रमुख डॉ निलेश शाह ने कहा कि किसी अभिनेता द्वारा आत्महत्या किए जाने के बाद मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरुकता पैदा करने का प्रयास किया जाता है लेकिन मनोचिकित्सक तक पहुंचने से जुड़े कलंक को कम करने में सक्षम नहीं हो पाए। 

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विशेषज्ञों ने कहा कि सबसे बड़ी समस्या तो यहीं से शुरू होती है कि 100 करोड़ से अधिक आबादी वाले देश में महज 4,000 मनोचिकित्सक हैं और इससे अलग जो लोग मदद चाहते हैं वो शायद ही कभी अपना इलाज पूरा करवाते हैं।

विशेषज्ञ बताते हैं कि अभिनेता से लेकर सामान्य इंसान तक कोई भी व्यक्ति अवसाद से बचा नहीं है। ये हताश और उदास होकर काम करते रहते हैं। यह एक तरह से छुपा अवसाद है। कमजोर क्षण में यही आत्मघाती कदम उठाने के लिए मजबूर भी कर देता है। आज के समय में जिस तरह स्वास्थ्य को लेकर लोग डॉक्टर्स के पास जाते हैं ठीक उसी प्रकार उन्हें मानसिक समस्या को लेकर भी मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए। 

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