काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-47

By विजय कुमार | Mar 23, 2022

अंगद यों बोला बिहंस, कुछ दिन का है खेल

फिर निश्चित हो जाएगा, उनसे तेरा मेल।

उनसे तेरा मेल, अधिक चिन्ता क्या करना

राघव के बाणों से लिखा तुम्हारा मरना।

कह ‘प्रशांत’ मत मेरे सम्मुख नीति बखानो

हे रावण, जो मैं कहता हूं उसको मानो।।21।।

-

इक रावण था जीतने, बलि को गया पताल

बच्चों ने बांधा उसे, ले जाकर घुड़साल।

ले जाकर घुड़साल, बली ने उसे छुड़ाया

इक रावण को सहसबाहु घर लेकर आया।

कह ‘प्रशांत’ था उसने समझा एक तमाशा

मुनि पुलस्त्य ने आकर की थी उसकी रक्षा।।22।।

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तीजे रावण की कथा, कहते आती शर्म

लेकिन बतलाना तुम्हें, बनता मेरा धर्म।

बनता मेरा धर्म, कांख में तुम्हें दबाया

रक्षराज, क्या बाली याद तुम्हें अब आया।

कह ‘प्रशांत’ इन तीनों में तुम कौन बताओ

बहुत बड़ी है उलझन, तुम इसको सुलझाओ।।23।।

-

रावण लज्जित हो गया, कुछ था नहीं जवाब

राघव को बकने लगा, गाली बिना हिसाब।

गाली बिना हिसाब, क्रोध अंगद को आया

पटके दोनों हाथ, सकल भूखंड हिलाया।

कह रावण के मुकुट गिरे धरती में

चार उठा, अंगद ने फेंके राम-शिविर में।।24।।

-

दोनों ही करते रहे, वार और प्रतिवार

जंग जुबानी यों चली, बीच भरे दरबार।

बीच भरे दरबार, जोश में अंगद आया

भरी सभा में उसने अपना पैर जमाया।

कह ‘प्रशांत’ है ताकत तो तुम इसे हटाओ

है प्रताप राघव का, झुठला कर दिखलाओे।।25।।

-

रावण बोला पकड़कर, इस बंदर का पैर

पटको ऐसे धरा पर, मांगे जरा न खैर।

मांगे जरा न खैर, बड़े योद्धा सब आये

पर अंगद का पैर जरा भी हिला न पाये।

कह ‘प्रशांत’ लज्जा से सबने शीश झुकाया

देखा जब रावण ने तो खुद उठकर आया।।26।।

-

आगे बढ़ नीचे झुका, लगा साधने दांव

अंगद ने पीछे किया, झट से अपना पांव।

झट से अपना पांव, अरे मूरख दसशीशा

पकड़ राम के चरण, मांग उसने आशीषा।

कह ‘प्रशांत’ मेरे पांवों में अगर पड़ेगा

तेरा नहीं बचाव जरा भी हो पाएगा।।27।।

-

पर रावण के शीश पर, चढ़ा हुआ था काल

कैसे फिर वह मेटता, मौत लिखी थी भाल।

मौत लिखी थी भाल, जोर से अंगद बोला

युद्धभूमि में ही होगा अब असली खेला।

कह ‘प्रशांत’ मैं तुझको पटक-पटक मारूंगा

तेरे सब अरमान वहीं पर मैं झाडूंगा।।28।।

-

इतना कह अंगद मुड़ा, गर्दन लीनी फेर

छुए रामजी के चरण, लागी जरा न देर।

लागी जरा न देर, उधर रावण घबराया

महलों में मन्दा रानी ने फिर समझाया।

कह ‘प्रशांत’ हे स्वामी, अब भी मेरी मानो

युद्ध राम से करने को मूरखता जानो।।29।।

-

आया उनका दूत था, किया लंक विध्वंस

वे रघुपति मानव नहीं, हैं ईश्वर के अंश।

हैं ईश्वर के अंश, तुम्हारा बल तब देखा

पार नहीं कर पाए जब तुम लक्ष्मण रेखा।

कह ‘प्रशांत’ वे सागर लांघ यहां तक आये

लेकिन उनकी ताकत को तुम समझ न पाए।।30।।


- विजय कुमार

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