काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-52

By विजय कुमार | Apr 27, 2022

दांतों से सुग्रीव ने, कीन्हा लहू-लुहान

पहले काटी नाक फिर, उसके दोनों कान।

उसके दोनों कान, हो गया चेहरा ऐसा

रंग रूप-आकार भयानक पागल जैसा।

कह ‘प्रशांत’ गुस्से में वानर पकड़े-खाये

डर कर भागे वीर, राम के सम्मुख आये।।71।।

-

यह देखा जब राम ने, हुए स्वयं तैयार

तरकश बाणों से भरा, किये धनुष टंकार।

किये धनुष टंकार, शत्रु सारे थर्राए

एक साथ राघव ने अनगिन बाण चलाये।

कह ‘प्रशांत’ लाखों योद्धाओं को संहारा

कुंभकरण का चढ़ने लगा क्रोध में पारा।।72।।

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नहीं रहा उससे गया, कूद पड़ा मैदान

राघव ने देखा उसे, था बलवीर महान।

था बलवीर महान, बाण सौ ऐसे मारे

काटे दोनों हाथ, खून के फूटे धारे।

कह ‘प्रशांत’ फिर शीश काट धड़ अलग गिराया

कटे शीश को रावण के सम्मुख पहुंचाया।।73।।

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बरसाते थे देवगण, हर्षित होकर फूल

स्तुति करते थे राम की, जो हैं सुख के मूल।

जो हैं सुख के मूल, देवर्षि नारद आये

नारायण-नारायण कहकर प्रभु गुण गाये।

कह ‘प्रशांत’ हे राघव, अब रावण को मारो

धरती है दुखियारी, उसका भार उतारो।।74।।

-

रावण के सम्मुख गिरा, कुंभकरण का शीश

आंखें भूली झपकना, भौचक्का दशशीश।

भौचक्का दशशीश, हृदय से उसे लगाता

कल क्या होगा, उसको कुछ भी समझ न आता।

कह ‘प्रशांत’ तब मेघनाद ने धैर्य बंधाया

कल देखें सब मेरा कौशल, छल बल-माया।।75।।

-

अगले दिन फिर से छिड़ा, बड़ा विकट संग्राम

मेघनाद ने कर दिया, दसों दिशा कोहराम।

दसों दिशा कोहराम, बाण कुछ ऐसे छाए

सावन-भादों एक साथ ज्यों झड़ी लगाए।

कह ‘प्रशांत’ सबको उसने व्याकुल कर डाला

राघव दल का पड़ा, काल से मानो पाला।।76।।

-

नागपाश फेंका विकट, रघुनंदन की ओर

बंधे राम उसमें स्वयं, अचरज कीन्हा घोर।

अचरज कीन्हा घोर, जामवन्तजी आये

मेघनाद को फेंका सीधे लंक पठाये।

कह ‘प्रशांत’ इतने में खगपति गरुड़ पधारे

बात-बात में काटे उनके बंधन सारे।।77।।

-

आया थोड़ी देर में, मेघनाद को होश

देखा उसने सब तरफ, जागा मन में जोश।

जागा मन में जोश, यज्ञ अब करना होगा

उससे ही अजेय होने का तंत्र मिलेगा।

कह ‘प्रशांत’ इक गहन गुफा में डेरा डाला

तंत्र-मंत्र से युक्त यज्ञ था अति विकराला।।78।।

-

इधर विभीषण ने कहा, सुनिए राघव राम

मेघनाद का यज्ञ है, घोर अपावन काम।

घोर अपावन काम, भंग ये करना होगा

वरना मेघनाद अजेय सा हो जाएगा।

कह ‘प्रशांत’ राघव ने लक्ष्मणलाल पुकारे

करो यज्ञ विध्वंस, मिटाओ कंटक सारे।।79।।

-

चले लक्ष्मण साथ में, ले योद्धा बलवान

उधर यज्ञ में हो रहा, भैंसे का बलिदान।

भैंसे का बलिदान, खून की आहुति देता

मेघनाद था बना यज्ञ का मुख्य प्रणेता।

कह ‘प्रशांत’ वानर दल ने सब तोड़ा-फोड़ा

हुआ यज्ञ विध्वंस, नहीं कुछ बाकी छोड़ा।।80।।


- विजय कुमार

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