काव्य रूप में पढ़ें श्रीरामचरितमानस: भाग-8

By विजय कुमार | Jun 09, 2021

बोले विश्वामित्र यों, मांगन आया आज

राम-लखन दीजे मुझे, हे दशरथ महाराज।

हे दशरथ महाराज, यज्ञ तब पूरे होंगे

पहरे पर जब दोनों भाई खड़े रहेंगे।

कह ‘प्रशांत’ राजा बोले ये दोनों बाला

हैं अति छोटे और राक्षस क्रूर कराला।।81।।

-

मुनि ने समझाया बहुत, राजा माने बात

दोनों भैया चल दिये, वन में उनके साथ।

वन में उनके साथ, ताड़का स्वर्ग पठाई

मुनि ने खुश होकर विद्याएं कई सिखाईं।

कह ‘प्रशांत’ मारीच सहायक लेकर आया

राम-बाण ने सागर पार उसे पहुंचाया।।82।।

-

फिर सुबाहु आया वहां, करने को तकरार

राम-लखन ने कर दिया, सेना संग संहार।

सेना संग संहार, स्तुति देवन उच्चारी

जय-जय श्री रघुवीर संतजन के हितकारी।

कह ‘प्रशांत’ फिर धनुष यज्ञ की बात बताई

मुनि के संग चले प्रसन्न मन दोनों भाई।।83।।

-

रस्ते में आश्रम दिखा, खाली और उदास

एक शिला से हो रहा, नारी का आभास।

नारी का आभास, मुनी ने भेद बताया

है गौतम अर्धांग, जिसे सबने ठुकराया।

कह ‘प्रशांत’ इस तपस्विनी को शीश नवाओ

और कहो हे मातु अहल्या अब उठ जाओ।।84।।

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सुनकर वाणी राम की, हुआ प्राण संचार

और शिला से बन गयी, जीवित-जाग्रत नार।

जीवित-जाग्रत नार, धन्य-धन्य रघुराई

है मेरा सौभाग्य, आज शरणागति पाई।

कह ‘प्रशांत’ था शाप मगर वरदान बन गया

कोटि जन्म तक रामचरण में स्थान मिल गया।।85।।

-

देवनदी आगे मिली, सुनकर कथा महान

दर्शन-पूजन कर किया, सबने गंगा स्नान।

सबने गंगा स्नान, बढ़े फिर आगे-आगे

पहुंचे जनकपुरी में, भाग्य वहां के जागे।

कह ‘प्रशांत’ थे नगर-महल सुख देने वाले

देख आम का बाग, सभी ने डेरे डाले।।86।।

-

जनकराज ने जब सुना, किया बहुत सत्कार

राम-लखन को देखकर, हर्षित हुए अपार।

हर्षित हुए अपार, पूर्ण जब परिचय पाया

उनकी आंखों में श्रद्धा का जल भर आया।

कह ‘प्रशांत’ फिर उनको महलों में ठहराकर

मुनि के चरणों में प्रणाम करके पहुंचे घर।।87।।

-

लक्ष्मण की इच्छा बड़ी, चलें जनकपुर धाम

गुरु से आज्ञा मांगकर, साथ चले श्रीराम।

साथ चले श्रीराम, नगरवासी सब धाए

उन्हें देख अपने नैनों को सफल बनाए।

कह ‘प्रशांत’ कौशल्या के सुत हैं श्रीरामा

और लखन हैं दूजे, मात सुमित्रा नामा।।88।।

-

दशरथ की संतान हैं, ये दोनों युवराज

रक्षा करके यज्ञ की, मारा असुर समाज।

मारा असुर समाज, सिंह सम छटा मनोहर

हाथी जैसी चाल, कमल से नैना सुंदर।

कह ‘प्रशांत’ लख राम रूप भर आयी अखियां

बने सिया की जोड़ी इनसे, बोली सखियां।।89।।

-

एक सखी बोली सकुच, शंकर धनुष कठोर

कैसे तोड़ेंगे उसे, ये हैं अभी किशोर।

ये हैं अभी किशोर, दूसरी सखी सयानी

धीरज धर के मन में, बोली अति शुभ वाणी।

कह ‘प्रशांत’ जिस ब्रह्मा ने है सिया बनायी

उसने सोच-विचार यहां भेजे रघुराई।।90।।


- विजय कुमार

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