ईमानदारी के रिफ्यूजी (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा 'उरतृप्त' | Oct 28, 2025

इन दिनों 'सद्गुण मंत्रालय'  में जो हड़कंप मचा है, वैसा तो स्टॉक मार्केट क्रैश होने पर भी नहीं मचता। मंत्रालय के सेक्रेटरी, श्री सत्यनिष्ठ जी, अपने ऑफिस में दिन में चार बार बीपी की गोली खा रहे हैं और उनके असिस्टेंट, पी.ए. पुण्य आत्मा का तो हाल ही बेहाल है। उनका सुपर-कंप्यूटर, 'कैरेक्टर-एनालाइज़र 5.0', बार-बार एरर दिखा रहा है। वजह? आर्यावर्त से आने वाला कन्फ्यूजिंग डेटा। वहाँ एक नई फिलॉसफी चल पड़ी है - 'ईमानदारी इज़ अ चॉइस, नॉट अ ज़रूरत'।


सत्यनिष्ठ जी अपने असिस्टेंट पर चिल्ला रहे थे, "पुण्य आत्मा, व्हाट इज़ दिस नॉनसेंस? हमारा डेटाबेस कहता है कि रमेश बाबू नाम का आदमी 'कैटेगरी-ए' का ईमानदार है, पर आर्यावर्त का सिस्टम उसे 'कैटेगरी-एफ' का फेलियर बता रहा है। हम उसे 'सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनेस्टी' दें या 'लेटर ऑफ़ कंडोलेंस'?" मामला इतना कॉम्प्लिकेटेड हो गया है कि मंत्रालय की लीगल टीम ने इस्तीफ़ा देने की धमकी दे दी है, कह रहे हैं कि आर्यावर्त की 'प्रैक्टिकल-फिलॉसफी' समझना उनके बस की बात नहीं।

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इसी घनघोर कन्फ्यूज़न के बीच एक नई फाइल सत्यनिष्ठ जी की मेज पर धड़ाम से आकर गिरी। फाइल का कवर बदरंग था और उस पर लिखा था - 'केस नंबर 420: रमेश बाबू - द खूँटी वाला'। सत्यनिष्ठ जी ने फाइल खोली और पहले पन्ने पर लिखी रिपोर्ट पढ़कर उनका सिर चकरा गया। उन्होंने चश्मा उतारकर पुण्य आत्मा से पूछा, "यह क्या है? रमेश बाबू को उसकी ईमानदारी की वजह से 'अयोग्य' करार दे दिया गया? और उसकी बेटी बिना इलाज के मर गई क्योंकि उसने 'वज़न' उठाने से मना कर दिया? यह कौन-सा नया 'कर्म-सिद्धांत' है आर्यावर्त में?" पुण्य आत्मा ने एक लंबी साँस ली, "सर, यही तो प्रॉब्लम है। आर्यावर्त में अब ईमानदारी एक म्यूजियम की चीज़ बन गई है, जिसे लोग दूर से देखते हैं, सराहते हैं, पर घर नहीं ले जाते। रमेश बाबू उसे अपने कोट के साथ रोज़ दफ्तर ले जाते थे और अपनी खूँटी पर टाँग देते थे।"


सत्यनिष्ठ जी ने अपने सबसे अनुभवी और 'वर्ल्डली-वाइज़' इंस्पेक्टर, मिस्टर प्रैक्टिकल, को भेजा। मिस्टर प्रैक्टिकल जब वापस लौटे तो उनका चेहरा देखने लायक था। उन्होंने सत्यनिष्ठ जी को सैल्यूट मारा और बोला, "सर, सीन बहुत मेस्ड-अप है। दैट खूँटी वॉज़ नॉट जस्ट अ खूँटी, इट वॉज़ अ सिंबल। रमेश बाबू के कलीग्स कहते थे, 'रमेश बाबू, इसी खूँटी पर अपनी ईमानदारी भी टाँग देते हैं, घर ले जाने में भारी लगती होगी।' सर, जब एक ठेकेदार ने उसे मोटी रिश्वत ऑफर की, तो उसने यह कहकर मना कर दिया कि 'मेरी खूँटी कमज़ोर है, यह वज़न नहीं सह पाएगी'। सर, कैन यू इमेजिन? द मैन चोज़ अ खूँटी ओवर हिज़ डॉटर'स लाइफ!"


"तो उसकी बेटी का क्या हुआ?" सत्यनिष्ठ जी ने पूछा। "सर, शी डाइड," मिस्टर प्रैक्टिकल ने सपाट आवाज़ में कहा। "और उसके बाद रमेश बाबू ने कुछ ऐसा किया जो हमारे किसी भी 'कैरेक्टर-मैनुअल' में नहीं लिखा। वह अगले दिन ऑफिस गया, उस खूँटी को दीवार से उखाड़ा, अपनी जेब में रखा और कहा, 'साहब, अब इसकी ज़रूरत नहीं। जिस ईमानदारी को इस पर टाँगता था, कल रात उसे अपनी बेटी के साथ जला आया।' और फिर वह गायब हो गया। नोबडी हैज़ सीन हिम सिंस।"


यह सब सुनकर सत्यनिष्ठ जी ने अपना सिर पकड़ लिया। "मतलब, आर्यावर्त का सिस्टम इतना क्रूर हो गया है कि वह एक ईमानदार आदमी को अपनी ईमानदारी जलाने पर मजबूर कर देता है? और फिर उसे गायब भी कर देता है? तो अब हम क्या करें? उसे 'शहीद-ए-ईमानदारी' घोषित करें या 'भगोड़ा'?"


अंत में, सत्यनिष्ठ जी ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने 'रमेश बाबू' की फाइल पर एक नया स्टैम्प लगवाया, जिस पर लिखा था - 'केस क्लोज्ड: सब्जेक्ट लॉस्ट इन द सिस्टम'। उन्होंने पुण्य आत्मा को निर्देश दिया कि 'कैरेक्टर-एनालाइज़र 5.0' में एक नई कैटेगरी बनाई जाए - 'ईमानदारी के रिफ्यूजी'। इस कैटेगरी में उन लोगों को रखा जाएगा, जिनकी ईमानदारी को आर्यावर्त का सिस्टम बर्दाश्त नहीं कर पाया और उन्हें अपनी पहचान मिटाकर गुमनामी में जीने पर मजबूर कर दिया। सत्यनिष्ठ जी ने अपनी कुर्सी पर पीछे टिकते हुए कहा, "छोड़ दो इस केस को। यह आत्मा हमारे ज्यूरिस्डिक्शन से बाहर है। आर्यावर्त में गरीब की ईमानदारी भी कोई ईमानदारी है लल्लू!"


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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