''2019'' के लिये संघ ने संभाली कमान, योगी मंत्रिमंडल में होगा फेरबदल

By अजय कुमार | Jan 12, 2018

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) भले ही अपने आप को गैर राजनैतिक संगठन बताता हो, लेकिन उसकी सियासी महत्वाकांक्षा और भारतीय जनता पार्टी के प्रति उसका लगाव कभी किसी से छिपा नहीं रहा है। कभी भी बीजेपी में बड़े फैसले संघ की मर्जी के बिना नहीं होते हैं। किसको कौन सा पद दिया जायेगा, किस नेता को आगे और किसे पीछे किया जाना है से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी संघ की दखलंदाजी को सब जानते हैं। संघ चुपचाप बिना किसी तरह के प्रचार के अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाता है। बीजेपी के लिये सियासी जमीन मजबूत करना आरएसएस का हमेशा से मुख्य एजेंडा रहा है। केन्द्र में प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों तक में जहां भी बीजेपी की सरकार बनती है, वहां कौन मुख्यमंत्री बनेगा इसका फैसला भी संघ द्वारा ही किया जाता है। इतना ही नहीं बीजेपी की तमाम सरकारों के कामकाज पर भी आरएसएस की नजर रहती है। जैसा कि योगी सरकार में भी देखने को मिल रहा है। यह कहना अतिशियोक्ति नहीं होगा कि आरएसएस ने यूपी में मिशन−2019 की कमान संभाल ली है, जिसके चलते योगी मंत्रिमंडल और संगठन में बदलाव देखने को मिल सकता है।

 

सरकार, भाजपा और संघ के बीच हुई चर्चा से अगर किन्हीं नतीजों पर पहुंचने की कोशिश की जाये तो लगता है कि शीघ्र ही योगी सरकार में प्रदर्शन न करने वाले कुछ मंत्रियों के पर करते जा सकते हैं। इसी प्रकार संगठन में भी बदलाव दिखाई पड़ सकता है। सजा के साथ सरकार और संगठन में कुछ चेहरों को इनाम के तौर पर आगे भी बढ़ाया जा सकता है। योगी सरकार के करीब आधा दर्ज मंत्रियों के बारे में जो तथ्य समाने आये हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि अहम विभाग वाले मंत्रियों से उनके विभाग छीने जा सकते हैं। खिचड़ी के बाद करीब दस माह पुरानी योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार/बदलाव और भाजपा में संगठन के गठन की हलचलें तेज हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए भी यह बदलाव अहम माना जा रहा है। अगले साल लोकसभा चुनाव है और पार्टी कुछ ही महीनों में चुनावी मोड में आ जाएगी। इसलिए उसके पहले सरकार और संगठन के 'कील−कांटे' ठीक करना जरूरी है।

 

इस कड़ी में कुछ नेता संगठन से सरकार में जा सकते हैं तो कुछ चेहरे सरकार से संगठन में भी दिखाई पड़ सकते हैं। इस लिस्ट में पार्टी के दो महामंत्रियों के नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, जिनको राज्यमंत्री या स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है। सूत्रों की मानें तो जिन विभागों ने सरकार की किरकिरी करवाई है या जहां के भ्रष्टाचार की चर्चा है, उनके मंत्रियों को किनारे लगाने की तैयारी है। रूहेलखंड क्षेत्र के एक मंत्री के विभाग बदले जाने के साथ अवध क्षेत्र के तीन मंत्री निशाने पर हैं। इसमें दो के विभाग कम किए जाने लगभग तय हैं। कानपुर−बुंदलेखंड क्षेत्र के एक राज्यमंत्री की शिकायतें भी गंभीर हो चुकी हैं। इसलिए वह भी निशाने पर हैं। पूर्वांचल के एक कैबिनेट मंत्री के विभाग पर भी संघ की नजर टेढ़ी है। हालांकि, विपक्ष हमलावर न हो इसलिये चेहरों को बदले जाने की संभावना तो कम है, लेकिन विभाग बदल कर जनता को संदेश देने की पूरी तैयारी है।

 

गौरतलब है कि संघ, योगी सरकार को कामकाज को लेकर समय−समय पर नसीहत देने के अलावा 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रति सजग कर रहा है। संघ, बीजेपी कार्यकर्ताओं में बढ़ती नाराजगी, पार्टी नेताओं के बीच के मनमुटाव, योगी सरकार के कुछ मंत्रियों की लचर कार्यशैली के साथ−साथ दलितों को लेकर जो मैसेज जनता के बीच जा रहा है उससे भी चिंतित है। खासकर, सहारनपुर की घटना ने बीजेपी की छवि को खासा नुकसान पहुंचाया था, जिसका कुछ हद तक खामियाजा निकाय चुनाव में देखने को मिला था। इसीलिये निकाय चुनाव के नतीजों को लेकर भी संघ ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को चेताया है। इसी के बाद निकाय चुनाव में अपेक्षित परिणाम न मिलने पर संगठन और सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा आईना दिखाने के बाद नए सिरे से निकाय नतीजों की समीक्षा की जा रही है, जिन क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा वहां की खामियों को तलाशा जा रहा है। पार्टी कार्यकर्ता इसकी वजह खोजेंगे तो ऊपर बैठे संगठन के लोग उसे दूर करने के हर संभव प्रयास करेंगे।

 

हाल ही में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय और संगठन महामंत्री सुनील बंसल समेत कई नियंताओं के बीच निकाय चुनाव के नतीजों सहित महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा भी हुई थी। निकाय चुनाव के नतीजों के बाद सहमी भाजपा के लिए अब सबसे बड़ा मिशन 2019 का लोकसभा चुनाव है। 2014 में सहयोगियों समेत भाजपा ने उप्र में लोकसभा

 की 73 सीटें जीती थीं। इस बार प्रदेश और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार है। ऐसे में उत्तर प्रदेश की 80 की 80 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा गया है। यह लक्ष्य पिछले वर्ष कानपुर के प्रांतीय अधिवेशन में ही प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने रखा, लेकिन निकाय चुनाव के परिणाम ने चिंता बढ़ा दी है। आरएसएस की भी चिंता यही है। भाजपा का निकाय चुनाव में जिन नगरों और कस्बों में खराब प्रदर्शन रहा है वहां अब संघ और बीजेपी कार्यकर्ताओं की सक्रियता बढ़ सकती है। पार्टी इसके लिए ढिंढोरा नहीं पीटेगी बल्कि लोगों से संपर्क बढ़ाने के साथ ही क्षेत्र की जरूरत वाली विकास योजनाओं को प्राथमिकता पर लागू कराया जाएगा। इसमें मंडल अध्यक्ष और विस्तारकों के अलावा बूथ समिति के पदाधिकारियों की मुख्य भूमिका होगी। उनके प्रस्ताव को संगठन और सरकार में तरजीह दी जाएगी।  

 

यही वजह थी कि बीजेपी और योगी सरकार के बीच 09 जनवरी को लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास में हुई समन्वय बैठक में संघ ने एक तरफ योगी सरकार को कार्यकर्ताओं की चिंता से अवगत करवाया तो दूसरी तरफ संघ के पदाधिकारियों ने अन्य मुद्दों पर जमीनी स्तर पर मिले फीडबैक के आधार पर सरकार की चिंता व प्रसन्नता दोनों की ही तरफ ध्यान खींचा। नियमों की आड़ में अफसरों के बेलगाम होने और उससे सरकार की छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ने की भी चिंता संघ के पदाधिकारियों में साफ नजर आई। बात कानून व्यवस्था की कि जाये तो योगी प्रयास तो काफी कर रहे हैं, लेकिन योगी राज में सरकार की नाक के नीचे लखनऊ के काकोरी थाना क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के धर्म जागरण के खंड प्रमुख 45 वर्षीय बिहारीलाल रावत की बेरहमी से हत्या भी कई सवाल खड़े करती है। संघ कार्यकर्ता बिहारी लाल को उस समय मौत के घाट उतार दिया गया था जब वह साइकिल से ट्यूशन पढ़ाने के लिए निकले थे। बेखौफ बदमाशों ने उन्हें रोक कर डंडों से जमकर पिटाई की और खून से लथपथ हाल में घसीटते हुए 150 मीटर दूर बने आम के बाग में ले जाकर जिंदा पेड़ से टांग दिया। करीब आधे घंटे बाद बिहारी लाल का बड़ा बेटा आशीष उधर से गुजरा तब वारदात का पता चला।

 

बैठक की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लंबे समय बाद हुई बैठक में संघ के सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले और कृष्ण गोपाल के साथ क्षेत्र प्रचारक शिव नारायण और आलोक मौजूद रहे। सरकार का पक्ष रखने और सुनने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उनके दोनों नायब केशव प्रसाद मौर्य व दिनेश शर्मा थे। वहीं, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय, प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल और राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिवप्रकाश बीजेपी में अपेक्षा और उपेक्षा समझने के लिए शामिल रहे। बैठक में अफसरों की मनमानी कार्यप्रणाली का विषय और कई जिलों में बीजेपी व संघ कार्यकर्ताओं की प्रशासन से झड़प और उपेक्षा के बिंदु भी उठे। बताया गया कि नियमों की आड़ में अफसर अनावश्यक सत्ता पक्ष के लोगों का उत्पीड़न कर रहे हैं जो पुरानी मानसिकता से नहीं उबरे हैं। इन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कई निर्णयों के गलत क्रियान्वयन और जनहित के निर्णयों में अफसरों के जान−बूझकर देरी के चलते सरकार की हुई किरकिरी का भी ध्यान दिलाया गया। खासकर, मंत्रियों को भी ज्यादा विनम्र और जनता के बीच सक्रिय होने की अपेक्षा की गई।

 

बैठक में सरकार से युवाओं और किसानों की अपेक्षाओं पर विशेष ध्यान देने को कहा गया। किसानों के हित में योगी सरकार के उठाए कदमों की संघ ने तारीफ की, लेकिन साथ ही दूसरे राज्यों के अनुभवों से भी सीख लेने की ओर इशारा किया। कहा, योजनाओं का लाभ उन तक वास्तविक तौर पर पहुंच रहा है कि नहीं इस पर विशेष ध्यान दें। विभिन्न विभागों में सेवानिवृत्त लोगों के समायोजन पर संघ सहमत नहीं दिखा। उनका कहना था कि बड़े पैमाने पर योग्य बेरोजगार रोजगार की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनका ध्यान दिया जाना चाहिए। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया कि जल्द ही बड़े पैमाने पर नौकरियां आएंगी।

 

संघ ने बीजेपी और सरकार, दोनों को ही हालिया चुनाव के इशारे समझने को कहा। काम जमीन पर उतरे, इस पर विशेष ध्यान देने को कहा गया है। व्यक्तिगत मतभेदों को किनारे कर बड़े उद्देश्य पर सबसे ध्यान देने की अपेक्षा की गई। खासकर, पद पाने के बाद कार्यकर्ताओं की चिंता छोड़ने की प्रवृत्ति पर संघ ने बीजेपी व सरकार के बड़े लोगों को विशेष तौर पर आत्मचिंतन करने को कहा। सरकार, भाजपा और संघ की समन्वय बैठक के निष्कर्षों के आधार पर सरकार में प्रदर्शन न करने वालों के लिए सजा और संगठन के कुछ चेहरों के इनाम की जमीन तैयार हो गई है। आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों के बारे में जो तथ्य समाने आये हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि योगी सरकार के कुछ मंत्रियों जिनके पास अहम विभाग हैं वह उनसे दूर छिटक सकते हैं। खिचड़ी के बाद योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार और भाजपा में संगठन के गठन की हलचलें तेज हैं।

 

-अजय कुमार

 

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