By Ankit Jaiswal | Dec 17, 2025
बीते कुछ समय से भारतीय रुपये की गिरावट ने वैश्विक निवेशकों की चिंता बढ़ा दी है। बता दें कि अमेरिकी टैरिफ के दबाव में किसी भी बड़ी मुद्रा को जितना नुकसान झेलना पड़ा है, उसमें भारतीय रुपया सबसे आगे दिखाई दे रहा है। मौजूद जानकारी के अनुसार इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया करीब छह प्रतिशत तक कमजोर हो चुका है और पहली बार 91.075 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर तक फिसल गया है।
जानकारों का मानना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% तक के कड़े शुल्क, बढ़ता व्यापार घाटा और विदेशी निवेशकों की लगातार निकासी ने रुपये पर दोहरी मार डाली है। एक रिर्पोट के आंकड़ों के मुताबिक, भारत का रियल इफेक्टिव एक्सचेंज रेट 96 तक आ गया है, जो एक दशक से ज्यादा समय में सबसे निचला स्तर है। आमतौर पर यह संकेत देता है कि मुद्रा में सुधार की गुंजाइश होती है, लेकिन इस बार हालात कुछ अलग बताए जा रहे हैं।
गौरतलब है कि विदेशी संस्थागत निवेशकों ने इस साल अब तक भारतीय शेयर बाजार से रिकॉर्ड 18 अरब डॉलर निकाल लिए हैं। निवेश सलाहकारों का कहना है कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते को लेकर स्पष्टता आने तक यह रुख बदलने की संभावना कम है। जेबी ड्रैक्स होनोर के एशिया मैक्रो रणनीतिकार विवेक राजपाल के अनुसार बाजार का धैर्य तेजी से खत्म हो रहा है और निवेशकों को भरोसा चाहिए कि टैरिफ स्थायी नहीं हैं।
भारत और अमेरिका के बीच 2025 के अधिकांश हिस्से में व्यापार बातचीत चली हैं। हालांकि, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने हाल ही में संकेत दिया है कि मार्च 2026 तक किसी समझौते की उम्मीद की जा सकती है। इसके बावजूद, एशिया के कई अन्य देशों को अमेरिका से राहत या अस्थायी समझौते मिल चुके हैं, जिससे भारत अपेक्षाकृत अधिक जोखिम में दिख रहा है और रुपया इस झटके को सहन करने वाली मुद्रा बन गया है।
जानकार बताते हैं कि कमजोर मुद्रा आमतौर पर निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाकर टैरिफ के असर को कुछ हद तक कम कर सकती है, लेकिन जब शुल्क 50 प्रतिशत जैसे ऊंचे स्तर पर हों, तो केवल रुपये की गिरावट से संतुलन बन पाना मुश्किल हो जाता है। इसके साथ ही व्यापार घाटा और पूंजी निकासी जैसी समस्याएं भी निकट भविष्य में कम होती नहीं दिख रहीं।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट में यह भी संकेत मिला है कि भारतीय रिजर्व बैंक फिलहाल बाजार की बुनियादी ताकतों के रास्ते में खड़े होने के मूड में नहीं है, जिससे रुपये में और कमजोरी की आशंका बढ़ी है। एचएसबीसी समेत कई ब्रोकरेज फर्मों ने माना है कि रुपये की तेज गिरावट भारतीय शेयरों के लिए जोखिम है, भले ही लंबे समय में मूल्यांकन आकर्षक दिखने लगे हों।
वहीं, कुछ वैश्विक फंड मैनेजरों का मानना है कि भू-राजनीतिक जोखिम का असर शायद जरूरत से ज्यादा आंका जा रहा है, लेकिन फिलहाल निवेशक रुपये में बड़ी वापसी करते नजर नहीं आ रहे हैं। डॉलर आधारित निवेशकों के लिए यह स्थिति परेशानी पैदा कर रही है, क्योंकि एक तरफ कमजोर रुपया निर्यात की प्रतिस्पर्धा बढ़ाता है, तो दूसरी तरफ विदेशी निवेश के रिटर्न पर दबाव भी डालता है, ऐसे हालात में जब तक अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर ठोस प्रगति नहीं होती, रुपये पर दबाव बना रह सकता है और बाजार इसी अनिश्चितता के साथ आगे बढ़ता रहेगा।