By टीम प्रभासाक्षी | Mar 15, 2022
रूस और यूक्रेन के युद्ध के बीच अमेरिका को एक नई चिंता सता रही है। वह दक्षिण एशिया में एक नई साझेदारी को लेकर चिंतित है। अमेरिका ने रूस की मदद नहीं करने की भी अपील की है। इसके अलावा सोमवार को उसने एक बयान में कहा कि वह रूस को वित्तीय आर्थिक मदद देने की कोशिश करने वाले देशों पर नजर रखे हुए है। हो सकता है अमेरिका यह संकेत भारत की ओर कर रहा हो क्योंकि हाल ही में भारत और रूस के बीच एक व्यापारिक सौदेबाजी की रिपोर्ट सामने आई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि एशिया के 2 बड़े देश रूस रूस को पश्चिमी प्रतिबंधों से उबरने की कोशिश करेंगे या नहीं?
सोमवार को अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सोलविन ने रोम में शीर्ष चीनी राजनयिक यांग जिएची से मुलाकात की और उसको संभावित सैन्य और वित्तीय सहायता पर अमेरिका की चिंताओं से अवगत कराया। इन दोनों की मुलाकात अमेरिकी अधिकारियों के उस दावे के बाद हुई है, जिसमें कहा गया था कि रूस चीन से सैन्य और आर्थिक मदद मांगने की कोशिश कर रहा है। हालांकि चीन ने इस खबर को खारिज कर दिया है।
रूस की सहायता के लिए आगें आने वाले देशों को लेकर अमेरिका की चिंताओं में अभी भारत शामिल नहीं है लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें यह कहा गया है कि भारत रियायती कीमत पर रूस से कच्चा तेल तथा दूसरी वस्तुएं खरीदने पर विचार कर रहा है। यह विनमय म रुपया- रूबल में किए जाने की खबर है। ऐसे में अमेरिका रूस चीन और भारत की बढ़ती साझेदारी को लेकर चिंतित है।
चीन पर अमेरिका दबाव बना रहा है कि वह रूस को बेलआउट करने का प्रयास न करें। जबकि उसके नाटो पार्टनर्स को इस मामले में काफी छूट मिली हुई है। नाटो के तमाम देश यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा करते हुए भी उससे गैस और तेल खरीद कर रहे हैं। भारत और चीन ने सीधे तौर पर रूस के यूक्रेन पर आक्रमण की निंदा नहीं की है।
चीन और रूस ने हाल के सालों में एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं। वहीं चीन के साथ तनाव के बीच भारत ने अमेरिका और मॉस्को दोनों के साथ अच्छे संबंधों की कोशिश की है। इसी का नतीजा है कि एक तरफ अमेरिका की चीन को लेकर मांगे सख्त हैं लेकिन भारत पर उसका दबाव कम और मौन है। अमेरिका यह समझता है कि नई दिल्ली लंबे समय से मॉस्को पर सैन्य आपूर्ति को लेकर निर्भर है।
अमेरिकी अधिकारी और विश्लेषक कह रहे हैं कि चीन रूस की सहायता के लिए आगें आता है तो उसे दुनिया के मंचों पर अलग-थलग पड़ने और आर्थिक दंड का सामना करना पड़ सकता है। इसी बीच अमेरिकी अधिकारियों ने रूस और चीन के बीच भेद पैदा करने की कोशिश भी की है। अमेरिकी सुरक्षा सलाहकार के शब्दों में कहे तो यह बहुत हद तक संभव है कि पुतिन ने चीन से झूठ कहा हो, जैसा कि उन्होंने अन्य यूरोपीय देशों से कहा था कि उनकी यूक्रेन पर हमला करने की कोई योजना नहीं थी।
कई अमेरिकी विश्लेषकों का मानना है कि ताइवान पर अपने दाने को ध्यान में रखते हुए चीन ने रूसी हमले को हरी झंडी दे दी है। सीएनएन के एक राजनीतिक विश्लेषक Jhon Rogin कहते हैं कि पुतिन याचक के रूप में बीजिंग गए थे और उसके भविष्य को चीन को गिरवी रखने की कीमत पर युद्ध के लिए चीन का मौन समर्थन प्राप्त किया था। उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग भी इस युद्ध में बराबर के साजिशकर्ता हैं।
हालांकि रोगिन यूक्रेन और ताइवान के हालात को एक नजरिए से नहीं देखते। उन्होंने कहा इसमें कोई शक नहीं है कि चीन के राष्ट्रपति यूक्रेन के युद्ध के परिणामों पर नजर रखे हुए हैं और इसके साथ वही यह भी देख रहे हैं कि पश्चिम में ताइवान की रक्षा करने की इच्छा है या नहीं। उन्होंने कहा इसमें कोई शक नहीं है कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो पुतिन चीन की मौजूदा दोस्ती का एहसान चुका सकते हैं।