By अनन्या मिश्रा | Sep 02, 2025
हिंदू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा के साथ ही लोक देवताओं की पूजा की भी विशेष महत्व होता है। इतिहास में कई ऐसे वीर महापुरूष हुए, जिन्होंने अपना वचन निभाने के लिए अपने प्राणों तक की परवाह नहीं की। ऐसे ही एक वीर तेजाजी महाराज हैं। आज यानी की 02 सितंबर को तेजाजी दशमी मनाई जा रही है। उन्होंने गायों की रक्षा के लिए एक सांप को दिया वचन भी निभाया। अपने प्राण न्योछावर करने वाले गौ रक्षक तेजाजी आज लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं। तो आइए जानते हैं कि वह नागों के देवता कैसे कहलाए।
राजस्थान में नागौर जिले के खरनालियां गांव में तेजाजी का जन्म हुआ था। वह एक सामान्य किसान के बेटे थे। इनके पिता का नाम ताहड़ देव था और मां का नाम रामकंवरी था, जोकि भगवान शिव के उपासक थे। माना जाता है कि नाग देवता की कृपा से मां रामकंवरी को पुत्र की प्राप्ति हुई थी। जन्म के समय मुख की तेज आभा के कारण इनका नाम तेजा रखा गया। वहीं 9 महीने की आयु में उनका विवाह 6 माह की पेमल के साथ हो गया।
तेजाजी के मन में बचपन से ही सत्य की भावना छाई हुई थी। उन्होंने जीव दया, समाज में पर पीड़ा और नारी रक्षा के लिए तभी अपने प्राणों की परवाह नहीं की। इसके अलावा तेजाजी ने लाछा गुर्जरी को बचाने के लिए डाकुओं से भी भिड़ गए थे। जब तेजाजी गायों की रक्षा के लिए जा रहे थे, तो उस समय आग में जल रहे सर्प को बचाया। वहीं जोड़े से बिछड़ जाने से सांप क्रोधित हो गया और तेजाजी को डसने लगा। तब तेजाजी ने उससे कहा कि वह गायों को बचाने जा रहे हैं।
उन्होंने सांप को वचन दिया जब वह अपना कार्य करके वापस लौटेंगे, तो सांप उनको डस ले। गौरक्षा के युद्ध में तेजाजी घायल हो गए, लेकिन अपना वचन निभाने के लिए वह सांप के पास पहुंचे। उनकी ऐसी हालत देखकर सांप ने उनको डंसने से मना कर दिया, तब तेजाजी ने अपनी जीभ निकाली और कहा कि यहां जख्म नहीं है। फिर सांप ने उनकी जीभ पर डसा और अपना वचन निभाते हुए गौरक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। जिसके बाद से वह लोकदेवता के रूप में पूजे जाने लगे।
वहीं वचनबद्धता से प्रसन्न होकर सांप ने तेजाजी को आशीर्वाद दिया कि वह सांपों के देवता कहलाएंगे। वहीं सांप के डसे व्यक्ति का विश तेजाजी के थानक पर आने के बाद खत्म हो जाएगा। बता दें कि तेजाजी महराज को छतती चढ़ाई जाती है। जब मनोकामना पूरी होती है, तो भक्त सामूहिक रूप से तेजाजी मंदिरों पर जाकर ढोल नगाढ़ों के साथ छतरी चढ़ाकर ईश्वर का धन्यवाद करते हैं।