निब्बा-निब्बी का वैलेंटाइन वीक (व्यंग्य)

By डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’ | Feb 12, 2024

वैलेंटाइन वीक, निब्बा-निब्बी की खुमारी के लिए सदैव से चोंचलों का स्वर्णयुग रहा है। निब्बा का बटुआ निब्बी के लिए और निब्बी का पर्स निब्बा के लिए हमेशा बादशाह अकबर के खजाने की तरह खुला रहता है। अगर दिल खुला हो तो दोनों पागलपंती की सारी हदें पार कर देते हैं। साल भर चाहे जैसा भी रहें लेकिन इस एक सप्ताह वे चादर के अनुसार पाँव पसारने की आदत को तिलांजली देकर उधारी के बुर्ज खलीफा पर चढ़ने की नई मिसाल स्थापित करते हैं। निब्बा-निब्बी का प्यार वह ‘इलास्टिक' है जिसे खींच-खींचकर वे कभी अपना सिर ढक लेते हैं तो कभी पाँव। प्यार दिखाने का यही बेहतरीन तरीका है।


वैलेंटाइन वीक को कभी जेब कतरने की कैंची कहा जाता था। आजकल इसे संबंध जोड़ने वाला ‘फ़ेवीकॉल' समझा जाता है। आज का इन्वेस्टमेंट, कल का ओयो रूम बन सकता है। जरूरत है तो सोच समझकर इन्वेस्टमेंट करने की। पता चला कि गलत बंदे या बंदी पर इन्वेस्ट कर दिया तो ओयो रूम की जगह नसें काटकर तड़प-तड़प के दिल से आह निकलती रही...गीत गाना पड़ सकता है। बाजार में निब्बा-निब्बियों का बोलबाला है। अब तो बैंक वाले भी लुभावने तरीके से निब्बा-निब्बियों को आकर्षित करने के लिए नई-नई स्कीमें लाने के बारे में सोच रहे हैं। जैसे ही आरबीआई से अनुमति प्राप्त हो जाएगी तुरंत वे मकान की जगह रोज खरीदने के लिए रोज लोन, प्रपोज करने के लिए खंभा लेना हो तो आसान किस्तों पर सुलभ होने वाला खंभा लोन, चॉकलेट लेना हो तो चॉकलेट लोन, टेड्डी लेने के लिए इंस्टेट टेड्डी लोन, प्रॉमिस को निभाने के लिए प्रॉमिस लोन, यह सब लोन न भरने पर हग लोन के बहाने हगवाने वाला लोन, चुम्मा-चुम्मी को यादगार बनाने के लिए किरकिरी लोन और अंत में सड़क पर लाने के लिए वैलेंटाइन से मिलता जुलता टनटनाटन लोन। ये ऐसी स्कीमें हैं जिससे निब्बा-निब्बी तो एक-दूसरे के इतने निकट आ जाते हैं कि दूर जाने के लिए उन्हें फोन का स्टोरेज क्लियर करने के लिए एक युग बीत जाता है। इस पर भी न जाने कितनी इनकी पागलपंती बदनभर पर टैटू के रूप में रह ही जाती है। प्यार के कीड़े निब्बा-निब्बी को देखकर थिरकने लगते हैं। प्यार का दरवाजा उपहारों की चाबी से खुलता है और अगर आपकी जेब भारी है तो प्यार का सैलाब हिलोरे मारते-मारते आपके दिलोदिमाग में तूफान ला देता है।

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बेकरी और पब की दुकानों से लेकर आई मैक्स थियेटर तक आप अपनी ‘निब्बा-निब्बियत' को भुना सकते हैं। एक बार बात बनी तो निरोध अनुरोध को रिप्लेस कर देता है। प्यार जताने का सरल गणित है समय पर भुगतान। निब्बा निब्बी को परखता है और निब्बी निब्बा को। और जब उसे विश्वास हो जाता है कि वे जेब से नंगे नहीं है, तब वे न आपको छोड़ते हैं और न वह आपको। दोनों जब तक एक-दूसरे के प्यार में अंधे होकर पागलों जैसी हरकतें नहीं करते तब तक प्यार की खुमारी वाला कीड़ा लोचे पर लोचा करता रहता है। 


वैलेंटाइन वीक निब्बा-निब्बी को अपनी औकात से कुछ ज्यादा ही छलांग लगाना सिखा देता है। जेब को देखकर मन मारना नहीं पड़ता। निब्बा-निब्बी का मुँह खुला की फरमाइश पूरी। निब्बा-निब्बी महंगा सस्ता नहीं देखते और मोलभाव नहीं करते। दिखावटी प्यार करने वाले ठीक उस बकरी की तरह होते हैं जो असली प्यार की कसाई वाली बोटी हज़म नहीं कर पाते। प्यार का कीड़ा एकदम नहीं तो धीरे-धीरे पैर पीछे करने लगता है। निब्बा-निब्बी का प्यार पागलपंती पर चलता है। निब्बा भी पागल, निब्बी भी पागल। वे वैलेंटाइन वीक देखकर प्यार करते हैं और देर-सबेर होने पर ब्रेकप के नाम पर अपने-अपने फोन की गैलरी डिलीट या फिर ब्लैकमेल करते हुए पाए जाते हैं। वैलेंटाइन की चुटकी, निब्बा-निब्बी को तिलमिलाती नहीं, गुदगुदाती है क्योंकि प्यार का कीड़ा उन्हें अंधा कर देती है। मेला बाबू थाना थाया, तू किसका बच्चा है– तू मेरा बच्चा है जैसे प्रेमालाप से वैलेंटाइन वीक गूँज उठता है और प्यार की पागलपंती वाला वाईफाई यूजर आईडी केवल 143 के पासवर्ड से काम करता है।


- डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’,

(हिंदी अकादमी, मुंबई से सम्मानित नवयुवा व्यंग्यकार)

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