सेकुलर का प्रमाणपत्र कहीं शिवसेना के अस्तित्व के लिए संकट ना खड़ा कर दे

By अश्विनी कुमार मिश्र | Oct 19, 2020

मंदिर खोलने को लेकर माननीय राज्यपाल का मुख्यमंत्री को लिखा पत्र अब राजनीतिक हथियार बन गया है। शिवसेना ऐसे कूद रही है जैसे उसने मैदान जीत लिया है। शिवसेना की आदत रही है- अपने मियाँ मिट्ठू बनने की। यह मंदिर खोलने का आग्रह करना क्या अनुचित है? राज्यपाल ने कहा है कि मदिरालय खुल रहा है तो देवालय खुलना चाहिए। राजस्व कमाने के लिए नैतिकता की और धर्म की तिलांजलि तो नहीं दी जा सकती। यह सही है कि मुंबई में कोरोना बढ़ा हुआ है लेकिन मुंबई को छोड़कर अन्यत्र देवालयों को खोलने में क्या दिक्कत है। उद्धव सरकार इस चुनौती को स्वीकार करने की बजाय उस पर बयानबाजी कर रही है, जिसका कोई तुक नहीं है।

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यहां यह समझना जरूरी है कि राज्य में महाविकास अघाड़ी की सरकार है, लेकिन वह कैसे बनी यह सभी को पता है। हिंदुत्व के नाम पर वोट लेकर जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनते ही सेकुलर बन जाने की याद ही तो राज्यपाल ने उद्धव सरकार को दिलाई, इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन आत्म श्लाघा में सत्ता के सिंहासन पर बैठे व्यक्ति को यह बात पसंद नहीं आयी और पलट वार का प्रदर्शन कर उनके भक्त अपनी पीठ "उखाड़ दिया" की तर्ज पर खुद ही ठोक रहे हैं। और तो और जब मंदिर खोलने के लिए विपक्ष ने प्रदर्शन किया तो आनन-फानन में सरकार ने कैबिनेट की मीटिंग बुला ली और उसमें लॉकडाउन-5 में भी मंदिर खोलने के बारे में कोई निर्णय नहीं लिया, स्कूल खोलने पर भी निर्णय नहीं हुआ।


लेकिन राजनीतिक खुन्नस निकलने के लिए जल युक्त शिवार योजना की जाँच के लिए एसआईटी बैठाने का निर्णय यह साबित करता है कि सत्ता पर बैठा व्यक्ति क्या सोच रहा है। इस तरह के विचार से सत्ता कितने दिन टिकेगी ? सत्ता में आने के लिए जो खुले आम धोखा महाराष्ट्र की जनता को दिया गया उसकी जांच कब और कौन कराएगा? शकुनि, शुक्राचार्य और मलेच्छों की संगत में उद्धव सरकार शिवसेना के  सत्व और तत्व की तिलांजलि दे चुकी है। यह सही है कि हर राजनीतिक दल को सत्ता में आने का सपना देखना चाहिए लेकिन शिवसेना ने जो सरकार बनायी है, उसमें राजनीतिक नकारत्मकता और फिर से भाजपा को राजनीतिक रूप से अछूत बनाने के नए षड्यंत्र का बीजारोपण शुक्रचार्यों और शकुनियों के साथ मिलकर किया जा रहा है। यह उपक्रम 90 के दशक में खूब चला था। तब भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए कई तरह के प्रधानमंत्री देश को मिले थे। कई नेताओं की लॉटरी लगी थी। कभी चरण सिंह तो कभी चंद्रशेखर, तो कभी देवेगौड़ा तो कभी गुजराल... बहुत हुआ था अछूत बनाने का नाटक!! तब यह फार्मूला राज्यों तक फैला !! अंततः देश की जनता ने समझ लिया कि राजनीति जलन पैदा करने, अछूत बनाने का खेल नहीं है बल्कि यह सही विकास और सेवा का माध्यम है।

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अछूत बनाने वाली राजनीति को पछाड़ कर समय ने करवट ली और देश में नए नेतृत्व का उदय हुआ। महाराष्ट्र में इस विधा का नेतृत्व सर्वप्रथम शरद पवार ने किया था। संविद की सरकार बनाकर मुख्य मंत्री बने थे। वही फार्मूला अभी महाराष्ट्र में लागू है, तब पवार ने वसंत दादा पाटिल को रोकने के लिए एक राजनीतिक प्रपंच किया था, आज उद्धव की आड़ में भाजपा को रोकने का गेम सफलता और कुटिलतापूर्वक चला रहे हैं। कांग्रेस तो भाजपा से पहले ही खुन्नस में है लेकिन शरद पवार और उद्धव भाजपा के साथ सरकार बना चुके हैं। महाविकास अघाड़ी एक साल पूरा करने की ओर बढ़ रही है। सारे कयासों को विफल करते हुए वह आगे बढ़ रही है।


उद्धव सरकार ने राज्यपाल पर प्रहार करते हुए कहा कि उसे किसी से प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के व्यंग्य बाण जिस तरह चुभे हैं उससे यह स्पष्ट हो गया है उद्धव अब प्रमाणित सेकूलर  हो गए हैं। यह प्रमाण पत्र कहीं शिवसेना के लिए अस्तित्व का संकट न पैदा कर दे यह उनके शकुनियों को समझना होगा।


-अश्विनी कुमार मिश्र

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