शिमला के जल संकट से इस बार का पूरा पर्यटन सीजन सूख गया

By संतोष उत्सुक | Jun 06, 2018

पानी के मामले में शिमला की इज्ज़त आज पानी पानी होने की जो कहानी है वो दशकों पुरानी है। गर्मियों में शिमला में पानी की किल्लत बढ़ जाती है। कुछ इलाके ऐसे हैं जहां पांच-छह दिन तक पानी नहीं आता। आम जनता त्रस्त होती है और टैंकर पानी सप्लाई करते हैं लेकिन लगातार प्रशासकीय नरमी व प्राकृतिक गर्मी बढ़ जाने से सूखा गुब्बारा फूट गया। हैरानगी यह कि कनलोग क्षेत्र के आठ घरों की टंकियां सीवरेज की गंदगी से लबालब हो गईं मगर नगर निगम के कानों में गंगा जल प्रवेश नहीं हुआ। संतोषजनक यह रहा कि विभिन्न प्रकार के विशिष्ट लोगों को टैंकर से पानी मिलता रहा। अस्पताल, स्कूलों, दफ्तरों से पानी भाग गया हालात बेकाबू हुए हुआ तो विपक्ष को धरना प्रदर्शन में राजनीति बहाने का अवसर मिला। यही नहीं इस बार का पर्यटक सीजन भी जल संकट से प्रभावित हुआ। जल संकट की खबरें सुनकर पर्यटकों ने इस शहर की ओर रुख नहीं किया जिससे राज्य की आमदनी प्रभावित हुई।

 

देश की लोकतांत्रिक व सांकृतिक परम्परा के अनुसार हाईकोर्ट ने अफसरशाही पर सवाल उठाने का सही काम किया। न्यायालय ने सहायक सालिसिटर जनरल को निर्देश दिए और कहा कि प्रशासन में सही तरीके से काम करने की इच्छा नहीं है। मुख्य अभियंता ने कोर्ट में शपथपत्र दिया कि प्रस्तावित परियोजनाओं पर 798 करोड़ रुपए खर्च आने का अनुमान है। सवाल आया जवाब गया। मुख्यमंत्री को आपात बैठक लेनी पड़ी। लोग पानी के लिए रात को बर्तन रखते रहे पानी वाली सुबह की इंतज़ार में। पानी लुटने व चोरी होने लगा। हेरिटेज कालका शिमला रेल के इंजन को पानी नहीं मिला। स्कूल, होटल, ढाबे, टायलेट बंद होने लगे। गाड़ी धोने, भवन निर्माण पर रोक लगी। बोतल बंद पानी की सेल की रेलम पेल हो गई। बिजली राज्य बिजली उधार लेने लगा। राजनीति कहने लगी पांच महीने पहले आई सरकार ने कहा था चौबीस घंटे पानी देंगे। मुख्यमंत्रीजी ने कमान संभाल ली। हर घंटे अपडेट ली। उच्च स्तरीय कमेटी गठित हुई। काबिल अफसर याद आए, पुलिस फ़ौज की मदद ली और मोर्चा संभाला। सचिवालय पानी में अस्त व्यस्त हो गया। वकीलों ने बहिष्कार किया।

 

हंसी तेज़ बारिश की तरह आई जब विपक्ष, जिन्होंने हिमाचल की सत्ता का मिनरल वाटर सबसे ज्यादा समय तक पिया, कहने लगा कि सरकार चहेतों को पानी दे रही है आम जनता परेशान है दो दिन में पानी नहीं दिया तो चक्का जाम कर देंगे। उनके शासन में तो मानो शिमला पानी की नदियों में डूबा हुआ था। हाईकोर्ट ने सख्ती से कहा कि जजों, मंत्रियों, विधायकों और अफसरों को टैंकरों से पानी न दें। अंतर्राष्ट्रीय ग्रीष्मोत्सव स्थगित हुआ। मंत्री आम लोगों के घर जा पूछने लगे पानी आ गया जी। पानी को अभी भी व्यर्थ बहते देख आंसू छलके। पानी का बिल न चुकाने वाले होटलों के कनेक्शन काटने के आदेश हुए जिनको नोटिस भेजने में नगर निगम हमेशा परेशान रही। अफसर निलंबित हुए। जिलाधीश ने खुद जाकर शासक पार्टी के विधायक के फ्लैट का मेन लाइन से दिया कनेक्शन कटवाया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने रात को दो बजे तक निगम के स्टोरेज टैंकों का जायजा लिया। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ, वाह, क्या हमारी सरकारें उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर तत्परता से अमल करती हैं।

 

वैसे भी सम्पन्नता के लिए क़ानून एक हिजाब होता है अन्यों के लिए खुली किताब होता है। अवैध कनेक्शनों की बात उभरी। की मैन की लापरवाही को सजा देने की बात हुई। व्ह्ट्स एप ग्रुप बने। उधर जंगलों की आग ने मौसम को खूब जलाया। मुख्यमंत्री ने केन्द्र सरकार से दो सौ करोड़ मांगे और मिल गए। प्रधानमंत्री कार्यालय में जवाब तलबी हुई। खबरें बताती हैं शिमला में तीस हज़ार कनेक्शन हैं जिनमें से दस हज़ार मेन लाइन से होने की आशंका है। कोर्ट ने कहा कि टंकी ओवर फ्लो होने पर आधा घंटे में कनेक्शन काट दो। इस दौरान थोड़ी बारिश ने पानी पहुंचा दिया और नगर निगम की महापौर ने अपने बेहद ज़रूरी, पूर्व सुनिश्चित, न टल सकने वाले, विदेशी दौरे से लौट कर कहा कि इस कान्फ्रेंस में शिमला का प्रतिनिधित्व करना ज़रूरी था। दूसरे देशों की कार्य प्रणाली व पर्यटन को लेकर काफी चीज़ें सीखने को मिलीं। बात सही है हमें दूसरों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है ख़ास तौर से विदेशी दौरों से लेकिन हमने शिमला के पानी के मामले में इतने दशकों में क्या सीखा।

 

यहां की भौगोलिक स्थितियों, उपलब्धता की बात हम कभी समझे ? ठेके पर जंगल धराशायी करवाने वाले राजनेताओं, अफसर व ठेकेदारों के स्वार्थी दिमाग में कभी आया कि बारिश का मुख्य आधार वृक्ष हैं ? जब  शिमला में पानी नहीं बरसेगा, बर्फ नहीं पड़ेगी तो क्या होगा? कितनी बार चेताया जा चुका है कि शिमला कंक्रीट का जंगल होता जा रहा है। किसने बनने दिया हम सबने मिलकर ? पानी तो उतना ही लिफ्ट होगा न जितना उपलब्ध होगा। बर्फ नहीं पड़ेगी तो पिघलेगी क्या। शक्तिशाली लोग और सरकारें क्या करती रहीं उनके स्वार्थ ने शिमला को पानी पानी कर दिया। पहाड़ी राज्य होने कारण वर्षा जल बहता रहा साथ में वर्षा जल संग्रहण करने का विचार भी।

 

दिलचस्प और प्रशंसनीय है कि अंग्रेजों ने शिमला में सन 1888 में निर्मित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एडवांस स्टडीज़ के भवन में बारिश के पानी के संग्रहण हेतु टैंक बनवाया था। इस बात पर संशय है कि हिन्दुस्तानियों के राज में बनी किसी इमारत में यह प्रावधान किया गया हो। पाइप लाइनों में रिसाव होता रहता है इतना कि चुल्लू भर पानी में डूब मरो वाला मुहावरा बार बार टपक रहा है। दो लाख से ऊपर आबादी के शिमला के जल वितरण केन्द्रों की लीकेज को ठीक न करने की असमर्थता या लापरवाही, नगर निगम के पानी की चोरों से मिलीभगत, रसूख का शासन, बिना प्लानिंग अवैध निर्माण अगर रहा, सबको एक नियम के तहत राशनिंग नहीं हुई, हर पुरानी, नई व प्रस्तावित इमारत में वर्षा जल संग्रहण व हर तरह के पानी का सदुपयोग नहीं हुआ तो हर बरस ऐसा होगा।

 

-संतोष उत्सुक

 

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