नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): रेशम के धागों को उत्कृष्ट कपड़ा बनाने के लिए सदियों से जाना जाता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने अब रेशम कीटों से उत्पादित होने वाले सेरिसिन नामक प्रोटीन के औषधीय गुणों की पहचान की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस प्रोटीन का उपयोग सौंदर्य प्रसाधन एवं त्वचा की देखभाल से जुड़े कॉस्मेटिक उत्पाद बनाने में किया जा सकता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि सेरिसिन का आणविक भार, संरचना और मेटाबोलाइट्स की मात्रा रेशम के कोवों (कोकून) से उसके निष्कर्षण के तरीकों पर निर्भर करती है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गुवाहाटी के शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्रकार के रेशम कीटों से सेरिसिन के निष्कर्षण की नई विधियां विकसित की हैं और इन विधियों से प्राप्त सेरिसिन के गुणों का मूल्यांकन किया है। सेरिसिन प्रोटीन से पृथक किए गए तत्वों के गुणों की जांच के लिए पशुओं पर इसका परीक्षण किया गया है।
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इस अध्ययन में बॉम्बिक्स मोरी (मोरी), एनथेरा असमेनसिस (मूगा) और फिलोसैम्निया राइसिनी (एरी) समेत तीन रेशम किस्मों के कोकून से सेरिसिन प्राप्त किया है। सेरिसिन प्राप्त करने के लिए पांच अलग-अलग विधियों का प्रयोग करके उनके प्रभाव का आकलन किया गया है। इसके बाद, प्रोटीन के नमूनों का परीक्षण उनमें पाए जाने वाले भौतिक एवं रासायनिक गुणों तथा एंटी-ऑक्सीडेंट गतिविधियों की पड़ताल के लिए किया गया है।
पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव से केराटिनोसाइट्स नामक त्वचा कोशिकाओं को सुरक्षा प्रदान करने में मूगा रेशम कीट से प्राप्त सेरिसिन को अधिक असरदार पाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि उच्च मात्रा में सेरिसिन ऑक्सीडेंट समर्थक के रूप में काम करता है। यह कैंसर कोशिकाओं में मुक्त रूप से ऑक्सीडेंट उत्पादन में वृद्धि कर सकता है, जिससे रोगग्रस्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
सेरिसिन को उसके एंटी-ऑक्सीडेंट और अन्य औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। ये गुण अमीनो एसिड संरचना और सेरिसिन के द्वितीयक चयापचयों (पॉलीफेनोल्स और फ्लेवोनोइड्स) पर निर्भर होते हैं।
विभिन्न रेशम कीटों के अनुसार सेरिसिन के गुण भी अलग-अलग होते हैं और कोकून से सेरिसिन का निष्कर्षण पेप्टाइड्स की लंबाई पर निर्भर करता है। एक टन ताजा कोकून के प्रसंस्करण से करीब 200 किलोग्राम सेरिसिन निकलता है। लेकिन, औद्योगिक उत्पादन में मूगा और एरी जैसी रेशम किस्मों के निष्कर्षण के दौरान प्राप्त सेरिसिन को फेंक दिया जाता है।
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आईआईटी, गुवाहाटी से जुड़े शोधकर्ता डॉ. बिमान बी. मंडल ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “कपड़ा उद्योग से निकलने वाले इस अपशिष्ट का हमने मूल्यांकन किया है ताकि उसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट, कैंसर-रोधी और पराबैंगनी विकिरण से त्वचा की देखभाल संबंधी गुणों का पता लगाया जा सके। मूगा रेशम कीटों से प्राप्त सेरिसिन का उपयोग त्वचा सुरक्षा के लिए कॉस्मेटिक जैल बनाने के लिए किया गया है। यह जैल पराबैंगनी विकिरण के कारण होने वाली सूजन, बुढ़ापा, झुर्रियां रोकने, बाहरी त्वचा के नुकसान, त्वचा को खुरदरा होने से बचाने, त्वचा को मुलायम बनाने एवं त्वचा में नमी बनाए रखने के लिए किया जा सकता है।”
पूर्वोत्तर भारत की कोकून प्रजातियों के सेरिसिन नमूनों में अन्य क्षेत्रों के सेरिसिन के मुकाबले अधिक एंटी-ऑक्सीडेंट, कैंसर-रोधी तत्व और त्वचा सुरक्षा संबंधी गुण पाए गए हैं। इस तकनीक का पेटेंट करा लिया गया है और अब इसका व्यवसायीकरण करने की तैयारी की जा रही है। इस अध्ययन के परिणाम फोटोकेमिकल ऐंड फोटोबायोलॉजिकल साइंसेज, एसीएस एप्लाइड बायोमैटेरियल्स सहित अन्य शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं। शोधकर्ताओं में डॉ. मंडल के अलावा जेडी प्रवीण कुमार शामिल थे।
(इंडिया साइंस वायर)
भाषांतरण: उमाशंकर मिश्र