शिवराज सिंह चौहान का चुनाव लड़ रही हैं बहनें-भांजियां

By दीपाली शुक्ला | Apr 13, 2024

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है। मध्यप्रदेश में लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान उनके नाम है। अपने कार्यकाल में उन्होंने जनता का अभूतपूर्व विश्वास कमाया है, जो सार्वजनिक तौर पर कई बार हमारे सामने आता है। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान उन्हें जिस प्रकार का स्नेह नागरिकों की ओर से मिल रहा है, वैसा कम ही देखने को मिलता है। विशेषकर माताओं-बहनों के साथ उनका आत्मीय संबंध बन गया है। मध्यप्रदेश की महिलाएं सच में उन्हें अपने भाई और लड़कियां उन्हें अपने मामा के तौर पर स्वीकार कर चुकी हैं। वे चुनाव प्रचार के लिए जहाँ भी जा रहे हैं, अनूठे नजारे दिखायी दे रहे हैं। महिलाएं चुनाव लड़ने के लिए उन्हें पैसे दे रही हैं। छोटी लड़कियां उन्हें अपनी गुल्लक भेंट कर रही हैं। बड़ी बहनें जिस तरह अपने घर आए भाई के हाथ में दस-बीस रुपये थमा देती हैं, वैसे ही नजारे शिवराज सिंह चौहान के चुनाव प्रचार में दिख रहे हैं। ये महिलाएं भी जानती हैं कि उनके दस-बीस रुपये से शिवराज सिंह चौहान का चुनाव खर्च नहीं निकलेगा और वे यह भी जानती हैं कि शिवराज अपना चुनाव लड़ने के लिए आर्थिक रूप से सक्षम भी हैं। इसके बाद भी महिलाएं अपने शिवराज भैया के हाथ में 10, 20 या 50 रुपये थमा रही हैं, तो उसके पीछे भावनात्मक रिश्ता है। अपनत्व है। साफ दिखायी देता है कि शिवराज सिंह चौहान का चुनाव उनकी ‘बहने और भांजियां’ लड़ रही हैं। जब किसी नेता का चुनाव आम जनता लड़ती हुई दिखायी दे तो समझ लीजिए कि उसका राजनीतिक कद क्या होगा। अपनी बहनों-भांजियों से भेंट पाकर शिवराज सिंह चौहान भी भावुक हो जाते हैं और कहते हैं कि जनता का यह प्रेम अद्भुत है, इस प्रेम के बदले तीनों लोक का सुख भी कहीं नहीं लगता। इस प्रेम को शीश झुकाकर प्रणाम करता हूं। मेरे बेटा-बेटी भी गुल्लक भेंट कर रहे हैं। मैं अपने बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा। स्मरण रहे कि विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान के कारण भाजपा को महिलाओं का एक तरफा वोट मिला है। महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई ‘लाड़ली बहना योजना’ ने पूरा खेल ही बदल दिया था। इसके अलावा भी शिवराज सिंह चौहान की कई योजनाओं ने महिलाओं को भाजपा का मतदाता बना दिया है। मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल में उन्होंने प्रदेश की महिलाओं को सशक्त बनाने और उनके सम्मान को बढ़ाने के लिए कई नवाचार किए, जिन्हें अन्य राज्यों की सरकारों ने भी अपनाया।  


लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें विदिशा से अपना प्रत्याशी बनाया है। भाजपा के लिए विदिशा सबसे सुरक्षित सीटों में से एक है। यहाँ यदि भाजपा का उम्मीदवार प्रचार करने न भी जाए, तो भारी अंतर से विजय उसके हिस्से आएगी। वहीं, शिवराज सिंह चौहान के लिए तो यह और भी सुरक्षित सीट है। मुख्यमंत्री बनने से पूर्व वे यहीं से लोकसभा सांसद थे। वर्ष 1990 में नौवीं विधानसभा के लिए शिवराज सिंह चौहान सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट से पहली बार विधायक बनकर आए थे। 23 नवंबर, 1991 को ही शिवराज ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। विदिशा से तत्कालीन सांसद अटल बिहारी वाजपेयी की सीट रिक्त होने के बाद यहां हुए उपचुनाव में शिवराज सिंह चौहान पहली बार लोकसभा पहुंचे थे। इसके बाद साल 2004 तक लगातार शिवराज सिंह चौहान पांच बार यहां से सांसद रहे। लोकसभा चुनाव में एक तरह से शिवराज सिंह चौहान अपने घर लौटे हैं। भारतीय जनता पार्टी और राजनीतिक विश्लेषक भी यह दावा कर रहे हैं कि शिवराज यहाँ से देश की सबसे बड़ी जीत का कीर्तिमान रच सकते हैं। उल्लेखनीय है कि 2019 में यहाँ से भाजपा के रमाकांत भार्गव ने कांग्रेस ने शैलेंद्र पटेल को लगभग पाँच लाख वोटों के भारी-भरकम अंतर से पराजित किया था।

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पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चुनाव प्रचार अभियान का विश्लेषण करने पर ध्यान आता है कि विदिशा संसदीय क्षेत्र के नागरिकों को साथ उनका संबंध बहुत प्रगाढ़ है। इसलिए ही कांग्रेस भी उनके सामने किसी नये और युवा चेहरे को उतारने में संकोच कर गई। कांग्रेस ने अपने उस प्रत्याशी पर दांव लगाया है, जो विदिशा से दो बार यानी 1980 और 84 में सांसद का चुनाव जीत चुके हैं। कांग्रेस के प्रत्याशी प्रताप भानु शर्मा का क्षेत्र में दबदबा है। वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी से चुनाव हार गए थे लेकिन संसद के गलियारे में भेंट होने पर अटलजी ने प्रताप भानु की प्रशंसा की थी। प्रताप भानु ने लोकसभा चुनाव में अटलजी को अच्छी चुनौती दी थी। हालांकि आज की परिस्थितियां पहले जैसी नहीं है और न ही आज प्रताप भानु शर्मा की क्षेत्र में वैसी पकड़ है। उनके सामने शिवराज सिंह चौहान के रूप में ऐसा राजनेता है, जिसका चुनाव क्षेत्र की जनता स्वयं लड़ रही है।


- दीपाली शुक्ला,

टीवी पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

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