Bhagat Singh Death Anniversary: देश के इस सपूत ने नहीं स्वीकारी गुलामी, 23 मार्च को भगत सिंह को दी गई थी फांसी

By अनन्या मिश्रा | Mar 23, 2023

भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद भगत सिंह ने महज 23 साल की उम्र में देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी थी। वह आजादी की लड़ाई के दौरान सभी युवाओं के यूथ आइकॉन थे। वह देश की आजादी में आगे आने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करते थे। आज के दिन यानि की 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी दे दी गई थी। काफी कम उम्र में भगत सिंह के मन में देश के लिए कुछ कर गुजरने की चाह पैदा हो गई थी। उनका पूरा जीवन संघर्षों में बीता। आइए जानते हैं भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें...


जन्म

भगत का जन्म लायलपुर ज़िले के बंगा, जो वर्तमान में पाकिस्तान में 27 सितंबर 1907 को सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह था। भगत सिंह के जन्म के दौरान उनके पिता किशन जेल में थे। भगत सिंह में बचपन से अपने परिवार वालों में देश के लिए भक्ति देखते चले आ रहे थे। जिसके कारण उनके अंदर भी बचपन से ही देशप्रेम जाग गया था। भगत सिंह के चाचा अजीत सिंह भी स्वतंत्रता सेनानी थी। भगत सिंह के पिता ने उनकी शिक्षा के लिए दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में एडमिशन कराया था।


जलियावाला बाग हत्याकांड

भगत सिंह साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से बहुत दुखी हुए थे। वह महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन से जुड़े थे। भगत सिंह ने इस आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था। गांधीजी के कहने पर भगत सिंह ब्रिटिश बुक्स को जला दिया करते थे। गांधी जी ने चौरी चौरा में हुई हिंसा के चलते असहयोग आन्दोलन बंद कर दिया था। लेकिन भगत सिंह को गांधी जी का फैसला अच्छा नहीं लगा और वह गांधीजी की अहिंसावादी बातों को छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वॉइन करने की सोचने लगे।

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आजादी की लड़ाई

जब लाहौर के नेशनल कॉलेज से भगत सिंह BA कर रहे थे। तब उनकी मुलाकात भगवती चरन, सुखदेव थापर और अन्य कुछ लोगों से हुई। उस दौरान आजादी की लड़ाई उस समय जोरों पर थी। देश प्रेम के कारण भगत सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और पूरी तरह से देश की आजादी में कूद गए। जब भगत सिंह के घरवालों ने उनसे शादी करने के लिए कहा तो भगत सिंह ने जवाब दिया कि अगर वह आजादी से पहले शादी करेंगे तो उनकी दुल्हन मौत होगी। 


भगत सिंह कॉलेज में कई नाटकों में भाग लेते थे। जिस कारण वह काफी अच्छे एक्टर भी थे। देश भक्ति से परिपूर्ण नाटकों से वह देश के युवाओं को आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिएओ प्रोत्साहित करते थे। सबसे पहले भगत सिंह ने नौजवान भारत सभा ज्वाइन की। इस दौरान भगत सिंह मैग्जीन 'कीर्ती' के लिए कार्य करने लगे। वहीं साल 1926 में भगत सिंह को नौजवान भारत सभा का सेक्रेटरी बना दिया गया। साल 1928 में भगत सिंह ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ज्वॉइन कर ली। इसे चंद्रशेखर आजाद ने बनाया था।


साइमन कमीशन का विरोध

30 अक्टूबर 1928 को पूरी पार्टी ने साथ मिलकर भारत में आये और साइमन कमीशन का विरोध करना शुरू कर दिया। इस दौरान उनके साथ लाला लाजपत राय भी थे। साइमन वापस जाओ का नारा लगाते हुए वह लोग लाहौर रेलवे स्टेशन पर खड़े थे। जिसके बाद वहां पर लाठी चार्ज कर दिया गया। जिसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह से घायल हो गए थे। जिसके बाद उनकी मौत हो जाने से भगत सिंह को गहरा आघात पहुंचा था। जिसके बाद भगत सिंह और उनकी पार्टी ने अंग्रेजों से बदला लेनी की ठानी।


लालाजी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनकी पार्टी के लोगों ने ऑफिसर स्कॉट को मारने का प्लान बनाया, लेकिन भूल से उन लोगों ने असिस्टेंट पुलिस सौन्देर्स की हत्या कर दी। अपने आप को अंग्रेजों से बचाने के लिए वह लाहौर से भाग निकले। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को पकड़ने के लिए चारों ओर जाल बिछा दिया था। वहीं अंग्रेजों से बचने के लिए भगत सिंह ने अपनी बाल और दाढ़ी भी बनवा दी थी। यह कार्य उनकी सामाजिक धार्मिकता के खिलाफ है। लेकिन उन्हें देश के आगे कुछ भी दिखाई नहीं देता था।


भगत सिंह को फांसी

भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर साल 1929 में असेंबली हॉल में बम ब्लास्ट किया। इस दौरान उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजदेव व सुखदेव से हो चुकी थी। बम ब्लास्ट के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद उन्हें जेल में भी कई तरह की यातनाएं दी गई। भगत सिंह ने जेल के अंदर कैदियों की स्थिति को सुधार के लिए भी आन्दोलन शुरू कर दिया। वहीं भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी की सजा 24 मार्च को थी। लेकिन पूरा देश उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन कर रहा था। जिस कारण अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी दे दी गई।

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