Birthday Special: डॉ राम मनोहर लोहिया अपने दम पर बदलते थे शासन का रूख, समाजवाद को दिया बढ़ावा

Dr Ram Manohar Lohia
Prabhasakshi

डॉ लोहिया ने देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जहां जवाहर लाल नेहरू के विवाद के कारण वह कांग्रेस से अलग हो गए तो वहीं उन्होंने नेहरू की नीतियों का भी खुलकर विरोध किया। उन्होंने हमेशा अपने विचारों को स्वतंत्र होकर सबसे सामने रखा।

देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद कई नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया। इन्हीं में से एक नेता राम मनोहर लोहिया थे। राम मनोहर लोहिया में देश भक्ति कूट-कूटकर भरी हुई थी। राममनोहर लोहिया अपनी प्रखर देशभक्ति और तेजस्‍वी समाजवादी विचारों वाले नेता थे। इसी कारण वह न केवल अपने समर्थकों के बीच बल्कि विरोधियों के बीच सम्मानित थे। आज के दिन यानि की 23 मार्च को उनका जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर राम मनोहर लोहिया की जिंदगी से जुड़ी कुछ खास बातें...

जन्म और शिक्षा

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में 23 मार्च 1910 को राममनोहर लोहिया का जन्म हुआ था। वहीं उनके पिता हीरालाल अध्यापक होने के साथ ही एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे। हीरालाल महात्मा गांधी के काफी बड़े अनुयायी थे। वह जब भी महात्मा गांधी से मुलाकात के लिए जाते तो अपने साथ राम मनोहर लोहिया को भी ले जाया करते थे। जिसके कारण बचपन से ही राम मनोहर लोहिया पर भी महात्मा गांधी के व्यक्तित्व का काफी गहरा असर हुआ। बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से स्नातक तक की पढ़ाई करने के बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए वह बर्लिन चले गए।

कुशाग्र बुद्धि वाले राम मनोहर लोहिया ने वहां जाकर मात्र तीन महीने में जर्मन भाषा पर अपनी पकड़ मजबूत बना ली थी। उनके इस कौशल से प्रोफेसर जोम्‍बार्ट भी चकित रह गए थे। राम मनोहर लोहिया ने केवल दो वर्षों में ही अर्थशास्‍त्र में डॉक्‍टरेट की उपाधि प्राप्‍त कर ली। जर्मनी में चार साल बिताने के बाद डॉ लोहिया भारत वापस लौट आए। वापस आने के बाद उन्होंने अपना जीवन जंग-ए-आजादी के लिए समर्पित कर दिया।

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समाजवादी नेता

मानव की स्थापना के पक्षधर डॉ. लोहिया समाजवादी थे। समाज ही उनका कार्यक्षेत्र था। वह अपने कार्यों से जनमंगल की अनुभूतियों से महकाना चाहते थे। डॉ लोहिया चाहते थे कि समाज में किसी भी व्यक्ति के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव, दुराव आदि न रहे। समाज में हर व्यक्ति को बराबर सम्मान मिले और सब लोगों का मंगल हो। डॉ लोहिया ने हमेशा विश्व-नागरिकता का सपना देखा था। वह किसी व्यक्ति को किसी देश का नहीं बल्कि विश्व का नागरिक मानते थे। वह जनता को जनतंत्र का असली निर्णायक मानते थे। डॉ लोहिया अक्सर कहा करते थे कि उन पर ढाई व्यक्तियों का गहरा प्रभाव रहा है। जिनमें एक मार्क्स, दूसरे महात्मा गांधी और आधा जवाहरलाल नेहरू का प्रभाव था।

स्वतंत्रता युद्ध में अहम भूमिका

स्वतंत्र भारत की राजनीति और चिंतन धारा पर गिने-चुने लोगों के व्यक्तित्व ने गहरा असर छोड़ा था। इनमें से एक डॉ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण प्रमुख रहे हैं। दोनों की भूमिका भारत की स्वतंत्रता युद्ध के आखिरी दौर में बड़ी अहम रही है। साल 1933 में डॉ लोहिया ने गांधीजी के साथ मिलकर मद्रास में देश को आजाद करने की लड़ाई में शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा को विधिवत रूप से पेश किया। वहीं साल 1935 में डॉ लोहिया को कांग्रेस के अध्यक्ष रहे नेहरू ने कांग्रेस के महासचिव पद की जिम्मेदारियां सौंपी।

भारत छोड़ो आंदोलन

साल 1942 में महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का ऐलान किया। इस आंदोलन में डॉ राम मनोहर लोहिया ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस दौरान डॉ लोहिया ने संघर्ष के नए शिखरों को छुआ था। जयप्रकाश नारायण और डॉ. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार होकर भूमिगत रह आंदोलन का शानदार नेतृत्‍व किया। लेकिन आखिरी में उनको गिरफ्तार कर लिया गया। जिसके बाद उनको साथ 1946 में रिहा किया गया था।

निधन

डॉ राम मनोहर लोहिया की जिंदगी में साल 1946-47 काफी निर्णायक रहे। आजादी के समय डॉ लोहिया और पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच कई मतभेद पैदा हुए। जिसके कारण उन दोनों के रास्ते हमेशा के लिए अलग हो गए। वहीं 57 वर्ष की आयु में 12 अक्टूबर 1967 को डॉ राम मनोहर लोहिया का निधन हो गया।

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