Bajirao I Birth Anniversary: दूर-दूर तक सुनाई देती थी बाजीराव प्रथम के जौहर की ध्वनि, जीवन में नहीं हारे एक भी युद्ध

By अनन्या मिश्रा | Aug 18, 2025

बाजीराव प्रथम न सिर्फ एक महान योद्धा बल्कि एक कुशल रणनीतिकार भी थे। बड़े-बड़े सूरमा बाजीराव के सामने पानी मांगते थे। बाजीराव महज 20 साल की उम्र में पेशवा बन गए थे। बता दें कि पिता के निधन के बाद उनको यह जिम्मेदारी छत्रपति शाहूजी महाराज ने सौंपी थी। इसके बाद बाजीराव ने जो करतब दिखाए कि उनके जौहर की ध्वनि दूर-दूर तक सुनी जाने लगी थी। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर बाजीराव प्रथम के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

बता दें कि 18 अगस्त 1700 को बाजीराव प्रथम का जन्म हुआ था। बाजीराव को मराठा समुदाय आज भी बहुत सम्मान से देखता है। उनको युद्ध कौशल पिता से विरासत में मिला था। उन्होंने बचपन से ही ट्रेनिंग लेना शुरूकर दिया था। जब बाजीराव मराठा साम्राज्य के पेशवा नियुक्त हुए, तो उनका हर कौशल निखरता चला गया। बाजीराव ने दो कार्य बड़ी मजबूती से किए, जिनमें से एक मराठा साम्राज्य का विस्तार और दूसरा हिंदू धर्म की रक्षा के लिए अनेक प्रयास किए।

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पेशवा बने बाजीराव

जब बाजीराव पेशवा बने तो भारत में मुगल सक्रिय थे, वहीं पुर्तगालियों और अंग्रेजों का दबाव बढ़ने लगा था। इसके बाद भी बाजीराव न तो डरे और न ही डिगे। वह अपने बनाए मार्ग पर चलते रहे और मराठा साम्राज्य की नीतियों के मुताबिक ताबड़तोड़ फैसले करते करे। वह लगातार युद्ध लड़ते रहे और जीतते रहे। बाजीराव के इसी कौशल और रणनीति के कारण मराठा साम्राज्य का विस्तार उत्तर भारत तक हुआ।


हर युद्ध में मिली जीत

बाजीराव ने पालखी का युद्ध जीता और इसमें मुगलों की हार हुई और मराठा साम्राज्य का विस्तार दक्षिण भारत में हुआ। वहीं मालवा पर विजय पाने के लिए बाजीराव को करीब 2 साल तक युद्ध लड़ना पड़ा। मालवा का युद्ध 1729 से 1731 तक चला। यहां पर भी मुगलों को हार मिली और बाजीराव ने मराठा साम्राज्य का विस्तार उत्तर भारत में किया। साल 1737 में बाजीराव भोपाल पर हमला कर बैठे। यहां पर भी मुगलों को हराया और संधि कर मध्य भारत में भी मराठा साम्राज्य की स्थापना को बल दिया। इसी साल बाजीराव ने दिल्ली पर हमला बोला और मुगलों को हिला दिया।


बाजीराव खुद के शानदार घुड़सवार थे, इसी कारण वह दुश्मन सेना के इरादे को खत्म कर देती थी। वह दुश्मन की कमजोरियों पर हाथ रखते थे। बाजीराव सीधे आक्रमण से बचते थे, इससे विरोधी कमजोर हो जाते थे और बाजीराव जीत जाते थे। पेशवा के रूप में वह न सिर्फ युद्ध जीतने में माहिर थे, बल्कि वह मराठा साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिए तमाम प्रशासनिक उपाय करते थे।


मृत्यु

लगातार युद्धों में व्यस्त रहने के कारण वह अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह दिखते थे। इसी कारण अज्ञात बुखार की वजह से 4-5 दिन के बाद 28 अप्रैल 1740 को उनका निधन हो गया था। बता दें कि मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के रावरखेड़ी नामक जगह पर बाजीराव ने आखिरी सांस ली।

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