By अनन्या मिश्रा | Aug 18, 2025
स्क्रिप्ट राइटर, स्टोरी राइटर और गीतकार गुलजार आज यानी की 18 अगस्त को अपना 91वां जन्मदिन मना रहे हैं। वह पिछले 6 दशकों से हर उम्र और हर वर्ग के उतने ही पसंदीदा बने हुए हैं, जितने 67-70 और 80 के दशक में थे। उन्होंने जब भी कलम पकड़ी तो ऐसा जादू बिखेरा कि लोगों को दीवाना बना दिया। गुलजार ने जिस भी विधा में हाथ डाला, उसको गुलजार ही कर दिया। फिर चाहे वह कविता हो, गीत हो, पटकथा हो या फिर कहानी और निर्देशन हो। उन्होंने हर काम शिद्दत और लगन के साथ किया है। तो आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर गुलजार के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
पाकिस्तान के झेलम के दीना में 18 अगस्त 1934 को गुलजार का जन्म हुआ था। इनका पूरा नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। देशों के बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब के अमृतसर में आकर बस गया था। जब गुलजार छोटे थे, तभी उनके सिर से मां का साया उठ गया था। वहीं पिता का प्यार भी उनके हिस्से में नहीं आया। ऐसे में गुलजार ने अपनी जिंदगी के खालीपन को शब्दों से भरना शुरू किया। अपने सपनों को पूरा करने के लिए गुलजार ने मुंबई का रुख किया, लेकिन यहां की जिंदगी इतनी भी आसान नहीं थी। इसलिए उन्होंने शुरूआती दिनों में मुंबई के वर्ली के एक गैराज में मैकेनिक का काम करना शुरू किया।
बता दें कि गुलजार की जिंदगी ने नया और अहम मोड़ तब लिया, जब उनकी मुलाकात फेमस निर्देशक बिमल रॉय से हुई। इसके बाद उनको फिल्म 'बंदिनी' में गाना लिखने का मौका दिया। इस फिल्म में गुलजार साहब ने 'मोरा गोरा अंग लईले, मोहे श्याम रंग दईदे' गीत लिखा, जिसको काफी ज्यादा पसंद किया गया। इसके बाद उनको पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी। गीत लिखने के अलावा उन्होंने कई फिल्मों का निर्देशन किया। गुलजार साहब ने 'नमकीन', 'मौसम', 'किरदार', 'आंधी' और 'हुतूतू' जैसी फिल्मों को निर्देशित की थी।
गुलजार साहब को 20 फिल्मफेयर अवॉर्ड मिले हैं। उनको 11 फिल्मफेयर अवॉर्ड सर्वश्रेष्ठ गीतकार और बेस्ट डायलॉग लिखने के लिए 4 अवॉर्ड मिले हैं। वहीं 'स्लमडॉग मिलेनियर' के लिए उनको ऑस्कर अवॉर्ड मिला।
गुलजार ने एक के बाद एक कई खूबसूरत गीत लिखे। उनके गानों की फेहरिस्त काफी लंबी है। लेकिन 'कजरारे कजरारे', 'छैंया छैंया' और 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं' ये ऐसे तीन गाने हैं, जोकि गुलजार की कलम से निकले हैं। गुलजार की लेखनी में दिल्ली की बल्लीमारान की गलियों से लेकर मुंबई की रेलगाड़ियों तक का सफऱ महसूस होता है।