हाईवे के किनारे खड़ी गाड़ियों पर सुप्रीम टिप्पणी

By डॉ. आशीष वशिष्ठ | Nov 13, 2025

देश भर में नेशनल हाईवे व शहर के अंदर व आउटर में संचालित होटलों, ढाबों के किनारे भारी वाहन चालकों द्वारा यातायात नियमों की अनदेखी करते हुए रोड पर जहां-तहां वाहनों को खड़ा कर दिया जाता है। सड़क किनारे खड़े ऐसे वाहन अन्य वाहन चालकों और यात्रियों के लिए यमदूत साबित हो रहे हैं। बीती 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान के फालौदी और तेलंगाना के श्रीकाकुलम के सड़क हादसों में 37 लोगों की मौत पर सुओ मोटो कार्रवाई करते हुए सड़क सुरक्षा की गंभीर खामियों पर चिंता जताई है।


सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान हाईवे के किनारे अवैध ढाबों पर भी चिंता जताई। कहा कि इन ढाबों पर आने वालों की गाड़ियां हाईवे पर खड़ी रहती हैं, जिनसे हादसे होते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानी एनएचएआई और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से सड़क किनारे मौजूद ढाबों और सड़क मेंटेनेंस की स्थिति पर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया। जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस विजय विश्नोई की बेंच ने कहा कि दो सप्ताह के भीतर एक सर्वे कराया जाए, जिससे यह पता चल सके कि कितने ढाबे राजमार्गों के किनारे ऐसे क्षेत्रों में बनाए गए हैं जो इस तरह की सुविधाओं के लिए अधिसूचित नहीं है यानी अवैध ढाबों के बारे में जानकारी देने को कहा गया है। यातायात के नियमों के मुताबिक, हाईवे के किनारे सड़क पर ट्रक व अन्य वाहन खड़े नहीं किए जा सकते हैं।


शीर्ष न्यायालय की टिप्पणी के आलोक में बात की जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि विकास के नाम पर हमने सरपट वाहन दौड़ने वाली सड़कें तो बना दी, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं किया कि यात्रा दुर्घटनाओं से निरापद कैसे रहे। यह हृदय विदारक होता है कि सड़कों के निर्माण में तकनीकी खामियों, ट्रकों की अराजकता तथा राजमार्ग के अवरोधों के चलते परिवार के परिवार असमय काल कवलित हो जाते हैं। जिम्मेदार विभाग और सरकार की चतुराई यह होती है कि वह समस्या के मूल में जाने की बजाय जांच और फौरी कार्रवाई में लग जाता है। इन हादसों की जवाबदेही तय नहीं की जाती। हर हादसे के बाद पुरानी तंत्र पुरानी स्क्रिप्ट को दोहराता है।  

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आमतौर पर किसी भी बड़े हादसे में शिकार हुए यात्रियों की संख्या का ही जिक्र होता है और सरकार मुआवजे की घोषणा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। अधिक से अधिक हमारे विमर्श का मुद्दा यह होता है कि दोषी कौन था? कौन सा ड्राइवर लापरवाही से वाहन चला रहा था, वह नशे में था या उसे नींद की झपकी लग गई। या फिर वाहन में तकनीकी खामी की वजह से हादसा हुआ। लेकिन वास्तव में हम उन तकनीकी व वास्तविक खामियों को नजरअंदाज कर देते हैं जो दुर्घटना का कारण बनती हैं।


एक ओर जहां सड़क निर्माण में ठेकेदार द्वारा की गई चूक होती हैं, वहीं सड़कों के किनारे बेतरतीब बने ढाबे भी होते हैं, जहां अकसर ट्रक चालक अपने वाहन गलत ढंग से खड़े कर देते हैं। लेकिन हर हादसे में कहीं न कहीं ऐसे कारण जरूर होते हैं, जो दुर्घटना की तात्कालिक वजह बनते हैं। लेकिन अक्सर हम उन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण कारक को अनदेखा करने की वजह से भविष्य में ऐसी ही दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति होने की आशंका बलवती होती है।


भारत में सड़क हादसे एक गंभीर चिंता का विषय हैं, जहां हर साल बड़ी संख्या में लोगों की जान जाती है। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 4,80,583 से अधिक दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1,72,890 से अधिक मौतें हुईं और 4,62,825 लोग घायल हुए। देश में प्रतिदिन लगभग 1,316 हादसे और 474 मौतें होती हैं, यानी हर घंटे लगभग 20 जानें जाती हैं। दुनिया के केवल 1 प्रतिशत वाहन भारत में हैं, लेकिन सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली वैश्विक मौतों का 11 प्रतिशत हिस्सा यहीं है।


यह विडंबना ही है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर जगह-जगह टोल संग्रह केंद्रों के जरिये टैक्स तो खूब वसूले जाते हैं, लेकिन राजमार्गों को दुर्घटनाओं से निरापद बनाने के लिये गंभीर प्रयास नहीं होते। कुकुरमुत्तों की तरह सड़कों का अतिक्रमण करते ढाबों पर लगाम नहीं लगाई जाती। गंभीरता से पड़ताल नहीं होती है कि क्या सड़क निर्माण में ठेकेदार ने सभी तकनीकी मानकों का पालन किया है?


सबसे ज्यादा बड़े वाहन ढाबों पर खड़े नजर आते हैं। रात व दिन में यहां वाहन एक के पीछे एक खड़े रहते हैं। रात के समय तो आलम और भी भयंकर होता है, यहां से निकलने में भी डर बना रहता है। नियमित चेकिंग न होने और चालान न होने की वजह से यहां हादसे का डर बना रहता है। छुटपुट मामले तो आये दिन होते रहते हैं।बरसात के मौसम में इन ढाबों के पास हादसे की अधिक आशंका रहती है। ट्रक मिट्टी में खड़े होकर हाईवे पर आते हैं तो मिट्टी सड़क पर जमा हो जाती है। बरसात में इस मिट्टी से फिसलकर बाइक सवार हादसे का शिकार हो जाते हैं। इस के अलावा कई बार ट्रकों या अन्य लोडिंग वाहनों में उनकी क्षमता से अधिक माल भरा होता है। मुख्यता लोहे के सरिये, गर्डर आदि जो लोडिंग की लंबाई में न आते हुए पीछे तक निकले रहते हैं। इस तरह के वाहन भी हादसों का कारण बनते हैं।


यातायात पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से लाखों रुपये रुपये प्रचार-प्रसार पर बहाया जाता है। इसके बावजूद सड़क सुरक्षा के नियम निर्देश कहीं भी धरातल पर देखने को नहीं मिलते हैं। गोष्ठियों और सेमिनारों में तो वाहन चालकों को नियमों का पाठ पढ़ाया जा जाता है लेकिन हाईवे ट्रक, डीसीएम, कंटेनर या अन्य वाहन चालकों को समझाने वाला कोई नहीं है। देश में सैकड़ों लोगों की मौत सड़क के किनारे गलत तरीके से खड़े ट्रक से वाहनों के टकराने से होती है, लेकिन दोषी ट्रक चालक को कड़ी सजा नहीं मिलती। वहीं दूसरी ओर वाहन चालकों को भी गति सीमा में रहने तथा अन्य सावधानियों का सख्ती से पालन करना चाहिए। सरकारों का दायित्व भी बनता है कि राजमार्गों पर रफ्तार की सीमा के नियमन के साथ बाधामुक्त सफर भी सुनिश्चित करें।


निश्चित रूप से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की जवाबदेही बनती है कि राजमार्गों को दुर्घटना मुक्त बनाने के लिये नियमित जांच-पड़ताल की जाती रहे। ताकि निर्दोष लोगों के बेमौत मरने का सिलसिला खत्म हो सके। इन विभागों व मंत्रालयों का जिम्मा सिर्फ टोल वसूलना ही नहीं है बल्कि सड़कों को सुरक्षित बनाना भी इनकी जवाबदेही है। निश्चित रूप से सड़क के निर्माण की गुणवत्ता तथा उसे दुर्घटना मुक्त बनाने के लिये उच्च सुरक्षा मानकों का क्रियान्वयन भी उतना जरूरी है। इसके अलावा सख्त कानून व निगरानी के जरिये ट्रकों व भारी वाहनों को सड़क के किनारे खड़े करने पर रोक लगायी जाए। भारत में हर साल हजारों सड़क हादसे होते हैं. ज्यादातर में लापरवाही जिम्मेदार होती है। सुप्रीम कोर्ट का ये कदम सरकार और अधिकारियों पर दबाव डालेगा। इससे हाईवे सुरक्षित होंगे, ढाबे नियंत्रित जगह पर चलेंगे और ट्रक पार्किंग के लिए अलग जगह बनेगी। आम जनता की जान बचाने के लिए ये बड़ा फैसला साबित हो सकता है।


- डॉ. आशीष वशिष्ठ,

स्वतंत्र पत्रकार

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