By दिव्यांशी भदौरिया | Dec 06, 2025
इस शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एआई से जुड़ी एक जनहित याचिका (PIL)में की गई मांग को खारिज कर दिया। बता दें कि, इस याचिका में अदालतों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) और मशीन लर्निंग के 'बिना नियंत्रण'इस्तेमाल पर रोक लगाने की बात कही गई थी। इस पर अदालत ने कहा कि एआई के संभावित जोखिमों के बारे में वह अच्छी तरह से जानते हैं। हालांकि, इस तरह के मुद्दों को कोर्ट के आदेशों से नहीं, बल्कि प्रशासनिक तरीके से बेहतर संभाला जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने याचिकाकर्ता की दलीलें सुनीं। याचिकाकर्ता का दावा है कि एआई-जेनरेटड कंटेंट से न्यायिक कामकाज पर असर देखने को मिलेगा और इसका गलत इस्तेमाल किया जा रहा है।
एआई कभी-कभी नकली न्यायायिक निर्णय बना देता है
याचिका दर्ज करने वाले वकील ने कहा है कि कई बार एआई ऐसे न्यायिक फैसले बना देता है जो असल में मौजूदा ही नहीं होते हैं और बाद में वे फैसले दस्तावेजों में शामिल भी हो जाते हैं। मुख्य न्यायधीश ने माना कि यह चिंता एकदम उचित है और कहा कि वकीलों और जजों दोनों को एआई-जनित फैसलों की जांच करना सीखना होगा। इसके लिए न्यायिक अकादमी में ट्रेनिंग दी जा सकती है। मुख्य न्यायधीश ने कहा कि, हम एआई का इस्तेमाल बहुत सावधानी से करते हैं और हम नहीं चाहते कि एआई हमारी निर्णय लेने की क्षमता में बाधक बने"।
एआई मदद कर सकता है, लेकिन फैसला इंसान ही करेगा
इस दौरान मुख्य न्यायधीश में स्पष्ट तरीके से कहा कि एआई केवल मददगार टूल हो सकता है। हालांकि, असनी न्यायिक तर्क और फैसले हमेशा मानव जज ही करेंगे। वकील ने बताया है कि निचली अदालतें भी कई बार 'अस्तित्वहीन सुप्रीम कोर्ट के फैसलों' का हवाला देने लगी हैं। इस पर मुख्य न्यायधीश ने कहा कि न्यायपालिका इन खतरों से वाकिफ है और जजों को लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि- "जजों को हर चीज क्रॉस-चेक करनी होगी। समय के साथ वकील और हम दोनों सीखेंगे।"