By अभिनय आकाश | May 20, 2023
सिंगूर और नंदीग्राम ये दो ऐसे कंधे हैं जिनपर चढ़कर ममता बनर्जी ने 2011 में उस लाल दुर्ग को ध्वस्त कर दिया, जिसपर वाम मोर्चा 34 साल से काबिज था। ममता बनर्जी ने नंदीग्राम से कृषि भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया था। जनवरी 2007 के महीने सीपीएम प्रदर्शनकारियों और टीएमसी कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़प हुई। 14 मार्च 2007 का दिन था जब नंदीग्राम में 14 लोग पुलिस फायरिंग के शिकार हो गए थे। लेकिन नंदीग्राम का इतिहास केवल इतना ही नहीं है।
महाभारत से लेकर मौर्यकाल तक और स्वतंत्रता से पहले ही खुद को आजाद कराने वाले नंदीग्राम का इतिहास जितना समृद्ध रहा है उनता ही दिलचस्प भी है। ऐसे में आइए आपको सिलसिलेवार ढंग से नंदीग्राम की यात्रा पर लिए चलते हैं। नंदीग्राम पश्चिम बंगाल के किसी भी अन्य शहर की तरह ही रहा है। यहां तक कि आपको किसी जमाने में लगे माकपा के झंडे ही नजर आते थे। संकरी सर्वहारा गलियां, पैदल चलने वालों से भरा हुआ मार्ग। कुछ भी शहर के हाल के इतिहास के साथ धोखा नहीं करता है। नंदीग्राम हमेशा चावल और सब्जियों की खेती का केंद्र रहा है। ये मुसलमानों की उच्च आबादी की व्याख्या करता है। कुछ मुसलमान बुनकर भी हैं। लेकिन इतना ही नहीं नंदीग्राम वैष्णवों का केंद्र भी है।
मार्च 2007 में जब पुलिस ने नंदीग्राम में प्रवेश किया, तो मस्जिदों से विशेष अज़ान और वैष्णवों द्वारा प्रार्थना की गई। किसान, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, नंदीग्राम में हमेशा एकजुट रहे हैं। जैसा कि इसका नाम ही नंदीग्राम है। जिसमें किसी प्राचीन संस्कृति की खुश्बू आती हो। वैसे ये कुछ हद तक सच भी है और अगर आप इसकी गलियों से गुजर कर देखेंगे तो कदमें तामलुक तक खुद-ब-खुद ठहर जाएगी। वर्तमान दौर में तामलुक पूर्वी मेदिनापुर जनपद का मुख्यालय है। लेकिन इसने खुद में 5 हजार साल पुरानी विरासत को संजोया हुआ है। थोड़ा टटोलेंगे तो इसकी जड़ें महाभारत काल तक आपको लिए जाएगी।