By अभिनय आकाश | Mar 19, 2024
पाकिस्तान के बीचों बीच एक ऐसा हिस्सा भी है जिसे आजाद रखने की वकालत कभी खुद मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। भारत पिछले 15,000 वर्षों से अस्तित्व में है। अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और हिन्दुस्तान सभी भारत के हिस्से थे। 'अखंड भारत' कहने का अर्थ यही है। 18 अगस्त 1919 को अफगानिस्तान को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली थी। हालांकि इससे कहीं पहले अफगानिस्तान एक स्वतंत्र राष्ट्र बन चुका था। 26 मई 1739 को दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह अकबर ने ईरान के नादिर शाह से संधि कर अफगानिस्तान उसे सौंप दिया था। 17वीं सदी तक 'अफगानिस्तान' नाम का कोई राष्ट्र नहीं था। अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासनकाल (1747-1773) में ही हुआ। तभी यह एक स्वतंत्र राष्ट्र बना था। बलूच राष्ट्रवादी आंदोलन 1666 में स्थापित मीर अहमद के कलात की खानत को अपना आधार मानता है। मीर नसीर खान के 1758 में अफगान की अधीनता कबूल करने के बाद कलात की सीमाएं पूरब में डेरा गाजी खान और पश्चिम में बंदर अब्बास तक फैल गईं। ईरान के नादिर शाह की मदद से कलात के खानों ने ब्रहुई आदिवासियों को एकत्रित किया और सत्ता पर काबिज हो गए।
भारत ने विलय का प्रस्ताव ठुकरा दिया...
27 मार्च 1948 कलात के एक महल में खान मीर अहमद खान आराम फरमा रहे थे। सुबह का वक्त घड़ी में ठीक 9 बज रहे थे। ऑल इंडिया रेडियो पर न्यूज का प्रसारण हुआ। अनमने ढंग से लेटे खान अपना एक कान रेडियो पर लगाए हुए थे कि तभी उनके पैरों तले जमीन खिसकने लगी। रेडियो पर न्यूज आ रही थी कि भारत ने उनके विलय का प्रस्ताव ठुकरा दिया। खान इसे सुनकर चौंके। हालांकि मुद्दा ये नहीं था कि भारत ने प्रस्ताव ठुकराया बल्कि रेडियो के जरिए पाकिस्तान को इसकी खबर लग चुकी है। अगले ही रोज जो हुआ वो इतिहास है। 1947 में भारत की आजादी के समय वर्तमान में बलूचिस्तान के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र चार रियासतों कलात, खारन, लास बेला और मकरान में विभाजित हो गया। इन राज्यों को भारत में विलय, पाकिस्तान में शामिल होना, या अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने जैसे तीन विकल्प दिए गए। मुहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव में खरान, लास बेला और मकरन ने पाकिस्तान का हिस्सा बनना चुना।
खान का समर्पण
अपनी किताब 'बलूच नेशनलिज्म: इट्स ओरिजिन एंड डेवलपमेंट अप टू 1980' में ताज मोहम्मद ब्रेसेग ने जिन्ना और खान के बीच हुई मुलाकात का जिक्र किया है, जिसमें पाकिस्तानी पीएम ने जिन्ना को इस्लामाबाद के साथ विलय में तेजी लाने की सलाह दी थी। खान ने जिन्ना की मांग को अस्वीकार कर दिया और कहा कि चूंकि बलूचिस्तान कई जनजातियों की भूमि है और किसी भी निर्णय से पहले वहां के लोगों से परामर्श किया जाना चाहिए। आम आदिवासी सम्मेलन के अनुसार, मैं कोई भी निर्णय नहीं लेता, जो उन पर बाध्यकारी नहीं हो सकता जब तक कि उन्हें उनके खान द्वारा विश्वास में लिया जाता है। कलात के विलय पर जिन्ना के प्रस्ताव के बाद कलात के खान ने विधायिका की बैठक बुलाई, जिसमें संसद के दोनों सदनों ने न केवल विलय प्रस्ताव का सर्वसम्मति से विरोध किया, बल्कि यह भी तर्क दिया कि यह पहले के समझौते की भावना के खिलाफ है। दिसंबर 1947 में जनरल पुरवेस ने हथियारों की आपूर्ति के लिए राष्ट्रमंडल संबंध कार्यालय और लंदन में आपूर्ति मंत्रालय से संपर्क किया, लेकिन अंग्रेजों ने उनकी मांग को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि कलात को पाकिस्तान सरकार की मंजूरी के बिना कोई सैन्य सहायता नहीं मिलेगी। खान ने बलूच सरदारों (नेताओं) का समर्थन जुटाने की भी कोशिश की, लेकिन दो को छोड़कर किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। जब जिन्ना ने देखा कि खान केवल समय बर्बाद कर रहे हैं, तो उन्होंने 18 मार्च, 1948 को खारन, लास बेला और मेकरान क्षेत्रों को अलग करने की घोषणा की। इसने कलात को एक द्वीप के रूप में छोड़ दिया। हालाँकि, उसी समय खान ने भारतीय अधिकारियों और अफगान राजा से मदद की सख्त गुहार लगाई, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। खान के पास जिन्ना की शर्तें मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।