By अभिनय आकाश | Jul 10, 2023
समान नागरिक संहिता को लेकर केंद्र सरकार कितनी गंभीर है इसका पता इसी बात से चलता है कि 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोपाल में समान नागरिक संहिता की जरूरत पर अपनी विचार रखी थी। इसके अगले ही दिन बीजेपी शासित उत्तराखंड से ये खबर आई कि वहां समान नागरिक संहिता को लेकर फाइनल ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया। खबर ये भी है कि केंद्र सरकार संसद के मानसून सत्र में समान नागरिक संहिता का विधेयक पेश करने जा रही है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार काफी समय से ही समान नागरिक संहिता को लेकर तैयारियों में जुटी थी। अब इस पर संसद की मुहर लगाने वाली तैयारी हो रही है। संसद का मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने शनिवार को कहा कि संसद का मानसून सत्र 20 जुलाई को शुरू होगा और 11 अगस्त तक चलेगा। किन राजनीतिक दलों ने समर्थन व्यक्त किया है और किसने यूसीसी के खिलाफ बोला है? संसद में संख्याबल का खेल इस पर कैसे असर डालेगा। आइए इस रिपोर्ट से समझते हैं।
यूसीसी, जिसका इरादा सभी धर्मों के लिए समान व्यक्तिगत कानूनों का कोड बनाना है, लंबे समय से भाजपा का एजेंडा रहा है। केंद्र सरकार अपना पूरा मन बना चुकी है कि जल्दी से जल्दी समान नागरिक संहिता को देश पर लागू किया जाए। समान नागरिक संहिता को लेकर बीजेपी का रुख एकदम साफ है। लेकिन विपक्ष की इसको लेकर अलग-अलग चिंताएं हैं। कई विपक्षी पार्टियां यूसीसी के विरोध पर अड़ी हुई हैं। कुछ इसको सैद्धांति तौर पर सही भी मान रहे हैं। आम आदमी पार्टी का वैसे तो दिल्ली में विभिन्न मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ टकराव हमेशा से होता रहा है और अध्यादेश के खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख भी किया। लेकिन यूसीसी के लिए आप ने सैद्धांतिक रूप से"समर्थन व्यक्त किया है। इसके साथ ही मुद्दे पर व्यापक सहमति का भी आह्वान किया है।
यूसीसी के समर्थन और विरोध में कौन-कौन
समर्थन: आम आदमी पार्टी, उद्धव ठाकरे की शिवसेना
विरोध: कांग्रेस, राजद, जेडीयू, एआईएमआईएम, आईयूएमएल, सपा, डीएमके, शिरोमणि अकाली दल
क्या कहता है लोकसभा का गणित
बीजेपी की सरकार पिछले 9 सालों से लगातार सत्ता में है। ऐसे में इस विधेयक आसानी से लोकसभा में पास करवा लेगी। लोकसभा में बीजेपी के पास 301 सांसद हैं। ऐसे में अकेले दम पर ही बीजेपी इसे पास करवा सकती है। लेकिन राज्यसभा के लिए राह छोड़ी मुश्किल हो सकती है।
राज्यसभा में राह कितनी आसान
राज्यसभा में इस वक्त 237 सांसद हैं। यहां बहुमत के लिए 119 वोट की आवश्यकता होती है। बीजेपी के पास 92 सांसद हैं। एनडीए में शामिल एआईएडीएमके के पास 4 और अन्य सहयोगी दलों के पास एक सांसद है। इसके साथ एक निर्दलीय और पांच नॉमिनेटेड मेंबर के समर्थन से ये संख्या 109 पर पहुंच जाती है। ये बहुमत के आंकड़े से 10 कम है। नवीन पटनायक की बीजू जनता दल भी नौ सांसदों का सहयोग कर दे तो ये संख्या 118 तक पहुंच जाती है। लेकिन फिर भी एक की संख्या से बहुमत कम है। वाईएसआर कांग्रेस वे विरोध किया है। ऐसे में संहिता पर केजरीवाल की आप अगर अपने सासंदों का समर्थन देती है तो ये विधेयक आसानी से कानून बन जाएगा।
एक गणित ऐसा भी
समान नागरिक संहिता से जुड़े विधेयक को पास कराने के लिए आम आदमी पार्टी के मदद की जरूरत नहीं भी पड़ सकती है। अगर इससे पहले ही राज्यसभा के चुनाव हो जाते हैं तो। पश्चिम बंगाल के चुनाव में एक सीट बीजेपी को मिलना तय है। ये वर्तमान में कांग्रेस के पास है। गुजरात और गोवा की चार सीटें बीजेपी के पास पहले से है। ऐस में एक और संख्या बीजेपी की झोली में आते ही राज्यसभा में भी बीजेपी को बहुमत मिल जाएगा और विधेयक कानून की शक्ल ले लेगा।