The Bhootni Review: एक हॉरर-कॉमेडी जो डराने के साथ-साथ दिल भी छू जाती है

By न्यूज हेल्पलाइन | May 01, 2025

राइटर और डायरेक्टरः सिद्धांत सचदेव कास्टः संजय दत्त, मौनी रॉय, सनी सिंह, पलक तिवारी, निकुंज शर्मा, आसिफ खान और अन्य

ड्यूरेशनः 2 घंटे 10 मिनट

रेटिंग: 3.5


हॉरर और कॉमेडी का कॉम्बिनेशन जब सही बैठता है, तो वो दर्शकों को डराने के साथ-साथ खूब हँसाता भी है। ‘द भूतनी’ भी ऐसी ही एक कोशिश है, जो देसी अंदाज़ में डर, रोमांस और इमोशन का तड़का लगाती है। कॉलेज की दुनिया, लोककथाओं की छाया और अधूरी मोहब्बत की तड़प—इन सबको मिलाकर डायरेक्टर सिद्धांत सचदेव ने एक अलग ही दुनिया रची है। तो क्या ये हॉरर-कॉमेडी फिल्म आपको बांध पाएगी? चलिए, जानते हैं पूरे रिव्यू में।


कहानी

कहानी शुरू होती है एक वॉइस ओवर से, जो हमें एक यूनिवर्सिटी के उस रहस्यमयी 'वर्जिन ट्री' के बारे में बताता है, जिसके बारे में मान्यता है कि वो सच्ची मोहब्बत मांगने वालों की मुरादें पूरी करता है। लेकिन इस पेड़ से जुड़ी एक डरावनी सच्चाई भी है—सालों पहले इसी कैंपस में कई छात्रों की रहस्यमयी मौतें हो चुकी हैं। धीरे-धीरे यह पेड़ हॉन्टेड माना जाने लगता है।


कट टू प्रेज़ेंट डे, यहां आता है शांतनु, एक ऐसा लड़का जो प्यार में टूटा हुआ है और अपनी बेबसी में उसी पेड़ के पास जा पहुंचता है। जैसे ही वो सच्चे प्यार की गुहार लगाता है, अजीब घटनाएं शुरू हो जाती हैं। एक साया, एक डर, और किसी की मौजूदगी का अहसास और सब कुछ बहुत तेजी से बदलने लगता है। तभी उसकी जिंदगी में दो लड़कियां आती हैं एक दोस्त, जो हर कदम पर साथ है लेकिन रहस्यमयी भी लगती है; और दूसरी, जो अचानक उसकी ज़िंदगी में आती है और उसका दिल चुरा लेती है… पर वो इंसान नहीं, आत्मा है।


इस सबके बीच एंट्री होती है एक पुराने छात्र की, जिसे सब 'बाबा' कहते हैं, वो पैरानॉर्मल एक्सपर्ट है और उसे इस पेड़ से जुड़ा सच मालूम है। जैसे-जैसे होलिका दहन नज़दीक आता है, खतरे भी बढ़ते जाते हैं। अब सवाल ये है कि क्या शांतनु अगला शिकार बनेगा? क्या मौनी का प्यार मोहब्बत है या मौत का जाल? क्या पलक वाकई इंसान है या उसकी कोई अपनी कहानी है? आखिर क्या होगा शांतनु, मौनी और पलक का? क्या बाबा सबको बचा पाएंगे? या फिर एक बार फिर वही वर्जिन ट्री किसी और की जान ले लेगा?


परफॉर्मेंस

इस दिलचस्प कहानी को ज़िंदा करते हैं इसके किरदार, और सबसे पहले ज़िक्र होना चाहिए संजय दत्त का, जो 'बाबा' बनकर स्क्रीन पर छा जाते हैं। पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर के रूप में उनका स्वैग, उनकी स्टाइल और डायलॉग डिलीवरी सबकुछ मजेदार भी है और दमदार भी। हंसी और हीरोपंती का ये कॉम्बो उनके फैंस के लिए किसी ट्रीट से कम नहीं है।


सनी सिंह शंतनु के रोल में पूरी ईमानदारी से उतरते हैं। एक दिल टूटा, इमोशनल लड़का जो प्यार में डूबा हुआ है, सनी ने उसे बड़ी सादगी से निभाया है। उनकी मासूमियत और जज्बा दोनों स्क्रीन पर अच्छे से उभरते हैं।


पलक तिवारी अनन्या के किरदार में एक खामोश गहराई लेकर आती हैं। उनके एक्सप्रेशन और परफॉर्मेंस में एक अपनापन है, जो दर्शकों को जोड़ने का काम करता है। वहीं निकुंज शर्मा और आसिफ खान की जोड़ी हँसी का फुल डोज़ है। इनकी ट्यूनिंग और पंचलाइन डिलीवरी दर्शकों को कई बार खुलकर हँसने पर मजबूर करती है।


मौनी रॉय की बात करें तो वो 'मोहब्बत' के किरदार में सबसे रहस्यमयी और असरदार दिखती हैं। उनकी आंखों में डर है, पर उनके किरदार में छिपा दर्द भी झलकता है। मौनी ने इस रोल को बेहद खूबसूरती से निभाया है, जो फिल्म खत्म होने के बाद भी याद रहता है।


तकनीकी पकड़ से सजी कहानी

‘द भूतनी’ सिर्फ अपनी कहानी से नहीं, बल्कि उसकी पेशकश के अंदाज़ से भी इंप्रेस करती है। श्रेयस कृष्णा की सिनेमैटोग्राफी हर फ्रेम में एक माहौल गढ़ती है—कभी रहस्यमय, तो कभी जादुई। विजुअल इफेक्ट्स डर को बढ़ाते हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा नहीं जाते। वहीं, बंटी नेगी की एडिटिंग फिल्म की रफ्तार को थामे रखती है—ना कोई खिंचाव, ना ठहराव—हर सीन को उसके असर के साथ चलने दिया गया है।


संगीत में धमक और जज्बात दोनों

संतोष नारायणन का म्यूज़िक यहां सिर्फ गानों की गूंज नहीं, बल्कि कहानी का हिस्सा बनता है। 'आया रे बाबा' से लेकर 'महाकाल' तक, हर ट्रैक फिल्म के मूड और कल्चर को बखूबी कैरी करता है। बैकग्राउंड स्कोर कभी डराता है, कभी बेचैनी बढ़ाता है और कई बार चुपचाप इमोशन को जगह देता है। डायलॉग्स की बात करें तो वो किरदारों के रंग में ऐसे घुले हैं कि लगता है जैसे असली ज़िंदगी की बात हो रही हो—तेज़, तंज़ भरे और पूरी तरह मसालेदार।


दिल से जुड़ने वाली हॉरर-कॉमेडी

लेकिन असली जीत वहां है जहां फिल्म डर और हंसी से आगे जाकर दिल से जोड़ती है। ये सिर्फ आत्माओं की कहानी नहीं, बल्कि उस तड़प की है जो किसी को समझे जाने की उम्मीद में छुपी होती है। ‘द भूतनी’ रंगों, त्योहारों और रिश्तों की भी बात करती है। ये फिल्म आपको हँसाती है, डराती है और फिर कहीं न कहीं चुपचाप छू भी जाती है। यही बैलेंस इसे खास बनाता है, ये न सिर्फ देखने लायक है, बल्कि महसूस करने वाली फिल्म है।

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