By अंकित सिंह | Nov 24, 2025
प्रभासाक्षी के साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह हमने कर्नाटक को लेकर कांग्रेस के भीतर मचे घमासन पर चर्चा की। इस दौरान हमेशा की तरह मौजूद रहे प्रभासाक्षी के संपादक नीरज कुमार दुबे। नीरज दुबे ने साफ तौर पर कहा कि कर्नाटक का नाटक लगातार चलता हुआ दिखाई दे रहा है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि जब कांग्रेस को प्रचंड जीत मिली थी तब यह पर्दे के पीछे एक समझौता हुआ था कि ढाई ढाई साल के तहत सिद्धारमैया और डीके शिवाकुमार मुख्यमंत्री बनेंगे। हालांकि, सिद्धारमैया अपना ढाई साल का कार्यकाल पूरा कर चुके हैं। ऐसे में डीके शिवाकुमार गुट सक्रिय हो गया है। नीरज दुबे ने कहा कि कांग्रेस के लिए यह मसला कोई नया नहीं है। यह हमने राजस्थान में भी देखा, मध्य प्रदेश में देखा, छत्तीसगढ़ में देखा, कुछ दिन पहले हमने हिमाचल प्रदेश में भी देखा। लेकिन कांग्रेस इन तमाम घटनाओं को एक तरीके से शांत करने में विफल रही है। यही कारण है कि समय-समय पर कांग्रेस के नेताओं के जो दर्द है, वह सामने निकलकर आते हैं।
प्रभासाक्षी संपादक नीरज दुबे ने कहा कि छत्तीसगढ़ में हमने देखा कि भूपेश बघेल का जो प्रतिद्वंदी था वह बहुत ज्यादा मजबूत नहीं था। राजस्थान में हमने देखा कि सचिन पायलट पहले आक्रामक हुए लेकिन बाद में वह थोड़े शांत हुए। लेकिन मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थनों ने जो बगावत की, उसके बाद सरकार गिर गई। कर्नाटक में भी कुछ ऐसा ही लग रहा है। कर्नाटक में डीके शिवाकुमार मजबूत नेता है। वह फिलहाल प्रदेश अध्यक्ष की भी कमान संभाले हुए हैं। संगठन पर डीके शिवाकुमार की अच्छी पकड़ है। ऐसे में सिद्धारमैया के लिए वह लगातार चुनौतियां पेश कर रहे हैं और यही कारण है कि कांग्रेस में कुर्सी को लेकर बार-बार इस तरह की चर्चाएं शुरू हो जाती है। नीरज दुबे ने इस बात को भी स्वीकार किया कि डीके शिवकुमार को कहीं ना कहीं भाजपा का भी अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। तभी वह बार-बार हिम्मत दिखा भी रहे हैं।
प्रभासाक्षी संपादक नीरज दुबे ने आगे कहा कि प्रधानमंत्री ने जो भविष्यवाणी की है वह क्या कर्नाटक से ही शुरू होने वाली है? प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर कहा था कि मैं कांग्रेस में एक बड़ा विभाजन देख रहा हूं। ऐसे में क्या इसकी शुरुआत कर्नाटक से होगी? बड़ा सवाल तो यह भी है कि कांग्रेस के जो अध्यक्ष है मल्लिकार्जुन खड़गे वह कर्नाटक से आते हैं, लेकिन कर्नाटक के ही झगड़े को वह सुलझा नहीं पा रहे हैं। वह कर्नाटक जा रहे हैं कर्नाटक के विधायक दिल्ली आ रहे हैं। इसके अलावा मल्लिकार्जुन खड़गे यह कह रहे हैं कि कर्नाटक का विवाद जो है वह पार्टी आलाकमान तय करेगा। लेकिन सवाल यह है कि पार्टी में आलाकमान कौन है? जब पार्टी अध्यक्ष आलाकमान की बात करें तो कहीं ना कहीं कुछ और संकेत इसके मिलने शुरू हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि कुर्सी को लेकर कांग्रेस के भीतर चल रही लड़ाई की वजह से जनहित के कामों पर भी असर पड़ रहा होगा। यही कारण है कि विकास के पैसे की कमी हो गई है। विधायकों को फंड नहीं मिल रहा है। लोगों की परेशानियां सामने आ रही है।
बंगाल में एसआईआर को लेकर हो रही चर्चा पर भी हमने नीरज दुबे से सवाल पूछा। नीरज दुबे ने कहा कि बंगाल में एसआईआर का असर दिखना शुरू हो गया है। हमने देखा है कि कैसे लोग अब वापस जा रहे हैं। जो लोग अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं, उन्हें यह पता चल रहा है कि अगर हम इसमें पकड़े जाते हैं तो या तो हमें जेल में रहना पड़ेगा या जो केंद्र बनाए जा रहे हैं, वहां रहना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि एसआईआर से देश में जो अवैध रूप से घुसपैठिए शामिल हो गए हैं। उन्हें बाहर निकालने का एक तरीके से मार्ग प्रशस्त हो रहा है। इसमें जो राजनीतिक दल है, उन्हें सहयोग देना चाहिए। वोट बैंक की राजनीति से बाहर निकलना चाहिए क्योंकि घुसपैठिया सिर्फ हमारे देश में नहीं आते, बल्कि हमारे लोगों के हक को भी छीनते है। यही कारण है कि मतदाता सूची का शुद्धिकरण जरूर होना चाहिए। अगर आप भारतीय हैं तो आपको इससे कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आपके ही वोट से यहां की सरकार चुनी जाती है।