वैश्विक मंच पर चमकती हिन्दी और क्षेत्रीय राजनीति की कुंठा

By योगेश कुमार गोयल | Jul 16, 2025

हिन्दी केवल एक भाषा नहीं बल्कि भारत की आत्मा, चेतना, अस्मिता और स्वाभिमान की प्रतीक है। यह भारतीय संस्कृति की वह अदृश्य डोर है, जो देश के कोने-कोने को जोड़ती है। दुर्भाग्यवश हिन्दी जब अपनी वैश्विक उड़ान भर रही है, उसी समय देश के भीतर कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक स्वार्थों के कारण हिन्दी का विरोध हो रहा है। खासकर महाराष्ट्र जैसे राज्य में, जहां मुंबई में हिन्दी फिल्मों का केंद्र है, वहां हिन्दी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, नारेबाजी और हिन्दी बोलने वालों पर हमले की घटनाएं चिंताजनक हैं। यह विडंबना ही है कि एक ओर जहां दुनिया हिन्दी को सम्मान दे रही है, वहीं भारत में कुछ शक्तियां इसे राजनीतिक हथियार बना रही हैं।


यह सच है कि भारत में विविध भाषाओं और बोलियों का समृद्ध संसार है। संविधान 18वीं अनुसूची में 22 भाषाओं को मान्यता देता है। इनमें से हर भाषा का सम्मान और संरक्षण आवश्यक है लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक जनसंख्या द्वारा बोली जाने वाली हिन्दी के खिलाफ वैमनस्य फैलाया जाए। हिन्दी को थोपे जाने की राजनीति और विरोध दोनों ही गलत हैं। भाषा का विकास संवाद और सहमति से होता है, न कि टकराव से। आज जब हिन्दी आर्थिक, तकनीकी, सांस्कृतिक और साहित्यिक रूप से दुनिया में भारत की पहचान बन रही है, तब इसे विरोध का विषय बनाना केवल संकीर्ण राजनीति का परिचायक है। दुनियाभर में आज जब अपनी-अपनी भाषाओं को लेकर चिंता बढ़ रही है, ऐसे समय में हिन्दी न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को छू रही है। एक ओर जहां सैंकड़ों भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं, वहीं हिन्दी वैश्विक मंच पर तेजी से उभर रही है, जिसे लेकर हर भारतवासी को गर्व होना चाहिए।

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विश्व में लगभग 6900 भाषाएं बोली जाती हैं, जिनमें से 35 से 40 प्रतिशत भाषाएं आज अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही हैं। इसके विपरीत हिन्दी अब दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा बन चुकी है। ‘एथ्नोलॉग’ की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, हिन्दी के 61.5 करोड़ मूल वक्ता हैं। यह आंकड़ा भाषा के प्रसार और इसकी प्रभावशीलता का प्रमाण है। मन्दारिन और अंग्रेजी के बाद हिन्दी की यह स्थिति केवल आंकड़ों की बात नहीं है बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक शक्ति का वैश्विक स्वीकार भी है। वर्षों से हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र के मंच पर लाने के प्रयास किए जाते रहे हैं। जून 2022 में जब संयुक्त राष्ट्र ने हिन्दी, उर्दू और बांग्ला में जानकारी उपलब्ध कराने की पहल की तो यह हिन्दी के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था। इससे स्पष्ट हुआ था कि वैश्विक संस्थाएं अब भारतीय भाषाओं की उपेक्षा नहीं कर सकती।

 

दुनिया के 50 से अधिक देशों में 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ्रांस, जापान, पोलैंड, नेपाल, फिजी, मॉरीशस जैसे देशों में हिन्दी के अध्ययन और शोध को लेकर विशेष रुचि देखी जा रही है। यूजीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले पांच वर्षों में भारत में हिन्दी सीखने आने वाले विदेशी विद्यार्थियों की संख्या में 300 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। दक्षिण प्रशांत महासागर में स्थित फिजी में हिन्दी को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। वहां फिजी हिन्दी महापरिषद जैसी संस्थाएं हिन्दी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं। मॉरीशस में 2002 में स्थापित विश्व हिन्दी सचिवालय हिन्दी भाषा के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार का सशक्त मंच बना हुआ है। यहां से विश्व हिन्दी पत्रिका और विश्व हिन्दी समाचार जैसे प्रकाशनों के जरिए हिन्दी की वैश्विक उपस्थिति मजबूत की जा रही है। रूस में भी हिन्दी साहित्य का प्रभाव गहराता जा रहा है। अनेक रूसी विद्वान तुलसीदास, प्रेमचंद, माखनलाल चतुर्वेदी, महादेवी वर्मा जैसे भारतीय लेखकों के साहित्य का रूसी में अनुवाद कर रहे हैं। रूस के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी भाषा और साहित्य का व्यापक अध्ययन होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि साहित्यिक दृष्टि से भी हिन्दी की जड़ें वैश्विक धरातल पर गहरी हो रही हैं।


हिन्दी को ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने भी सम्मान दिया है। ‘बच्चा’, ‘अच्छा’, ‘दादागिरी’, ‘पंडित’, ‘जुगाड़’, ‘गुलाब जामुन’ जैसे अनेक हिन्दी शब्द अब इस प्रतिष्ठित शब्दकोश का हिस्सा बन चुके हैं। यह उस सांस्कृतिक प्रभाव की मान्यता है, जो हिन्दी शब्दों के जरिए दुनिया में फैल रहा है। अमेरिका की ‘ग्लोबल लैंग्वेज मॉनीटर’ संस्था हिन्दी की शब्दसंपदा को समृद्ध बता चुकी है। एक अनुमान के अनुसार हिन्दी में 1.25 लाख से अधिक शब्द हैं। वहीं, अमेरिका की 2023 की जनगणना रिपोर्ट बताती है कि वहां हिन्दी बोलने वालों की संख्या 10 लाख से अधिक हो चुकी है। 2011 की तुलना में यह वृद्धि अभूतपूर्व है। बॉलीवुड और भारतीय सिनेमा ने भी हिन्दी के वैश्विक विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हिन्दी फिल्मों की लोकप्रियता आज अमेरिका, इंग्लैंड, यूएई, सिंगापुर, मलेशिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, तुर्की तक फैली है। कई देशों में हिन्दी फिल्मों के रेडियो चौनल, टीवी चैनल, फिल्म समारोह और लाइव शो आयोजित किए जाते हैं, जो हिन्दी को सांस्कृतिक राजदूत के रूप में प्रस्तुत करते हैं।


हिन्दी की लोकप्रियता को सोशल मीडिया ने भी एक नई ऊंचाई दी है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक और एक्स पर हिन्दी सामग्री का विस्तार प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। 2024 की एक रिपोर्ट बताती है कि हिन्दी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 20 करोड़ पार कर चुकी है। गूगल के अनुसार, हिन्दी कंटेंट की वार्षिक वृद्धि दर 94 प्रतिशत है जबकि अंग्रेजी की घटती जा रही है। अब ई-कॉमर्स और तकनीक की दुनिया में भी हिन्दी एक मजबूत बाजार भाषा बन चुकी है। अमेजन, फ्लिपकार्ट जैसी दिग्गज ई-कॉमर्स कंपनियां भी अब हिन्दी में सेवाएं दे रही हैं। डेलॉइट की 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 65 प्रतिशत ऑनलाइन उपभोक्ता अब हिन्दी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में जानकारी लेना पसंद करते हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी का आर्थिक मूल्य भी तेजी से बढ़ रहा है। गूगल ट्रांसलेट, माइक्रोसॉफ्ट ट्रांसलेटर, वॉयस असिस्टेंट्स, एआई चैटबॉट्स और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग में हिन्दी को प्रमुखता दी जा रही है। तकनीकी उपकरणों में हिन्दी इनपुट और आउटपुट की सुविधा अब आम बात हो चुकी है। भारत के डिजिटल इंडिया अभियान में भी हिन्दी की प्रमुख भूमिका है।


हिन्दी की वैश्विक प्रतिष्ठा को विश्व हिन्दी सम्मेलन जैसे आयोजन भी मजबूती दे रहे हैं। 1975 से अब तक यह सम्मेलन भारत, मॉरीशस, अमेरिका, यूके, त्रिनिदाद, फिजी जैसे देशों में आयोजित हो चुका है। इन आयोजनों में 100 से अधिक देशों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इतिहास गवाह है कि महात्मा गांधी ने हिन्दी को राष्ट्र की आत्मा बताते हुए इसे राष्ट्रीय एकता का आधार कहा था। भारत सरकार द्वारा 1963 में स्थापित केन्द्रीय हिन्दी संस्थान अब हिन्दी में उच्च शिक्षा, शोध और प्रशिक्षण का प्रमुख केंद्र बन चुका है। यह संस्थान प्रत्येक वर्ष ‘हिन्दी सेवी सम्मान’ प्रदान करता है, जो हिन्दी के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वालों को दिए जाते हैं।


बहरहाल, हमें यह समझना होगा कि भारत के किसी भी राज्य में हिन्दी का विरोध करना भारत की एकता और संस्कृति पर हमला है। भाषा को विभाजन का नहीं, समावेशन और संवाद का साधन बनाना चाहिए। जब दुनिया हिन्दी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है तो हमें भी अपनी भाषायी चेतना को व्यापक बनाना होगा। हिन्दी किसी एक राज्य या क्षेत्र की नहीं, पूरे भारत की है। इसका विरोध उस भारतीयता का विरोध है, जो हिन्दी के जरिए दुनियाभर में फैल रही है। यह समय हिन्दी को राजनीति की भेंट चढ़ाने का नहीं, इसके वैश्विक उभार को समर्थन देने का है। इसलिए हमें हिन्दी को अपमानित नहीं बल्कि इसके इस उज्जवल भविष्य पर गर्व करना चाहिए।


- योगेश कुमार गोयल

(लेखक साढ़े तीन दशक से पत्रकारिता में निरंतर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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