By नीरज कुमार दुबे | Dec 22, 2025
कोलकाता में आयोजित बौद्धिक संगोष्ठी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बड़ा ही प्रेरक संबोधन दिया। हम आपको बता दें कि चार घंटे से अधिक चले विचार और प्रश्नोत्तर सत्र के दौरान उन्होंने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर बढ़ते दबाव और उनके उत्पीड़न के मुद्दे पर अपने विचार रखे साथ ही केंद्र सरकार से कहा कि वह इस विषय का संज्ञान ले। उन्होंने पश्चिम बंगाल में हिंदू समाज की एकजुटता को निकट भविष्य के बदलाव की कुंजी भी बताया।
हजार से अधिक शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों की मौजूदगी में भागवत ने साफ कहा कि बांग्लादेश में हालात कठिन हैं। वहां के हिंदुओं को संगठित रहना होगा और वैश्विक हिंदू समाज को उनके साथ खड़ा होना होगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति को लेकर भारत सरकार को कुछ करना होगा। भागवत ने कहा, ‘‘हो सकता है कि वे पहले से ही कुछ कर रहे हों, लेकिन उनका खुलासा नहीं किया जा सकता।''
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में यह भी जोड़ा कि भारत हिंदुओं का देश है। साथ ही उन्होंने पश्चिम बंगाल पर विशेष जोर देते हुए कहा कि जैसे ही हिंदू समाज संगठित होगा, राज्य में सामाजिक बदलाव तेजी से दिखाई देगा। उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल लंबे समय से राजनीतिक और वैचारिक संघर्ष का मैदान रहा है। ऐसे में एकजुटता का संदेश सत्ता और समाज दोनों के समीकरणों को चुनौती देता है।
कार्यक्रम में यह भी स्पष्ट किया गया कि आरएसएस को लेकर फैलाई गयीं भ्रांतियां वास्तविकता से दूर हैं। भागवत ने संगठन की सौ साल की यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि आरएसएस को समझने के लिए उसके काम को देखना होगा, न कि सुनी सुनाई बातों पर भरोसा करना होगा। उन्होंने दो टूक कहा कि आरएसएस किसी राजनीतिक दल का प्रतिनिधि नहीं है। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक सेना में सेवा करें या राजनीति में जाएं, इससे संगठन की स्वतंत्र पहचान पर प्रश्न नहीं उठता।
देखा जाये तो मोहन भागवत का कोलकाता से दिया गया हिंदू एकता का संदेश आज की सबसे बड़ी जरूरत है। लेकिन वहीं दूसरी ओर इसे धार्मिक रंग देते हुए मौलाना साजिद रशीदी हिंदुस्तान में मुस्लिमों की एकजुटता की बात कर रहे हैं और मामले को अलग ही दिशा दे रहे हैं। यही मोड़ सबसे संवेदनशील है। यदि हर आह्वान का जवाब केवल प्रतिआह्वान से दिया गया, तो समाधान की जगह टकराव बढ़ेगा। एकजुटता का अर्थ दीवारें खड़ी करना नहीं, बल्कि अन्याय के सामने मजबूती से खड़ा होना है। भागवत का भाषण इस मजबूती का संकेत देता है।