जिस जज के घर पर मिला है नकदी का ढेर, 2018 में उस जज का CBI FIR में आया था नाम

By रितिका कमठान | Mar 22, 2025

दिल्ली उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, जिनके दिल्ली स्थित आवास पर 14 मार्च को कथित तौर पर बेहिसाबी नकदी का ढेर मिला था। इस राशि के प्राप्त होने के बाद से ही जांच लगातार न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ चल रही है। इसी बीच सामने आया है कि सीबीआई ने 2018 में उनके खिलाफ एक एफआईआर भी की थी। वर्ष 2018 में एक चीनी मिल बैंक धोखाधड़ी मामले से जुड़ी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की प्राथमिकी में दर्ज किया गया था।

 

सीबीआई ने सिंभावली शुगर मिल्स, उसके निदेशकों और अन्य लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की, जिसमें यशवंत वर्मा भी शामिल थे, जो उस समय कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे। यह मामला ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स (ओबीसी) की शिकायत से शुरू हुआ, जिसमें चीनी मिल पर फर्जी ऋण योजना के जरिए बैंक को धोखा देने का आरोप लगाया गया था।

 

बैंक की शिकायत के अनुसार, जनवरी से मार्च 2012 के बीच, ओबीसी की हापुड़ शाखा ने 5,762 किसानों को खाद और बीज खरीदने में मदद करने के लिए 148.59 करोड़ रुपये वितरित किए। समझौते के तहत, किसानों के व्यक्तिगत खातों में वितरित किए जाने से पहले धनराशि को एस्क्रो खाते में स्थानांतरित किया जाना था। सिंभावली शुगर मिल्स ने ऋण चुकाने और किसानों द्वारा किसी भी चूक या पहचान धोखाधड़ी को कवर करने की गारंटी दी।

 

यशवंत वर्मा, जो उस समय कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे, का नाम एफआईआर में दर्ज है। कंपनी ने कथित तौर पर फर्जी नो योर कस्टमर (केवाईसी) दस्तावेज जमा किए और धन का गबन किया। मार्च 2015 तक, ओबीसी ने ऋण को धोखाधड़ी घोषित कर दिया, जिसमें कुल 97.85 करोड़ रुपये की हानि हुई और 109.08 करोड़ रुपये की बकाया राशि थी।

 

एफआईआर में नामजद एक और प्रमुख व्यक्ति गुरपाल सिंह था, जो कंपनी का उप प्रबंध निदेशक और पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का दामाद था। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बाद में सीबीआई की एफआईआर के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग की समानांतर जांच शुरू की।

 

उच्च न्यायालय का हस्तक्षेप

दिसंबर 2023 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ऋण वितरण से जुड़े सात बैंकों की नए सिरे से सीबीआई जांच का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि धोखाधड़ी ने न्यायपालिका की "अंतरात्मा को झकझोर दिया है"।

 

न्यायालय ने पाया कि कई बैंक अधिकारियों ने 900 करोड़ रुपये के ऋण पारित करने में सिंभावली शुगर मिल्स के साथ मिलीभगत की थी। ओबीसी एकमात्र बैंक था जिसने प्रवर्तन निदेशालय से संपर्क किया, जिसके परिणामस्वरूप कुछ संपत्तियों को जब्त कर लिया गया।

 

अपने आदेश में, न्यायालय ने कहा: "बैंक अधिकारियों ने RBI के दिशा-निर्देशों और परिपत्रों की पूरी तरह से अनदेखी की। हम CBI को यह जांच करने का निर्देश देते हैं कि किन अधिकारियों ने इन ऋणों को मंजूरी दी, बोर्ड या क्रेडिट समिति के किन सदस्यों ने वितरण में मदद की और किन अधिकारियों ने गबन को बिना रोक-टोक जारी रहने दिया।"

 

2024 में CBI की नई जांच

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर कार्रवाई करते हुए, CBI ने फरवरी 2024 में एक नई जांच शुरू की। इसका उद्देश्य यह पता लगाना था कि बैंकों ने 2009 से 2017 के बीच सिंभावली शुगर मिल्स को ऋण क्यों देना जारी रखा, जबकि कंपनी ऋण डिफॉल्टर थी। जांच में कंपनी, उसके निदेशकों और अज्ञात बैंक अधिकारियों का नाम लिया गया। मार्च 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।

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