Muharram 2025: 26 जून को हुआ मुहर्रम के चांद का दीदार, शुरू होगा मातम और प्रार्थनाओं का सिलसिला

By अनन्या मिश्रा | Jun 27, 2025

मुस्लिम महीने यानी मुहर्रम का चांद 26 जून 2025 को दिखाई दिया था। ऐसे में आज यानी की 27 जून को मुहर्रम की पहली तारीख है। वहीं 06 जुलाई 2025 को हजरत इमाम हुसैन की शहादत रोज-ए-आशूरा मनाया जाएगा। यह महीना इस्लाम के सबसे खास महीनों में से एक माना जाता है। मुहर्रम के महीने में किसी भी तरह के विवाद या युद्ध से बचने के साथ शांति बनाए रखने की सलाह दी जाती है। वहीं मुहर्रम की 10वीं तारीख को रोज-ए-आशूरा कहा जाता है, जिसका इस्लाम धर्म में खास महत्व होता है। 


बता दें कि अशूरा का यह महीना पैगंबर मोहम्मद के नाती हजरत इमाम हुसैन की याद में मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन की कर्बला की जंग में दी गई कुर्बानी को याद करने के लिए मनाया जाता है। माना जाता है कि इमाम हुसैन ने इस्लाम धर्म की रक्षा करते हुए अपने प्राण दे दिए थे। ऐसे में शिया समुदाय के लोग इसे शोक, जुलूस और मातम के साथ मनाते हैं। वहीं दूसरी ओर सुन्नी समुदाय के लोग प्रार्थना और रोजा रखकर इस दिन को मनाते हैं।


क्यों मनाते हैं मातम

पूरे मुहर्रम भर शिया समुदाय के लोग शोक मनाते हैं, मजलिस पढ़ते हैं और काले कपड़े पहनकर अपना दुख प्रकट करते हैं। इस दिन यह लोग बिना खाए-पिए इमाम हुसैन और उनके परिवार के साथ हुए जुल्द को याद करते हैं। वहीं सुन्नी समुदाय के लोग रोजा और नमाज बढ़कर इमाम हुसैन और उनके परिवार को याद करते हैं।


वहीं मुहर्रम के 10वें दिन शिया समुदाय के लोग मातमी जुलूस निकालते हैं। इस दौरान वह सीना पीटते हैं और मर्सिया पढ़कर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। इस दिन ताजिया भी बनाई जाती है। यह ताजिया कर्बला में इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक होती है। ताजिया को जुलूस में ले जाया जाता है और फिर इसको सम्मान के साथ दफनाया जाता है। यह रस्म इमाम हुसैन की शहादत के प्रति गहरी आस्था और दुख को व्यक्त करने का तरीका होता है।

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