By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Sep 15, 2025
पिछले दिनों समाचार पत्रों में दो समाचारों की सुर्खियां प्रमुखता से देखी गई। पहला समाचार यह कि एक मोटे अनुमान के अनुसार नोएडा में साल भर में एक लाख से अधिक नए वाहन खरीदे जाते हैं तो दूसरा समाचार दिल्ली से जुड़ा है और इसमें यह कि दिल्ली में कहीं भी जाओं तो वाहन को पार्किंग के लिए खड़ा करने में औसतन 20 मिनट तो लग ही जाते हैं। दोनों समाचार ही देष में आर्थिक उन्नती को दर्शाने के साथ ही लोगों के जीवन स्तर में तेजी से सकारात्मक बदलाव को इंगित करते हैं। पर इसके साथ ही यह भी साफ हो जाता है कि हमारे शहर आज और आने वालों सालों के लिए अभी तक पूरी तरह से तैयार नहीं है। एक और वाहनों की मांग और खरीद बढ़ती जा रही है और इसमें भी बड़ा बदलाव यह देखा जा रहा है कि अब लक्जीरियस वाहनों की खरीद को अधिक प्राथमिकता दी जाने लगी है तो दूसरी और ऑफिस या किसी काम से घर से बाहर निकलने पर वाहन को पार्क करने की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर होती जा रही है। हालात यहां तक हो गए हैं कि वाहनों की पार्किंग को लेकर तू तू मैं मैं, झगड़ा और मारपीट तो आम होती जा रही हैं वहीं वाहन खड़ा करने को लेकर जानलेवा हमला और जान ले लेने तक के समाचार अखबारों की यदा कदा सुर्खियां बनते जा रहे हैं। रोडरेज की घटनाएं आम होती जा रही है।
एक बात साफ हो जानी चाहिए कि यह समस्या कोई नोएडा या दिल्ली की ही नहीं हैं अपितु कमोबेस यह समस्या देश के किसी भी शहर में गंभीर रुप लेती देखी जा सकती हैं। दरअसल हमारे नगर नियोजकों व शहरी नियामक संस्थाओं ने पार्किंग की समस्या को गंभीरता से लिया ही नहीं है। गांवों को निगलकर शहरों का विस्तार होता जा रहा है तो गगनचुंबी इमारते बनती जा रही है। आबादी का घनत्व और दबाव बढ़ता जा रहा हैं। जिस अनुपात में यह बदलाव आ रहा है उस अनुपात में भविष्य की संभावनाओं और चुनौतियों की और ध्या नही नहीं दिया जा रहा है। आबादी के पास के एक समय के बड़े बड़े बंगले अब मल्टीस्टोरी बिल्डिंग और मॉल्स में तब्दील होते जा रहे हैं। जहां पहले एक बंगले से एक समय में एक या दो वाहनों का ही यातायात दबाव पड़ता था वहीं अब उसी स्थान पर बनें मल्टी स्टोरी में बहुत से फ्लेट्स होने के कारण बहुत से परिवार रहने के कारण औसतन डेढ़ गाड़ी का दबाव भी माना जाएं तो साफ हो जाता है कि रोड पर वाहनों का दबाव तो पड़ेगा ही। जहां तक मॉल्स का सवाल है अधिकतर माल्स में पार्किंग की सुविधा तो होती है पर अधिकांश पार्किंग तो माल्स में बिजनस प्रतिष्ठानों के मालिकों, कार्मिकों आदि से ही भर जाते हैं तो वहां आने वालों के लिए पार्किंग की समस्या बन ही जाती है। पार्किंग की समस्या को लेकर भी दो तरह की समस्या से दो चार होना पड़ रहा है। एक तो यह कि अब घरों कालोनियों में भी वाहन पार्किंग की समस्यां गंभीर होती जा रही है। इसका बड़ा कारण एक ही परिवार में एक से अधिक वाहनों और वह भी लक्जीरियस वाहन एमयूवी/एसयूवी का होना आम होता जा रहा है तो दूसरी और सार्वजनिक परिवहन साधनों की योजनाबद्ध उपलब्धता नहीं होना है। कहने को तो अब ओला-उबेर की बात की जाने लगी है या दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में मेट्रो ट्रेन की बात की जा सकती है पर समस्या का समाधान यह इसलिए नहीं है कि नई कालोनियों के विकास के अनुसार इनकी सहज उपलब्धता का सवाल भी होता है।
भले ही यह बात थोड़ी अजीब अवश्य लगे पर अब शहरों में घरेलू या यों कहें कि निजी चौपहिया वाहनों की पार्किंग की समस्या गंभीर होती जा रही है। यह सही है कि यह समस्या केवल और केवल हमारे महानगरों तक सीमित ना होकर दुनिया के अधिकांश देशों के सामने तेजी से विस्तारित होती जा रही है।
दुनिया के देश चौपहिया वाहनों की पार्किंग समस्या से दो चार हो रहे हैं और इस समस्या के समाधान के लिए अनेक विकल्पों पर मंथन कर रहे हैं। यहां तक की पार्किंग शुल्क से अच्छी खासा आय होने लगी है। अकेले भारत की ही बात करें तो देश में पांच करोड़ से अधिक कारें चलन में हैं और हर साल में इसमें इजाफा ही होता जा रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार दिल्ली में उपलब्ध कारों की पार्किंग के लिए ही चार हजार से अधिक फुटवाल के मैदानों जितनी जगह की आवश्यकता है। अगर दिल्ली की ही पार्किंग से आय की बात करें तो यह कोई 9800 करोड़ से अधिक की हो जाती है। देश के किसी भी कोने में किसी भी शहर की गलियों में निकल जाएं तो देखेंगे कि गलियों में घरों के बाहर सड़क की आधी जगह तो कारों के पार्किंग से ही सटी होती हैं। यानी कि एक ही घर में एक से अधिक कार/वाहन होना अब आम होता जा रहा है। किसी भी शहर में आफिस या बाजार खुलने बंद होने के समय तो जाम लग जाना आम होता जा रहा है। यह सब तो तब है जब आबादी की तुलना में कारों की संख्या कम है। आने वाले सालों में कारों की संख्या में इजाफा ही होगा। इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती।
दरअसल इस सबके अनेक कारणों में से उपनगर विकसित करने पर ध्यान नहीं देना, व्यस्ततम स्थानों पर ही बहुमंजिला इमारतें बनाने की छूट देना, शहरी सार्वजनिक यातायात तंत्र का विकसित नहीं होना, वाहनों की खरीद सहज होना और वाहनों की पार्किंग के लिए दूरगामी योजना का अभाव होना माना जा सकता है। दरअसल चौपहिया वाहनों की जिस तरह से सुगम ऋण सुविधा व पैसों के तेजी से बढ़ते प्रवाह के कारण सहज पहुंच हुई है उसका एक सकारात्मक परिणाम यह सामने आया हैं कि जिस तरह से अमीर गरीब सभी के लिए मोबाइल आम होता जा रहा हैं ठीक उसी तरह से चौपहिया वाहन आम होता जा रहा हैं।
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की माने तो 2050 तक दुनिया के देशों में केवल और केवल कारों की पार्किंग के लिए ही 80 हजार वर्ग किलोमीटर स्थान की आवश्यकता होगी। इसका मतलब यह कि छोटा मोटा देश आसानी से इस जगह में समा सके। शहरी विकास संस्थाओं और योजना नियंताओं को निजी कारों की पार्किंग को लेकर ठोस कार्ययोजना तैयार करनी ही होगी। मजे की बात यह है कि अब कार बाजार इलेक्ट्रिक कारों में शिफ्ट होता जा रहा है, ऐसे में चार्जिंग स्टेशनों के लिए भी समय रहते जगह तलाशनी होगी। पेड पार्किंग स्थानों पर ऑटोमेटिक बहुमंजिला पार्किंग व्यवस्था हो तो और भी अधिक सुविधाजनक हो सकती है। बहु मंजिला इमारतों और माल्स में भी पार्किंग की अधिक सुविधा होना समय की मांग हो गई है। दरअसल इस सबके लिए समय रहते दूरगामी नीति बनानी होगी ताकि समस्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ नहीं जाएं। वास्तुकारों और नियोजकों के लिए यह अपने आप में चुनौती पूर्ण काम हो गया है। किराए की पार्किंग व्यवस्था सस्ती व सहज उपलब्धता वाली भी होनी चाहिए। शहरी निकाय संस्थाओं को इस और गंभीरता से प्रयास करने होंगे वहीं कोलोनाइजरों को भी इस दिशा में पहले से ही रोडमेप बनाकर चलना होगा नहीं तो आने वाले समय में यह एक और नई समस्या दस्तक देने वाली है। सरकार के सामने दोहरी चुनौती है एक और तो ऑटोमोबाईल उद्योग को बढ़ावा देना है तो दूसरी और पार्किंग की समस्या का कोई ना कोई योजनाबद्ध सहज हल खोजना होगा।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा