Matrubhoomi: कहानी भारत के मिशन 'मंगल' की, जिसे सुनकर देशवासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा

By अंकित सिंह | Mar 15, 2022

अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत लगातार नई-नई उपलब्धियां हासिल करता रहा है। भारत के लिए एक उपलब्धि यह भी थी कि इसने पहले ही प्रयास में अपना मंगल अभियान पूरा कर लिया। जाहिर सी बात है कि भारत जैसे देश के लिए इसे बड़ी कामयाबी मानी जाएगी। खुद भारत के इस अभियान की सफलता के बाद नासा ने भी बधाई दी थी। सबसे खास बात तो यह है कि भारत का यह मिशन काफी किफायती रहा। भारत में इस मिशन पर करीब 450 करोड रुपए खर्च किए थे। भारत के मंगलयान अभियान के पूरा होने की ऐतिहासिक घटना का गवाह बनने के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेंगलुरु के इसरो केंद्र में मौजूद रहे। प्रधानमंत्री ने इसके लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी थी। अपने बधाई संदेश में प्रधानमंत्री ने कहा था कि आज का दिन इतिहास बना है। हमने लगभग असंभव को कर दिखाया है। मैं सभी भारतीयों और इसरो वैज्ञानिकों को मुबारक देता हूं। कम साधनों के बावजूद यह कामयाबी वैज्ञानिकों के पुरुषार्थ के कारण मिली है।

 

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हालांकि भारत के लिए यह कामयाबी इतनी आसान भी नहीं रही। मंगलयान भारत का प्रथम मंगल अभियान था। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक माना जाता है। इस परियोजना के अंतर्गत 5 नवंबर 2013 को 2:38 पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने के लिए एक उपग्रह छोड़ा गया था। 24 सितंबर 2014 को मंगल पर पहुंचने के साथ ही भारत का यह अभियान पहले ही प्रयास में सफल हो गया। सोवियत रूस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद भारत ऐसा चौथा देश बन गया जिसने पहले ही प्रयास में मंगल पर अपने यान भेजे हैं। इसके अलावा यह मंगल पर भेजा गया जहां सबसे सस्ता मिशन भी है। ऐसा करने वाला भारत एशिया का पहला देश भी बना। इससे पहले चीन और जापान अपने मंगल अभियान में असफल रहे थे। वैसे अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए दो तिहाई अभियान असफल भी रहे हैं।


23 नवंबर 2008 को मंगल ग्रह के लिए मानव रहित मिशन की पहली घोषणा इसरो के तत्कालीन अध्यक्ष माधवन नायर ने की थी। बाद में भारत सरकार की ओर से इसे मंजूरी भी दी गई। मंगलयान मिशन का उद्देश्य भारत के रॉकेट प्रक्षेपण प्रणाली, अंतरिक्ष यान के निर्माण और संचालन क्षमताओं को प्रदर्शित करना था। इसके साथ ही मिशन का प्राथमिक उद्देश्य ग्रहों के बीच के संचालन उपग्रह, डिजाइन योजना और प्रबंधन के लिए आवश्यक तकनीक को ही विकसित करना है। वैज्ञानिक हिसाब से देखें तो मंगलयान मंगल ग्रह की सतह की आकृति आकृति, स्थलाकृति और खनिज का अध्ययन करके विशेषताएं भी पता लगाने में सक्षम था। इसके अलावा वह वायुमंडल पर शौर हवा, विकिरण और बाहर अंतरिक्ष गतिशीलता का भी अध्ययन करने में सक्षम था।

 

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इसे MOM भी कहा गया यानी कि मार्स आर्बिटर। मिशन मंगल ग्रह पर जीवन के सूत्र तलाशने के लिए भी बेहद ही उपयोगी साबित हो सकता है। कुल 1350 किलोग्राम वजन वाले इस अंतरिक्ष यान में 5 उपकरण लगे थे। इन उपकरणों में एक सेंसर, एक कलर कैमरा और एक थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर भी शामिल था। भारत के इस सफल अभियान के साथ ही अंतरिक्ष के क्षेत्र में उसका रुतबा भी काफी बढ़ा है। प्रतिष्ठित 'टाइम' पत्रिका ने मंगलयान को 2014 के सर्वश्रेष्ठ आविष्कारों में भी शामिल किया था। यह जानना भी आपके लिए बेहद ही जरूरी है कि भारत ने 19 अप्रैल 1975 को स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ ही अपने अंतरिक्ष सफर की शुरुआत की थी। इसके बाद से अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत लगातार कई सफलताएं अर्जित करता रहा है। मंगलयान द्वारा भेजी गई तस्वीरें लगातार अध्ययन के काम में इस्तेमाल किए जा रहे हैं।


मंगलयान से जुड़े कुछ घटनाक्रम


  • 3 अगस्त 2012 को भारत सरकार ने मंगलयान परियोजना को स्वीकृति दी थी


  • 5 नवंबर 2013 को जब श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से रॉकेट ने उड़ान भरी तो यह भारत के लिए बेहद ही ऐतिहासिक क्षण था


  • 7 नवंबर 2013 को मंगलयान की कक्षा बढ़ाने की पहली कोशिश सफल हुई


  • 16 नवंबर 2013 को मंगलयान को आखिरी बार कक्षा में बढ़ाई गई


  • 1 दिसंबर 2013 को मंगलयान ने सफलतापूर्वक पृथ्वी को छोड़ दिया और मंगल की तरफ बढ़ गया


  • 4 दिसंबर 2013 को मंगलयान पृथ्वी के 9.25 लाख किलोमीटर घेरे के प्रभाव क्षेत्र से भी बाहर निकल गया


  • 11 दिसंबर 2013 को इसमें पहली दिशा संशोधन प्रक्रिया को संपन्न किया गया


  • 11 जून 2014 को दूसरी दिशा संशोधन प्रक्रिया भी संपन्न हुई है


  • 22 सितंबर 2014 को एमओएम पहली बार मंगल के गुरुत्वीय क्षेत्र में प्रवेश किया


  • 24 सितंबर 2014 को मंगल यान के मंगल की कक्षा में प्रवेश करने के साथ ही भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण रहा

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