Gyan Ganga: त्रिशूल लेने की परंपरा भगवान शंकर के द्वारा ही प्रारम्भ हुई

By सुखी भारती | Apr 03, 2025

गोस्वामी जी भगवान शंकर के सुंदर श्रृंगार का अत्यंत ही सुंदर वर्णन कर रहे हैं। जिसमें वे कह रहे है-


‘कर त्रिसूल अरु डमरु बिराजा।

चले बसहँ चढ़ि बाजिहं बाजा।।

देखि सिवहि सुरत्रिय मुसुकाहीं।

बर लायक दुलहिनि जग नाहीं।।’


भगवान शंकर के एक हाथ में त्रिशूल व डमरु है। हालाँकि सनातन धर्म में अनेकों ही देवी देवता हैं, जिनके हाथों में, कोई न कोई शस्त्र अवश्य होता है। किंतु त्रिशूल लेने की परंपरा भगवान शंकर के द्वारा ही प्रारम्भ हुई। वे हाथ में तलवार अथवा धनुष बाण भी ले सकते थे। कारण कि धनुष बाण उनके आराध्य देव, श्रीराम जी का शस्त्र भी है। किंतु उनके द्वारा धारण किया गया शस्त्र ‘त्रिशूल’ अपने आप में अनेकों भेद छुपाये हुए है। त्रिशूल शब्द का अर्थ होता है तीन प्रकार के शूल। शूल अर्थात ताप, दुख या कष्ट। संसार में तीन प्रकार के कष्ट होते हैं-दैविक, दैहिक व भौतिक। यह तीनों प्रकार के कष्टों से ही समस्त संसार पीड़ित है।

इसे भी पढ़ें: Gyan Ganga: क्या था भगवान शंकर के गले में लटकी एक सौ आठ नरमुंडों की माला का रहस्य?

दैहिक ताप वे होते हैं, जो देह से मानव को सताते हैं। जैसे बुखार अथवा चोट लगना इत्यादि। दैविक तापों में वे ताप होते हैं, जो अदृश्य शक्तियों के प्रभाव से आते हैं, जैसे किसी को श्राप, जादू टोना इत्यादि लग जाना। इसके पश्चात भौतिक ताप उसे कहा गया है, जो ताप भूकंप, बाढ़ अथवा बारिश इत्यादि से आते हैं। कोई भी जीव इन तापों से बच नहीं पाता है। किंतु गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-


‘दैहिक दैविक भौतिक तापा।

राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।’


इन तीनों तापों से अगर बचना है, तो उसे राम राज्य में प्रवेश करना पड़ेगा। एक ऐसा राज्य जहाँ सर्वत्र श्रीराम जी का सिद्धाँत चले। अर्थात राम राज्य में प्रत्येक जन भक्ति में लीन होकर, केवल श्रीराम जी के रंग में ही रंगा रहता है। भगवान शंकर अपने आथ में त्रिशूल लेकर, यही संदेश देना चाहते हैं, कि सदैव प्रभु की भक्ति में लीन रहना ही जीवन की सार्थकता है। अन्यथा तीपों तापों का प्रभाव केवल मानव जन्म में ही नहीं, अपितु चौरासी लाख योनियों की प्रत्येक योनि में भी बना रहेगा। 


भगवान शंकर ने एक हाथ में डमरु भी ले रखा है। विचारणीय पहलू है, कि डमरु का कार्य तो मदारी के पास होता है। क्योंकि बंदर का खेल दिखाने के लिए, वह डमरु की डुगडुगी पर ही लोगों को एकत्र करता है। डमरु ही वह यंत्र है, जिसपे मदारी बंदर को नचाता है।


क्या आपने सोचा है, कि बंदर किस पक्ष को प्रभाषित करता है? बंदर वास्तव में चंचल मन का प्रतीक है। जिसका मन चंचल है, वह कभी भी शाँति को प्राप्त नहीं कर सकता। उसकी समस्त शक्तियाँ विघटन की ओर उन्मुख रहती हैं। वह सदा नीचे ही गिरता जाता है। चंचल मन के स्वामी को संसार में सदा अपयश ही प्राप्त होता है। किंतु यहाँ भगवान शंकर हाथ में पकड़े, कौन से डमरु के माध्यम से, कौन सा बंदर वश में करने का संकेत कर रहे हैं।


डमरु वास्तव में अनहद नाद का प्रतीक है। जिसे हम ब्रह्म नाद भी कहते हैं। गुरु कृपा से जब हमारे भीतरी जगत में, ईश्वर का संगीत प्रगट होता है, तो मन उसी संगीत को श्रवण करने से वश में आता है। वह नाद इन बाहरी कानों से नहीं सुना जाता। अपितु इन कानों के बिना ही उसे सुना जाता है। उस ब्रह्म नाद में डमरु के सिवा अन्य वाद्य यंत्र भी सुनाई दे सकते हैं, जैसे वीणा, सारंगी, शंख इत्यादि। यही कारण है, कि भगवान शंकर अपने हाथ में मन रुपी बंदर को वश में करने के लिए डमरु रखते हैं।


क्रमशः


- सुखी भारती

प्रमुख खबरें

Goa के क्लब में आधी रात को आग लगने से तीन महिलाओं समेत 23 लोगों की मौत

कौन है असली ग्रुप ऑफ डेथ? FIFA World Cup 2026 ड्रॉ के बाद विश्लेषकों की राय, इन ग्रुप्स पर टिकी नजरें

India-US Trade Pact: 10 दिसंबर से शुरू होगा पहले चरण का मंथन, टैरिफ पर हो सकती है बात

रूस में फैलेगा पतंजलि का साम्राज्य, MoU साइन, योग और भारतीय संस्कृति का बढ़ेगा प्रभाव