युद्ध, संघर्ष, सत्ता परिवर्तन, तख्तापलट और अस्थिरता से साल भर जूझती रही दुनिया

By नीरज कुमार दुबे | Dec 29, 2025

साल 2025 वैश्विक राजनीति के इतिहास में एक ऐसे वर्ष के रूप में दर्ज हुआ, जिसने यह साफ कर दिया कि दुनिया अब स्थिरता की ओर नहीं, बल्कि अस्थिरता, टकराव और सत्ता संघर्ष की ओर तेज़ी से बढ़ रही है। यह साल लोकतंत्र और तानाशाही, शांति और युद्ध, संवाद और टकराव के बीच की रेखाओं को और धुंधला कर गया। कहीं चुनावों के जरिए सरकारें बदलीं, कहीं बंदूकों की नली से सत्ता हथियाई गई, तो कहीं युद्ध और सीमित संघर्षों ने मानवता को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया।


2025 की शुरुआत ही एक बड़े झटके के साथ हुई, जब डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में दोबारा कार्यभार संभाला। उनकी वापसी केवल अमेरिका तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा। ट्रंप का दूसरा कार्यकाल पहले से कहीं अधिक आक्रामक, राष्ट्रवादी और टकरावपूर्ण नजर आया। उनकी नीतियों ने वैश्विक व्यापार, सुरक्षा गठबंधनों और कूटनीतिक संतुलन को झकझोर दिया। अमेरिका की विदेश नीति फिर से “अमेरिका फर्स्ट” की राह पर लौटती दिखी, जिससे यूरोप से लेकर एशिया तक सहयोगी देशों में असहजता बढ़ी। ट्रंप की शैली ने मित्र देशों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या अमेरिका अब भरोसेमंद साझेदार रह गया है।


इसके अलावा, 2025 में कई देशों में नई सरकारों का गठन हुआ। कुछ देशों में यह सत्ता परिवर्तन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का परिणाम था, तो कुछ जगहों पर राजनीतिक अस्थिरता की देन। अफ्रीका, यूरोप और प्रशांत क्षेत्र के कई छोटे-बड़े देशों में चुनावों के बाद नए नेतृत्व सामने आए। इन सत्ता परिवर्तनों ने यह दिखाया कि लोकतंत्र अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट हुआ कि लोकतांत्रिक संस्थाएं दबाव में हैं। कई देशों में कमजोर जनादेश, बिखरी संसद और अस्थिर गठबंधन सरकारों ने शासन को चुनौतीपूर्ण बना दिया।


हम आपको बता दें कि जहाँ कुछ देशों ने चुनावों का रास्ता चुना, वहीं 2025 तख्तापलटों का भी गवाह बना। अफ्रीका के कुछ हिस्सों में सेना ने लोकतांत्रिक सरकारों को हटाकर सत्ता अपने हाथ में ले ली। सत्ता परिवर्तन की यह प्रवृत्ति खासतौर पर उन क्षेत्रों में दिखी, जहाँ पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता, गरीबी और आतंकवाद मौजूद था। सेना द्वारा कई देशों में सत्ता पर कब्जा यह संकेत देता है कि कई देशों में लोकतंत्र अभी भी जड़ें नहीं जमा पाया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चेतावनियों और प्रतिबंधों के बावजूद तख्तापलटों का सिलसिला यह सवाल खड़ा करता है कि क्या वैश्विक व्यवस्था वास्तव में लोकतंत्र की रक्षा करने में सक्षम है?


इसके अलावा, साल 2025 में दक्षिण एशिया की उथल-पुथल की कहानी में नेपाल एक अहम उदाहरण बनकर सामने आया, जहाँ सत्ता परिवर्तन की पटकथा किसी राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि जेन-जी आंदोलन ने लिखी। बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार, महंगाई और अवसरों की कमी से त्रस्त युवा पीढ़ी ने सड़कों पर उतरकर पारंपरिक राजनीति को सीधी चुनौती दी। सोशल मीडिया से शुरू हुआ यह आंदोलन देखते-ही-देखते जनआक्रोश में बदल गया, जिसने सरकार की नींव हिला दी। प्रदर्शन इतने व्यापक और उग्र हुए कि सत्ता प्रतिष्ठान को झुकना पड़ा और अंततः सरकार गिर गई। नेपाल का यह घटनाक्रम इस बात का संकेत बना कि अब सत्ता परिवर्तन केवल संसद या बंदूक से नहीं, बल्कि डिजिटल पीढ़ी की संगठित आवाज़ से भी संभव है। यह आंदोलन केवल सरकार विरोधी नहीं था, बल्कि दशकों से जमी हुई राजनीतिक जड़ता और वंशवादी राजनीति के खिलाफ खुला विद्रोह था, जिसने पूरे क्षेत्र को यह चेतावनी दी कि युवा पीढ़ी को नजरअंदाज करना अब सत्ता के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुका है।


इसके अलावा, साल 2025 को यदि किसी एक शब्द में समेटा जाए तो वह शब्द है संघर्ष। यह वर्ष दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में सुलगती सीमाओं, टूटते समझौतों और बढ़ते सैन्य टकरावों का गवाह बना। दक्षिण एशिया से लेकर मध्य-पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया तक, शांति केवल काग़ज़ों में सिमट कर रह गई। भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य टकराव और तनाव पूरे साल बना रहा। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर ने यह स्पष्ट कर दिया कि दोनों परमाणु संपन्न देशों के बीच कितनी नाज़ुक स्थिति है। वहीं पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा संघर्ष ने क्षेत्रीय अस्थिरता को और गहरा किया, जहाँ आतंकवाद, शरणार्थी संकट और सैन्य झड़पें एक-दूसरे में घुलती रहीं।

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साथ ही दक्षिण-पूर्व एशिया में दुनिया ने एक अप्रत्याशित मोर्चा खुलते देखा, जब थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमित युद्ध छिड़ गया। यह संघर्ष इस बात का संकेत था कि क्षेत्रीय विवाद, जो वर्षों से दबे हुए थे, अब खुलकर हिंसक रूप लेने लगे हैं। वहीं मध्य-पूर्व में इज़राइल और हमास के बीच संघर्ष ने भयावह मानवीय संकट को जन्म दिया। गाज़ा पट्टी युद्धभूमि में तब्दील होती रही, जहाँ हवाई हमले, रॉकेट फायरिंग और ज़मीनी कार्रवाई ने हज़ारों निर्दोष लोगों की जान ली। यह संघर्ष केवल क्षेत्रीय नहीं रहा, बल्कि वैश्विक राजनीति और कूटनीति को भी गहरे स्तर पर प्रभावित करता रहा।


इसके अलावा, मध्य-पूर्व में तनाव और गहरा हुआ। ईरान और इज़राइल के बीच प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संघर्ष ने पूरे क्षेत्र को युद्ध के मुहाने पर ला खड़ा किया। मिसाइल हमले, हवाई हमले और सैन्य चेतावनियों ने यह साफ कर दिया कि एक चिंगारी पूरे क्षेत्र को आग में झोंक सकती है।


इसके अलावा, यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध 2025 में भी थमता नजर नहीं आया। यह संघर्ष केवल दो देशों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यूरोप की सुरक्षा, ऊर्जा आपूर्ति और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका सीधा असर पड़ा। साथ ही अफ्रीका के सैहेल क्षेत्र में चरमपंथी हिंसा और गृहयुद्ध जैसी स्थितियां बनी रहीं, जहाँ आम नागरिक सबसे बड़े शिकार बने।


इसी तरह बांग्लादेश में आंतरिक राजनीतिक संघर्ष और हिंसा ने यह दिखा दिया कि लोकतांत्रिक ढांचे के भीतर पनपने वाले टकराव भी किस तरह देश को अस्थिर कर सकते हैं। विरोध-प्रदर्शन, राजनीतिक टकराव और अल्पसंख्यकों के साथ बर्बरता ने सामाजिक ताने-बाने को कमजोर किया।


देखा जाये तो इन सभी संघर्षों ने 2025 में यह साफ कर दिया कि दुनिया किसी एक महायुद्ध की ओर नहीं, बल्कि एक साथ कई छोटे-छोटे युद्धों और स्थायी अस्थिरता की ओर बढ़ रही है। यह वह दौर है जहाँ सीमाएं बारूद बन चुकी हैं और शांति सिर्फ भाषणों तक सिमट गई है।


इसके अलावा, जहाँ दुनिया संघर्ष और अस्थिरता से जूझ रही थी, वहीं डोनाल्ड ट्रंप 2025 के सबसे चर्चित नेताओं में से एक बने रहे। हालांकि उनकी लोकप्रियता सर्वसम्मत नहीं थी। एक ओर उनके समर्थक उन्हें मजबूत, निर्णायक और राष्ट्रवादी नेता मानते रहे, वहीं दूसरी ओर आलोचक उन्हें विभाजनकारी और संस्थाओं को कमजोर करने वाला नेता बताते रहे। ट्रंप की लोकप्रियता दरअसल इस बात का प्रतीक बनी कि दुनिया भर में राजनीति अब सहमति नहीं, बल्कि ध्रुवीकरण से चल रही है।


बहरहाल, 2025 ने यह साफ कर दिया कि दुनिया अब पुराने संतुलन की ओर नहीं लौटने वाली। सत्ता परिवर्तन, तख्तापलट, युद्ध और वैचारिक टकराव आने वाले वर्षों की भूमिका लिख चुके हैं। यह साल इस सच्चाई का आईना बन गया कि शांति अब अपवाद बनती जा रही है और संघर्ष नई सामान्य स्थिति। यदि वैश्विक नेतृत्व ने समय रहते संवाद, कूटनीति और सहयोग का रास्ता नहीं चुना, तो 2025 आने वाले बड़े संकटों की शुरुआत साबित होगा।


-नीरज कुमार दुबे

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