जुगाड़ पे दुनिया कायम है (व्यंग्य)

By दीपक गिरकर | Nov 13, 2017

आज सुबेरे-सुबेरे हमारी श्रीमतीजी हमें पूछ बैठीं- 'आप इतने वर्षों से लेखन कार्य कर रहे हो। देश के पत्र-पत्रिकाओं में आपके लेख और कहानियाँ प्रकाशित हो रही हैं फिर भी आज तक न तो आपका कोई सम्मान हुआ है और नहीं कोई पुरस्कार मिला है। कुछ जुगाड़ लगाओ।` यह सुनकर मैं दार्शनिक अंदाज में बोला, प्रिये, जुगाड़ करने की कला मुझे अपनी सांस्कृतिक विरासत में मिली ही नहीं है। वैसे मेरे साथी लोग भी हमेशा कहा करते हैं कि तुम्हारी शिक्षा अधूरी है। मेरी धर्मपत्नी ने मेरा ज्ञान बढ़ाया और बोली- क्या आपको मालूम है कि जुगाड़ पे दुनिया कायम है। जुगाड़ शब्द का महत्व पूरी दुनिया ने जाना है और जुगाड़ शब्द को अंतत: मान्यता देते हुए ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी में शामिल कर लिया गया है।

श्रीमतीजी ने अपना प्रवचन जारी रखा- आदमी नियमित रूप से जुगाड़ करता रहे तो उसे सफलता मिलती ही है। विपत्ति में सारे नियम-धरम टूट जाते हैं और जुगाड़ की कला ही काम आती है। इस देश में जुगाडुओं की कोई कमी नहीं है। जुगाड़ और राजनीति का चोली-दामन का साथ है। जुगाडू होना कुशल एवं उन्नत प्रबन्धन का विषय है। देश के शिक्षाविद् इस जुगाड़ विषय को प्रबंधन के कोर्स में शामिल करने पर विचार कर रहे हैं क्योंकि `डिप्लोमा इन जुगाड़ मैनेजमेंट` का कोर्स करने से हमारे देश में और देश के बाहर रोज़गार की शत-प्रतिशत गारंटी है। सुनोजी, मुझे तो ऐसा लगता है कि आपको भी यह कोर्स कर ही लेना चाहिए। जीवन के हर क्षेत्र में जुगाडू व्यक्ति का सर्वाधिक महत्व है। ऐसे व्यक्ति हर क्षेत्र में तरक्की करते हैं। जुगाडू लोगों के आगे बढ़ने की परंपरा हमारे देश में सदियों से चली आ रही है। ऐसे लोगों का दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। कुछ जुगाडुओं ने तो इस कदर महारत हासिल की है कि भेड़िए भी इनसे ट्यूशन लेने आते हैं। वर्तमान समय में सिर्फ़ और सिर्फ़ जुगाडुओं का बोलबाला है। जुगाडू लोग सभी को मैनेज कर लेते हैं। यह निर्विवादित सत्य है कि जुगाडू हर युग में रहे हैं। ऐसे लोग हर दरबार, हर सरकार और हर कार्यालय में पूरी तरह से छाए रहते हैं। जुगाड़ लगाना साहस का काम है। जुगाडू होना सबके बस की बात नहीं।

 

श्रीमतीजी का प्रवचन जारी था। उन्होंने हमारे दिमाग़ के जाले साफ करते हुए कहा- `इस कला में शोध और अध्ययन की अपार संभावनाए हैं। इस कला में पारंगत लोगों के पास गुरूत्वाकर्षण की तरह एक शक्ति होती है। ऐसे लोग विरोधियों को अपनी ओर खींच लेते हैं। आप कितने भी होनहार क्यों न हो और चाहे किसी भी पद पर हों, लेकिन यदि आप जुगाडू नहीं हैं तो आपको या तो पद से त्यागपत्र देना होगा या आपको इस कला में निपुण होकर आकाओं से केमेस्ट्री बैठानी होगी। इस कला में निपुण नहीं होने के कारण श्रेष्ठ और अपने कार्य में निपुण मिस्त्री को भी टाटा बाय-बाय कर दिया जाता है और सच्चे सिक्के को भी खोटा सिक्का घोषित कर दिया जाता है। स्मार्ट जमाने में हर किसी को इस कला में निपुण होना आवश्यक है नहीं तो इस कला में अयोग्य व्यक्ति को प्रगति की मुख्य धारा से या तो लूप लाइन में जाना होता है या फिर पद से त्यागपत्र देना होता है या अपने से जूनियर अधिकारी ही अपना बॉस बन कर आ जाता है।

 

- दीपक गिरकर

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