बुलडोजर के जरिये कानून-व्यवस्था को सुधारना कहां तक सही है ? पंजाब के खजाने पर पड़ा एक और बोझ

By अनुराग गुप्ता | Apr 18, 2022

प्रभासाक्षी के खास साप्ताहिक कार्यक्रम चाय पर समीक्षा में इस सप्ताह दो सामयिक मुद्दों पर संपादक नीरज कुमार दुबे के साथ चर्चा हुई। इसमें उभर कर आया कि उत्तर प्रदेश की तर्ज पर देश के कई अन्य राज्यों में भी अवैध संपत्तियों पर जिस तरह बुलडोजर चल रहे हैं उसके विरोध में आवाजें उठने लगी हैं। सवाल उठाया जा रहा है कि किसी की दुकान या मकान को गिराने का सरकार को किसने अधिकार दिया? संपादक ने इस सवाल के जवाब में कहा कि यह सवाल उठाने वालों से पूछा जाना चाहिए कि कानून व्यवस्था बिगाड़ने वालों के मन में खौफ पैदा किया जाना चाहिए या नहीं? अवैध संपत्तियों या बिना मंजूरी के बनाई गई इमारतों के खिलाफ कार्रवाई नई बात नहीं है इसलिए इस पर विवाद खड़ा करने से बचना चाहिए।

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रामनवमी के जुलूस के दौरान पथराव और आगजनी की घटना के बाद प्रशासन ने खरगोन में कर्फ्यू लगा दिया और फिर शिवराज सरकार ने सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया। जिसके परिणाम स्वरूप खरगोन में हिंसा के आरोपितों की दुकानें और मकान बुलडोजर की मदद से ध्वस्त कर दिए गए। उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने बाबा बुलडोजर के नाम पर काफी लोकप्रियता हासिल की। जिसका असर मध्य प्रदेश में भी दिखाई दिया और बाबा बुलडोजर की तर्ज पर चुनावों से पहले मामा बुलडोजर भी तैयार हो चुके हैं।


मामा बुलडोजर ने अंबेडकर जयंती के मौके पर भोपाल में एक बात स्पष्ट कर दी थी कि हम अपराधियों को छोड़ेंगे नहीं। उन्होंने कहा था कि आप सारे त्यौहार धूमधाम उत्साह के साथ भाईचारे के साथ मनाया हनुमान जयंती, गुड फ्राइडे, ईद सभी प्रेम के साथ मनाएं। सरकार सबके साथ है। जिनके घर जले हैं, हम उनके घर फिर से बनवाएंगे और जिन्होंने घर जलाए हैं उनसे ही वसूली की जाएगी। उनको छोडूंगा नहीं।

 

इस दौरान मुख्यमंत्री शिवराज ने दिग्विजय सिंह पर निशाना साधा था। इससे जुड़े सवाल पर प्रभासाक्षी के संपादक ने बताया कि नेताओं को अपने बयान देने से पहले सोचना चाहिए। क्योंकि वो भी पहले इन्हीं पदों पर रह चुके हैं। लेकिन दिग्विजय सिंह तो कई बार ऐसी गलती कर चुके हैं और फिर गलती सामने आने के बाद ट्वीट को डिलीट कर देते हैं। 

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दूसरी ओर पंजाब सरकार ने चुनावी वादा पूरा करते हुए 300 यूनिट बिजली मुफ्त देने का ऐलान कर दिया है। संपादक ने कहा कि पहले ही कर्ज के बोझ से दबे पंजाब के खजाने पर यह नया भार है। वाकई बड़ी विकट स्थिति है कि एक के बाद एक राज्य सरकारें मुफ्त सुविधाएं प्रदान करने के वादे पर आगे बढ़ रही हैं। अब समय आ गया है कि राज्यों को वित्तीय संकट से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ही कुछ करे क्योंकि निर्वाचन आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि चुनाव के पहले या बाद में तोहफे की पेशकश करना या बांटना संबद्ध पार्टी का नीतिगत मामला है। 


आपको बता दें कि पड़ोसी देश श्रीलंका और नेपाल आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं और हमारे देश के कई राज्यों के ऊपर भी भारी कर्जा है। ऐसे में राज्यों को लोकलुभावन वादें करने और मुफ्त की योजनाओं पर थोड़ा लगाम लगाने की जरूरत है। वरना पड़ोसी देश के हालात से तो सभी वाकिफ हैं ही कि क्या कुछ झेलना पड़ सकता है।


- अनुराग गुप्ता

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