दक्षिण भारत का ऐतिहासिक नगर है महाबलीपुरम, देखने को है बहुत कुछ

By प्रीटी | Apr 16, 2018

दक्षिण भारत स्थित महाबलीपुरम एक ऐतिहासिक नगर है जो 'मामल्लपुरम' भी कहलाता है। तमिलनाडु स्थित यह नगर बंगाल की खाड़ी पर चेन्नई से 60 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका एक अन्य प्राचीन नाम बाणपुर भी है।

यहाँ पर पाए गए चीन, फ़ारस और रोम के प्राचीन सिक्कों से पता चलता है कि यहाँ पर पहले बंदरगाह रहा होगा। यहाँ पर सातवीं और आठवीं सदी में निर्मित पल्लव मन्दिरों और स्मारकों के मिलने वाले अवशेषों में चट्टानों से निर्मित अर्जुन की तपस्या, गंगावतरण जैसी मूर्तियों से युक्त गुफ़ा मन्दिर और समुद्र तट पर बना शैव मन्दिर प्रमुख है। ये मन्दिर भारत के प्राचीन वास्तुशिल्प के गौरवमय उदाहरण माने जाते हैं। महाबलीपुरम के निकट एक पहाड़ी पर स्थित दीपस्तम्भ समुद्र यात्राओं की सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। इस नगर के पाँच रथ या एकाश्म मन्दिर, उन सात मन्दिरों के अवशेष हैं, जिनके कारण इस नगर को सप्तपगोडा भी कहा जाता है।

 

यहाँ शिल्पकृतियों के चार समूह मिलते हैं। आइये जानते हैं पहले समूह के बारे में-

 

पहला समूह एक ही पत्थर में से कटे हुए पाँच मन्दिरों का है, जिन्हें रथ कहते हैं। ये कणाश्म या ग्रेनाइट पत्थर के बने हुए हैं। इनमें से विशालतम धर्मरथ है जो पाँच तलों से युक्त है। इसकी दीवारों पर सघन मूर्तिकारी दिखाई पड़ती है। 

 

दूसरा समूह

 

दूसरा समूह दीपस्तम्भ की पहाड़ी में स्थित कई गुफ़ाओं के रूप में दिखाई पड़ता है। वराह गुफ़ा में वराह अवतार की कथा का और महिषासुर गुफ़ा में महिषासुर तथा अनंतशायी विष्णु की मूर्तियों का अंकन है। वराहगुफ़ा में जो अब निरन्तर अन्धेरी है, बहुत सुन्दर मूर्तिकारी प्रदर्शित है।

 

तीसरा समूह

 

तीसरा समूह सुदीर्घ शिलाओं के मुखपृष्ठ पर उकेरे हुए कृष्ण लीला तथा महाभारत के दृश्यों के विविध मूर्तिचित्रों का है। जिनमें गोवर्धन धारण, अर्जुन की तपस्या आदि के दृश्य अतीव सुन्दर हैं। इनसे पता चलता है कि स्वदेश से दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में जाकर बस जाने वाले भारतीयों में महाभारत तथा पुराणों आदि की कथाओं के प्रति गहरी आस्था थी।

 

चौथा समूह

 

चौथा समूह समुद्र तट पर तथा सन्निकट समुद्र के अन्दर स्थित सप्तरथों का है, जिनमें से छह तो समुद्र में समा गए हैं और एक समुद्र तट पर विशाल मन्दिर के रूप में विद्यमान हैं।

 

प्रीटी

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