Guru Arjun Dev Birth Anniversary: सिख धर्म में गुरु अर्जुन देव से शुरू हुई थी बलिदान की परंपरा, स्वर्ण मंदिर की रखवाई थी नींव

By अनन्या मिश्रा | Apr 15, 2025

आज ही के दिन यानी की 15 अप्रैल को सिखों के पांचवें गुरु, गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। गुरु परंपरा का पालन करते हुए गुरु अर्जन देव जी कभी भी गलत चीजों के आगे नहीं झुके। वह हमेशा शरणागतों की रक्षा के लिए खड़े रहे और स्वयं का बलिदान देना भी स्वीकार किया। गुरु अर्जुन देव के समकालीन मुगल शासक जहांगीर था। गुरु अर्जुन देव कभी मुगल शासक जहांगीर के आगे नहीं झुके और वह हमेशा मानव सेवा के पक्षधर रहे। गुरु अर्जुन देव से ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ था। तो आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर गुरु अर्जुन देव के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...


जन्म और परिवार

पंजाब के गोइंदवाल में 15 अप्रैल 1563 को गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु रामदास और मां का नाम बीवी भानी था। गुरु रामदास स्वयं चौथे सिख गुरु थे और उनके नाना गुरु अमरदास भी सिखों के तीसरे गुरु थे। ऐसे में गुरु अर्जुन देव का बचपन गुरु की देखरेख में बीता। गुरु अर्जुन देव को गुरु अमरदास ने गुरुमुखी की शिक्षा दी। साल 1579 में उनका विवाह मां गंगा देवी जी के साथ हुआ था। उनके बेटे का नाम हरगोविंद सिंह था, जोकि बाद में सिखों के छठवें गुरु बने थे।

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स्वर्ण मंदिर की नींव 

साल 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के 5वें गुरु बने थे। गुरु अर्जुन देव ने अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी, जिसको आज गोल्डन टेंपल यानी की स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि गुरुद्वारे का नक्शा खुद अर्जुन देव जी ने बनाया था।


गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन

गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन भाई गुरदास के सहयोग से किया था। गुरु अर्जुन देव ने रागों के आधार पर गुरु वाणियों का वर्गीकरण भी किया था। बता दें कि गुरु ग्रंथ साहिब में स्वयं गुरु अर्जुन देव के हजारों शब्द हैं।


बलिदान गाथा

बता दें कि मुगल बादशाह अकबर की मौत के बाद 1605 में जहांगीर अगला मुगल शासक बना। जहांगीर के सम्राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के भी विरोधी सक्रिय हो गए। विरोधी जहांगीर को अर्जुन देव जी के खिलाफ भड़काने लगे। इसी बीच शहजादा खुसरो ने अपने पिता जहांगीर के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसके बाद जहांगीर अपने बेटे की जन के पीछे पड़ गया तो वह भागकर पंजाब चला गया और गुरु अर्जन देव जी ने उसका स्वागत किया और उसको अपने यहां शरण दी।


जब इस बात की जानकारी जहांगीर को हुई तो वह गुरु अर्जुन देव पर भड़क गया। ऐसे में जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। जिसके बाद गुरु अर्जुन देव ने बाल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंप दी और वह खुद लाहौर पहुंच गए। जहां पर उन पर बगावत करने का आरोप लगा और जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव को यातना देकर मारने का आदेश दे दिया।


मृत्यु

बता दें कि मुगल शासक जहांगीर के आदेश पर गुरु अर्जुन देव को पांच दिनों तक तमाम तरह की यातनाएं दी गईं। लेकिन उन्होंने शांत मन से सब सहा। फिर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को 30 मई 1606 को गुरु अर्जुन देव को लाहौर में भीषण गर्मी के दौरान गर्म तवे पर बिठाया। इसके बाद उनके ऊपर गर्म तेल और रेत डाली गई। यातना की वजह से जब वह मूर्छित हो गए तो उनके शरीर को रावी नदी की धारा में बहा दिया गया।

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