By नीरज कुमार दुबे | Nov 03, 2025
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक बार फिर सुर्खियों में हैं और इस बार वजह उनका वह दावा है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनके कार्यकाल के दौरान चीन ताइवान पर हमला नहीं करेगा। यह वही ट्रंप हैं जो कभी दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे रूस से तेल खरीद कम करने का वादा किया, तो कभी कहते हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवा दिया। सवाल उठता है कि क्या ट्रंप सच बोल रहे हैं, या फिर वह अपनी राजनीतिक लोकप्रियता बढ़ाने के लिए झूठे “कूटनीतिक किस्से” गढ़ रहे हैं?
हम आपको बता दें कि ट्रंप ने अमेरिकी टीवी चैनल “60 Minutes” को दिए इंटरव्यू में कहा कि शी जिनपिंग ने “खुले तौर पर कहा” है कि जब तक ट्रंप राष्ट्रपति रहेंगे, चीन ताइवान पर कोई कार्रवाई नहीं करेगा, क्योंकि “वह परिणाम जानते हैं।” ट्रंप के इस दावे पर सवाल इसलिए उठता है क्योंकि चीन की विदेश नीति को थोड़ा भी समझने वाला व्यक्ति जानता है कि बीजिंग ऐसा कोई आश्वासन नहीं देता। चीन की नीति हमेशा साफ़ रही है कि ताइवान उसका हिस्सा है और “राष्ट्रीय एकीकरण” उसका लक्ष्य है। ऐसे में शी जिनपिंग का किसी विदेशी नेता से इस विषय पर वादा करना कूटनीतिक रूप से असंभव है।
यानी सच कहें तो ट्रंप का यह बयान बेमतलब की डींग लगता है। दरअसल, ट्रंप की राजनीति “ड्रामा और धमकी” पर टिकी है। वह हर बातचीत को “डील” बना देते हैं और हर मुलाक़ात को “जीत” बताने की कोशिश करते हैं। मोदी से लेकर शी जिनपिंग तक, वह ऐसे दिखाना चाहते हैं कि पूरी दुनिया उनके इशारों पर चलती है। लेकिन सच्चाई यह है कि उनके ज़्यादातर दावे झूठे, अप्रमाणित और राजनीतिक प्रचार से ज़्यादा कुछ नहीं हैं।
भारत के संदर्भ में भी ट्रंप का रिकॉर्ड साफ़ नहीं है। ट्रंप ने बार-बार कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम करवाया, जबकि भारत ने हर बार स्पष्ट किया कि कश्मीर और द्विपक्षीय मसले में किसी तीसरे देश की कोई भूमिका नहीं हो सकती। फिर भी ट्रंप यह दावा दोहराते रहते हैं क्योंकि इससे वह अपने समर्थकों को यह दिखा सकते हैं कि वे “वैश्विक शांति निर्माता” हैं।
अब वही पुराना खेल उन्होंने चीन के साथ खेलना शुरू कर दिया है। ताइवान पर चीन की आक्रामकता और अमेरिका की “रणनीतिक अस्पष्टता” पहले से ही तनावपूर्ण विषय हैं। ऐसे में ट्रंप का यह दावा केवल उलझन और अविश्वास बढ़ाता है। यदि शी जिनपिंग ने ऐसा कुछ नहीं कहा और लगभग तय है कि उन्होंने ऐसा नहीं कहा होगा, इसलिए ट्रंप का यह बयान चीन-अमेरिका संबंधों को और बिगाड़ सकता है।
ट्रंप की इस अनिश्चितता पर भारत के सेनाध्यक्ष जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने जो टिप्पणी की, वह बहुत सटीक थी। रीवा में बोलते हुए उन्होंने कहा, “आज ट्रंप क्या कर रहे हैं, यह शायद खुद ट्रंप भी नहीं जानते कि कल क्या करेंगे।” यह वाक्य मज़ाक नहीं, बल्कि एक गहरी टिप्पणी है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि दुनिया आज अस्थिरता, भ्रम और अनिश्चितता के दौर में है और ट्रंप जैसे नेता इस अस्थिरता को और बढ़ा रहे हैं। देखा जाये तो जनरल द्विवेदी की टिप्पणी में एक चेतावनी छिपी है कि आज के दौर में खतरा सिर्फ़ युद्ध, आतंक या सीमा विवादों से नहीं है, बल्कि उन नेताओं से भी है जो झूठी सूचनाओं, अफ़वाहों और प्रचार को हथियार बना चुके हैं। ट्रंप का हर दावा, हर ट्वीट, हर इंटरव्यू उसी झूठ की राजनीति का हिस्सा है जो तथ्यों से ज़्यादा प्रभाव पर टिके हैं।
बहराहल, ट्रंप का ताइवान वाला बयान इस बात का सबूत है कि उनके लिए कूटनीति भी एक रियलिटी शो की तरह है जहां “नाटकीयता” नीति से बड़ी है और “श्रेय” सच्चाई से ज़्यादा अहम है। सवाल अब सिर्फ़ इतना नहीं है कि ट्रंप झूठ बोल रहे हैं या नहीं? असली सवाल यह है कि दुनिया कब तक ऐसे नेताओं की भ्रमभरी बयानबाज़ी को गंभीरता से लेती रहेगी।
-नीरज कुमार दुबे