Matrubhoomi: जहां PM को भी नहीं मिली थी प्रवेश की अनुमति, जगन्नाथ पुरी धाम के अनसुने किस्से

By अभिनय आकाश | Sep 30, 2025

जिनका रूप अति शांत मय है, जो शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं। जिनकी भूमि से कमल निकलता है। जो गगन के समान हर जगह व्याप्त हैं। वो भय का नाश करते हैं। श्री हरि विष्णु समस्त जगत के आधार हैं। वैकुंठ लोक के स्वामी श्री हरि विष्णु धरती के कल्याण के लिए भारत वर्ष की भूमि पर वास करते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बैकुंठ लोक धरती पर भी है। जिसे हम जगन्नाथपुरी के नाम से जानते हैं। आप भारत के किसी भी कोने में क्यों न रहते हों आपकी ये इच्छा जरूर रही होगी कि जिंदगी में एक बार  जगन्नाथ मंदिर जरूर जाएं। भारत का हर हिन्दू ये चाहता है कि एक बार उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन का सौभाग्य जरूर प्राप्त हो। 

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सदियों तक रेत में क्यों दबा रहा जगन्नाथ मंदिर

उत्कल क्षेत्र के राजा इंद्र देव और उनकी पत्नी रानी गुंडजा ने बड़े परिश्रम से भगवान नील माधव के लिए मंदिर बनवाया था। हुनुमान जी ने इसमें उनकी सहायती की थी। देव विश्वकर्मा बूढ़े शिल्पकार के रूप में आए और उन्होंने सशर्त भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं तैनात कर दी। अब मंदिर और देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा का प्रश्न था। इस कार्य के लिए योग्य ब्राह्मण कौन होगा। इस पर विचार होने लगा। तभी वहां देवर्षि नारद प्रकट हुए। राजा इंद्र देव ने कहा कि आप वहां नारायण के सबसे प्रिय भक्त हैं, इसलिए उनके दिव्य स्वरूप की प्राण प्रतिष्ठा आप ही करें। नारद ने कहा कि जब पिता मौजूद हों तो पुत्र सबसे अच्छा कैसे हो सकता है। इस विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा तो ब्रह्मा जी को ही करनी चाहिए। आप मेरे साथ चलकर उन्हें आमंत्रित करें, वो जरूर आएंगे। ये सुनने के बाद राजा ब्रह्म लोक जाने के लिए तैयार हो गए। रानी गुंडजा ने कहा कि जबतक आप लौटकर नहीं आते मैं प्राणायाम के जरिए समाधि में रहकर तप करूंगा। राजा ब्रह्म लोक पहुंचकर ब्रह्मा जी से आग्रह किया। ब्रह्म देव ने राजा की बात मान ली और वो उनके साथ उत्ल क्षेत्र पहुंचे। जब वो वापस धरती पर लौटे तबतक धरती पर कई सदियां बीत चुकी थी। इस दौरान मंदिर भी समय की परतों के साथ रेत के नीचे दब गया था। एक दिन समुद्री तूफान आया और इसके कारण मंदिर का शिखर रेत के बाहर आया। इसी दौरान राजडा इंद्रदेव ब्रह्मदेव को लेकर धरती पर आ गए। रानी को भी अपने पति के लौटने का अहसास हुआ और वो समाधि से बाहर निकली। फिर ब्रह्म देव ने यज्ञ कराकर रानी और राजा के हाथों जगन्नाथ भगवान की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही भगवान जगन्नाथ उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ प्रकट हो गए और राजा को कई वरदान दिए। रानी की ओर मुड़ते हुए कहा कि जिस स्थान पर आपने तपस्या की वहां गुंडजा मंदिर होगा। हम तीनों भाई बहन आपके पास आया करेंगे और संसार इसे रथ यात्रा के तौर पर जानेगा। इसलिए हर साल आषाढ़ शुक्त पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है। 

PM रहते इंदिरा गांधी को नहीं मिली थी एंट्री

आपको इस बात का अंदाजा नहीं होगा कि वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि इस मंदिर में प्रवेश की इजाजत सिर्फ और सिर्फ सनातन हिन्दुओं को ही मिलती है। इस मंदिर का प्रशासन सिर्फ हिन्दु, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को ही मंदिर में प्रवेश की अनुमति देता है। इसके अलावा दूसरे धर्म के लोगों और विदेशी लोगों के प्रवेश पर सदियों पुराना प्रतिबंध लगा हुआ है। इसलिए भारत की प्रधानमंत्री को भी इस मंदिर में अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं दी गई। यानी भारत का प्रधानमंत्री भी अगर हिन्दू नहीं है तो वो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों के मुताबिक इंदिरा गांधी हिन्दू नहीं बल्कि पारसी हैं। इसलिए 1984 में उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई थी। मंदिर के प्रबंधकों के अनुसार इंदिरा गांधी का विवाह एक पारसी फिरोज जहांगीर गांधी से हुआ था। इसलिए विवाह के बाद वो तकनीकी रूप से हिन्दू नहीं रहीं। इसी वजह से उन्हें जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। 

जगन्नाथ मंदिर में गैर हिन्दुओं को प्रवेश क्यों नहीं मिलता?

जगन्नाथ मंदिर में शिलापट्ट में 5 भाषाओं पर लिखा है। 

यहां सिर्फ सनातन हिन्दुओं को ही प्रवेश की इजाजत है।

वर्ष 2005 में थाईलैंड की रानी को मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई थी। 

वो बौद्ध धर्म की थी, लेकिन विदेशी होने की वजह से उन्हें इस मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली थी। 

सिर्फ भारत के बौद्ध धर्म के लोगों को ही जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की इजाजत।

वर्ष 2006 में स्विजरलैंड की एक नागरिक ने जगन्नाथ मंदिर को 1 करोड़ 78 लाख रूपए दान में दिए थे।  

लेकिन ईसाई होने की वजह से उन्हें भी मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं दी गई।

वर्ष 1977 में इस्कॉन आंदोलन के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद पुरी आए। उनके अनुयायियों को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई।

20 बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटा गया

जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों द्वारा लूटा गया। खासतौर पर मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को नष्ट करने के लिए ओडिशा पर बार-बार हमले किए। लेकिन ये हमलावर जगन्नाथ मंदिर की तीन प्रमुख मूर्तियों भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों को नष्ट नहीं कर सके। क्योंकि मंदिर के पुजारियों ने बार-बार इन मूर्तियों को छुपा दिया। एक बार मूर्तियों को गुप्त रूप से ओडिशा से बाहर ले जाकर हैदराबाद में भी छुपा दिया गया था। हमलावर की वजह से भगवान को अपना मंदिर छोड़ना पड़े, इस बात पर आज के भारत में शायद कोई विश्वास न करे। मंदिर से जुड़े इतिहास का अध्ययन करने वालों का दावा है कि हमलों की वजह से 144 वर्षों तक भगवान जगन्नाथ को मंदिर से दूर रहना पड़ा। 


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