सरकारी बंगले को निजी जागीर समझने वाले नेताओं पर चला ''सुप्रीम'' डंडा

By अजय कुमार | May 10, 2018

सरकारी संपत्तियों और संसाधनों का दोहन करने में मुट्ठी भर लोगों को महारथ हासिल है। वर्ना आम आदमी जो इसके हकदार हैं वह तो एड़ियां घिसते−घिसते सरकार की 'चौखट' पर 'दम' तोड़ देता है। कहीं भी देख लीजिए हालात बद से बदतर नजर आयेंगे। हर तरफ अराजकता का बोलबाला है। काला−सफेद कोट पहनने वाले हों या फिर खादी अथवा खाकी में लिपटे लोग अथवा नौकरशाही या फिर बड़े−बड़े अन्य अधिकारी। सब सरकारी सुविधाओं का खूब फायदा उठाते हैं। सरकारी अस्पतालों में वीआईपी मरीज हाथों हाथ लिये जाते हैं। उन्हें डाक्टर अपने केबिन में बुलाकर देखता है तो गरीबों के नाम की दवाएं यह स्वयं डकार लेते हैं। यही स्थिति पुलिस चौकियों और थाने से लेकर प्रदेश के हाकिम तक के दफ्तर में नजर आती है।

यहां गरीब की रिपोर्ट लिखी नहीं जाती है और 'पहुंच' वालों के आने पर 'रेड कार्पेट' बिछा दिया जाता है। ऐसे लोगों के कहने पर कभी−कभी तो भुक्तभोगी को ही उलटे केस में फंसा दिया जाता है। हाल ही में जिला उन्नाव में इसकी बानगी उस समय देखने को मिली थी जब सत्तारूढ़ दल के एक विधायक की घिनौनी हरकत को नजर अंदाज करके बलात्कार का दर्द झेल रही एक युवती पर अत्याचार के पहाड़ टूट पड़े थे। अदालत की चौखट पर भी ऐसा ही माहौल दिखाई पड़ता है। गरीब को तारीख पर तारीख मिलती रहती है और पॉवरफुल अपराधी तक पैसे के बल पर बेदाग बरी हो जाते हैं। जेलों में जाकर देख लीजिए कई छोटे−छोटे अपराध में फंसे कैदी वर्षों से इसलिये जेल से बाहर नहीं आ पा रहे हैं क्योंकि उनक पास जमानत के लिये कुछ नहीं है। जबकि हनकदार लोगों के लिये कानून तक बदल दिये जाते हैं। जैसा कि 2016 में देखने को मिला था, जब अखिलेश सरकार ने कोर्ट के पूर्व मुख्यमंत्रियों से आवास खाली कराने के एक आदेश को पलटने के लिये नया कानून ही बना दिया था, लेकिन लम्बी लड़ाई के बाद अंततः सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा पारित वह कानून निरस्त कर दिया जिसके मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगले में रहने की सुविधा दी गई थी।

 

कोर्ट ने फिर दोहराया कि किसी को इस आधार पर सरकारी बंगला आवंटित नहीं किया जा सकता कि वह पूर्व में किसी सार्वजनिक पद पर रह चुका है। 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने इसी आशय का आदेश जारी किया था जिसे बेअसर करने के लिए तत्कालीन अखिलेश सरकार ने विधानसभा से नया कानून पारित करवाया। इस नए कानून को एक एनजीओ ने अदालत में चुनौती दी थी। दो साल बाद कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि चूंकि सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई है, इसलिए उन्हें आवास की सुविधा भी मिलनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि इन बातों को सरकारी आवास आवंटित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है। अब देखना यह होगा कि बीजेपी की योगी सरकार का इस फैसले को लेकर क्या स्टैंड रहता है। वैसे सच्चाई यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बीजेपी को उतना बड़ा झटका नहीं लगेगा जितना उसके विरोधियों में शामिल मुलायम, मायावती और अखिलेश यादव के लिये रहेगा। यह सोच कर बीजेपी खुश भी हो सकती है क्योंकि पूर्व सीएम की लिस्ट में बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह एवं राजनाथ सिंह का ही नाम शामिल है।

कायदे से तो 2016 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्वेच्छा से सरकारी बंगले छोड़ देने चाहिए थे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं, इसके उलट जब अखिलेश सरकार ने बंगले खाली कराने के बजाय संबंधित कानून में संशोधन किया तो बात−बात पर अखिलेश सरकार का विरोध करने वाली बीजेपी सहित तमाम राजनीतिक दलों ने इस तरफ से मुंह मोड़ लिया। इसे लोकतंत्र की विकृति के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। अच्छा होगा अब ज्यादा थुक्का फजीहत न हो इसके लिये पूर्व मुख्यमंत्री सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के बाद बिना किसी देरी के खुद को आवंटित बंगले छोड़ दें। यह एक किस्म की सामंतशाही के अलावा और कुछ नहीं कि मुख्यमंत्री पद से विदा होने के बाद भी नेतागण सरकारी बंगलों को अपने पास रखे रहें।

 

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को जीवनभर सरकारी बंगलों में रहने की सुविधा सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने खारिज करते हुए कहा है कि एक बार जब ऐसे लोग सरकारी पद छोड़ देते हैं तो फिर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए, जो उनमें और आम आदमी में अंतर करता हो। बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली करने को कहा है, उनके पास अपने घर भी हैं। चुनावी हलफनामों के अनुसार मायावती के पास करोड़ों की संपत्ति के साथ दिल्ली और लखनऊ में अपने घर हैं। मुलायम सिंह के पास भी करोड़ों की सम्पत्ति के साथ इटावा, सैफई और लखनऊ में एक−एक घर है। राजनाथ सिंह के पास भी लखनऊ में अपना घर है।

 

पूर्व मुख्यमंत्रियों- नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम, मायावती, अखिलेश के नाम बंगले आवंटित हैं तो पूर्व मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह का बंगला अब उनके ही नाम से बने एक ट्रस्ट के नाम है। इसी तरह हेमवती नंदन बहुगुणा के नाम पर भी ट्रस्ट बनाया गया था। मायावती के बंगले को भी ट्रस्ट के नाम से आवंटित किया गया है।

 

बात पूर्व मुख्यमंत्रियों की हैसियत का की जाये तो यह लोग सरकारी बंगले में रहते तो जरूर हैं लेकिन इनके निजी घरों की भव्यता देखते बनती है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव के लिए तो उनकी ही सरकारों ने खजाने का मुंह खोल रखा था। अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले आधुनिक भले ही न हों लेकिन यह बंगले भी किसी से कम नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्रियों से बंगले खाली कराने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का असर प्रदेश में छह राजनेताओं पर पड़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री रामनरेश यादव के पास भी सरकारी बंगला था लेकिन उन्होंने उसे खाली कर दिया था। पूर्व मुख्यमंत्रियों को इन बंगलों में जीवन भर रहने का अधिकार मिला हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, वीर बहादुर सिंह, हेमवतीनंदन बहुगुणा और श्रीपति मिश्र को भी बंगले मिले थे, मगर 1997 में हाईकोर्ट के एक आदेश के बाद वीपी सिंह, कमलापति त्रिपाठी, हेमवतीनंदन बहुगुणा और श्रीपति मिश्र के आवास खाली हो गए थे, मगर मायावती की गठबंधन सरकार ने 'एक्स चीफ मिनिस्टर्स रेजिडेंस अलाटमेंट रूल्स 1997' बना कर एक बार फिर बंगलों पर कब्जा जमाये रखने का इंतजाम कर दिया था। इस नियम के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगले में जमे रहने का मार्ग निकल आया और पुराने नामों में मुलायम, मायावती, राजनाथ, कल्याण, अखिलेश आदि की श्रृंखला जुड़ती गई।

 

-अजय कुमार 

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