By नीरज कुमार दुबे | Aug 18, 2025
पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर का लगातार विदेश यात्राओं पर जाकर साक्षात्कार देना और स्वयं को पाकिस्तान का “असली निर्णायक” प्रस्तुत करना इस्लामाबाद की राजनीतिक वास्तविकताओं को उजागर करता है। दरअसल, पाकिस्तान में सेना ही सत्ता का वास्तविक केंद्र है और मुनीर इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी स्थापित करना चाहते हैं। भारत को प्रतिदिन दिए जाने वाले उनके धमकी भरे बयानों का मकसद घरेलू मोर्चे पर जनता का ध्यान आर्थिक संकट और राजनीतिक अस्थिरता से हटाना है।
दूसरी ओर, अमेरिकी विदेश मंत्री का यह कहना कि भारत-पाक संघर्षविराम जल्द ही टूट सकता है, क्षेत्रीय अस्थिरता पर वैश्विक चिंता को रेखांकित करता है। वॉशिंगटन की इस टिप्पणी से साफ है कि दुनिया को डर है कि पाकिस्तानी सेना अपनी घरेलू कमजोरियों को छिपाने के लिए सीमा पर तनाव बढ़ा सकती है। भारत के लिए यह स्थिति एक बड़ी चुनौती है— जहाँ उसे एक ओर अपने संयम और धैर्य का परिचय देना है, वहीं दूसरी ओर हर उकसावे का ठोस और कूटनीतिक जवाब भी तैयार रखना है।
जहां तक मुनीर के ताजा साक्षात्कार की बात है तो आपको बता दें कि ब्रसेल्स में पाकिस्तानी पत्रकार सुहैल वार्राइच को दिए एक साक्षात्कार में पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है। इस साक्षात्कार में मुनीर ने जो स्वीकारोक्ति की है वह न केवल पाकिस्तान की राजनीति और सैन्य सोच को उजागर करती है, बल्कि भारत और वैश्विक भू-राजनीति के लिए भी गहरे संकेत छोड़ती है।
हम आपको बता दें कि असीम मुनीर ने स्वयं को “ईश्वर प्रदत्त पाकिस्तान का रक्षक” बताते हुए राष्ट्रपति या राजनेता बनने की अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है कि उनका सबसे बड़ा सपना शहादत है, न कि सत्ता। इसके साथ ही मुनीर ने भारत और अफ़ग़ानिस्तान पर पाकिस्तान को अस्थिर करने का आरोप भी लगाया। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि दोनों देशों के बीच कोई सहयोग पाकिस्तान में अस्थिरता फैलाने के उद्देश्य से हुआ, तो सेना जवाबी हमला करने से पीछे नहीं हटेगी। यह वक्तव्य दर्शाता है कि पाकिस्तान की सुरक्षा नीति आज भी "बाहरी ख़तरे" के आख्यान पर आधारित है।
साथ ही, मुनीर ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की शांति पहल की सराहना की, लेकिन साथ ही स्पष्ट किया कि पाकिस्तान किसी एक मित्र के लिए दूसरे का त्याग नहीं करेगा। मुनीर का इशारा साफ तौर पर चीन की तरफ था। उन्होंने यह संकेत दिया कि चीन जैसे पुराने दोस्त का साथ नहीं छोड़ा जायेगा। इसके अलावा, आर्थिक मोर्चे पर उन्होंने रे़को डिक (Reko Diq) खनन परियोजना से अगले वर्ष से ही सालाना 2 अरब डॉलर मुनाफ़ा होने का दावा किया। उन्होंने दुर्लभ खनिज संपदा के दोहन को पाकिस्तान की कर्ज़ मुक्ति और समृद्धि की कुंजी बताया। हालांकि पाकिस्तान में दुर्लभ खनिज होने की संभावना नगण्य ही है लेकिन फिर भी इस बात को प्रचारित किया जा रहा है ताकि वहां निवेश आ सके। इससे पहले इमरान खान भी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में पाकिस्तान में गैस मिलने का दावा कर अपनी जगहंसाई करवा चुके थे।
मुनीर ने अपने साक्षात्कार में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को सुझाव दिया कि उन्हें सेना से माफ़ी मांगनी चाहिए। उन्होंने स्वयं को ईश्वर और इमरान ख़ान को शैतान के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने आदम को न मानकर विद्रोह किया। यह बयान दर्शाता है कि पाकिस्तान में सेना और राजनीतिक नेतृत्व का टकराव धार्मिक आख्यानों से भी वैध ठहराने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा, मुनीर ने राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी के इस्तीफ़े की अटकलों को निराधार बताया और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ तथा उनकी कैबिनेट की कार्यक्षमता की सराहना की।
देखा जाये तो आसिम मुनीर का यह साक्षात्कार पाकिस्तान की विशिष्ट "सेना-प्रधान राजनीति" की झलक पेश करता है। एक ओर वह धार्मिक और राष्ट्ररक्षात्मक प्रतीकवाद का सहारा लेकर अपनी वैधता मज़बूत करना चाहते हैं, तो दूसरी ओर आर्थिक सुधारों और वैश्विक साझेदारियों का खाका खींचते हैं। भारत के संदर्भ में उनकी भाषा अब भी टकराव और धमकी की शैली को दोहराती है। स्पष्ट है कि पाकिस्तान की राजनीति और सुरक्षा नीति अभी भी सेना के इर्द-गिर्द ही घूम रही है और मुनीर इस धुरी को और मज़बूती देने में जुटे हैं।
हम आपको यह भी बता दें कि अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कहा है कि उनका देश भारत और पाकिस्तान के बीच हो रही गतिविधियों पर “हर रोज नजर रखता है”, क्योंकि दोनों देशों के बीच संघर्ष-विराम बहुत जल्द टूट सकता है। मार्को रूबियो ने ‘एनबीसी न्यूज’ के ‘मीट द प्रेस’ कार्यक्रम में कहा, ''संघर्ष-विराम की एक जटिलता यह है कि उसे बनाए रखना होता है, जो बहुत मुश्किल है। मेरा मतलब है, हम हर रोज इस बात पर नजर रखते हैं कि पाकिस्तान और भारत के बीच क्या हो रहा है, कंबोडिया और थाईलैंड के बीच क्या हो रहा है।” अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा, “युद्ध-विराम बहुत जल्दी टूट सकते हैं।'' इसके अलावा, ‘फॉक्स न्यूज’ को दिए गए साक्षात्कार में रूबियो ने एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के बीच हाल में हुए सैन्य संघर्ष का जिक्र किया, जिसके बारे में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने इसे रुकवाया। रूबियो ने कहा, “और मुझे लगता है कि हम बहुत भाग्यशाली हैं और हमें एक ऐसे राष्ट्रपति के लिए आभारी होना चाहिए, जिन्होंने शांति बहाली को अपने प्रशासन की प्राथमिकता बनाया है। हमने इसे कंबोडिया और थाईलैंड में देखा है। हमने इसे भारत-पाकिस्तान में देखा है। हमने इसे रवांडा और डीआरसी में देखा है। और हम दुनिया में शांति लाने के लिए हर संभव अवसर का लाभ उठाते रहेंगे।''
बहरहाल, पाकिस्तानी सेना प्रमुख मुनीर द्वारा भारत को दी गई ताज़ा धमकी इस बात का संकेत है कि इस्लामाबाद अपनी पारंपरिक “भारत-विरोधी” नीति से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो का यह बयान कि वॉशिंगटन भारत-पाक गतिविधियों पर “हर रोज नजर” रखता है, इस क्षेत्र की संवेदनशीलता और वैश्विक महत्व को दर्शाता है। दरअसल, संघर्षविराम की नाजुक स्थिति बार-बार यह याद दिलाती है कि दक्षिण एशिया में शांति केवल बयानबाज़ी से नहीं, बल्कि ठोस कूटनीतिक प्रयासों और आतंकी ढांचे पर निर्णायक कार्रवाई से ही संभव है।