समय का सदुपयोग जरूरी (कहानी)

By अमृता गोस्वामी | Oct 13, 2017

सुमित ने बारहवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में नया एडमीशन लिया था। कॉलेज जाने के लिए सुमित बहुत उत्साहित था। आज कॉलेज में उसका पहला दिन था। सुमित साफ-सुथरे नए कपड़े पहनकर कॉलेज पहुंचा। वह अपने क्लास रूम की ओर बढ़ ही रहा था कि उसका रास्ता रोकते हुए उसके सामने कॉलेज का एक पूर्व विद्यार्थी आकर खड़ा हो गया। उसने सुमित से कहा- ‘‘हाय! मेरा नाम रॉबिन है और तुम्हारा?’’ सुमित हाथ आगे बढ़ाते हुए बोला- ‘‘हैलो! मैं सुमित।’’

रॉबिन ने अपना हाथ पीछे करते हुए कहा- ‘‘हाथ बराबर बालों से मिलाते हैं। वैसे तुम इस कॉलेज में नए आए हो तो हम सीनियर्स को सलाम तो करना ही पड़ेगा।’’ सीनियर्स का सम्मान करते हुए सुमित ने रॉबिन को सलाम किया और आगे बढ़ने लगा।

 

रॉबिन ने सुमित को क्लास की ओर जाने से रोकते हुए कहा- ‘‘ठहर जाओ महाशय। क्लास में जाने की इतनी भी क्या जल्दी है।’’ वह सुमित के कपड़ों को निहारते हुए बोला- ‘‘अमीर घराने के लगते हो। हमारे कॉलेज की कैन्टीन में समोसे बहुत स्वादिष्ट हैं, आज समोसे तुम खिलाओगे।’’ सुमित ने बिना न नुकुर किए रॉबिन की बात मान ली और उसे व उसके दोस्तों को कॉलेज की कैन्टीन में समोसे की पार्टी दे दी।

 

रॉबिन अब सुमित से खुश था वह बोला- ‘‘अच्छा अब जाओ क्लास में कहीं क्लास मिस न हो जाए।’’ सुमित जल्दी-जल्दी अपनी क्लास की ओर चल दिया। सुमित की क्लास में सभी विद्यार्थी बहुत होनहार और होशियार थे, साथ ही वहां लेक्चरर्स भी बहुत एजुकेटेड थे। सुमित मन लगाकर पढ़ाई करने लगा और उधर रॉबिन था कि उसने रोज-रोज नए स्टूडेंट्स को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी वह कभी उनका टिफिन खा जाता तो कभी किसी की स्कूटी की चाबी मांगकर घंटों बाद उसे उसकी स्कूटी लौटाता।

 

सुमित की कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने को आई थी और कॉलेज के ही माध्यम से उसे एक अच्छी कंपनी में प्लेसमेंट भी मिल गया। कॉलेज के प्रोजेक्ट पूरे होते ही सुमित ने कंपनी ज्वाइन कर ली और अपनी बुद्धिमत्ता से वह जल्दी ही कंपनी का सीईओ भी बन गया।

 

उसकी कंपनी ने हाल ही में लिपिक के पदों पर भर्ती के लिए जॉब्स निकाली थी। इंटरव्यू लेने के लिए सुमित सहित कॉलेज का पैनल बैठा था। दो तीन इंटरव्यू के बाद जब रॉबिन का नाम पुकारा गया तो सुमित को हैरानी हुई और कुछ ही देर में उसने देखा कि उसके सामने रॉबिन अपने डॉक्यूमेंट्स की फाईल हाथ में लिए खड़ा था।

 

रॉबिन की नजर जैसे ही सुमित पर पड़ी वह उसे सीईओ की पोस्ट पर बैठा देखकर सकपका गया। वह बहुत शर्मिंदा था और आश्चर्यचकित भी। वह भी उसी कॉलेज में पढ़ा था जिसमें रॉबिन किन्तु आज तक वह नौकरी के लिए भटक रहा था।

 

सुमित को देखते ही रॉबिन को कॉलेज की अपनी सारी बदमाशियां याद आने लगीं। अपनी बदमाशियों के बावजूद सुमित के सधे हुए और नम्रता भरे व्यवहार का स्मरण भी रॉबिन को हो आया था। सफलता की कुंजी अब रॉबिन को समझ में आ गई थी।

 

रॉबिन सुमित के सामने गिड़गिड़ाया सा खड़ा था। उसने अपनी गलतियों का पछतावा किया और बोला- ‘‘सुमित! यदि मैंने भी तुम्हारी तरह कॉलेज में जूनियर्स को परेशान करने और ऊलजलूल हरकतें न करते हुए सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान दिया होता तो शायद आज मैं भी अच्छे नंबरों से पास हो जाता और नौकरी के लिए यहां वहां नहीं भटक रहा होता।’’


 
रॉबिन की आंखों में आंसू थे उसे बहुत पछतावा हो रहा था। वह चुपचाप वहां से जाने को हुआ तभी सुमित ने उसे रोका और कहा 'रॉबिन! जो समय बीत गया उसे वापस तो नहीं लाया जा सकता किन्तु तुम्हारा पश्चाताप तुम्हें आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। यदि तुम लगन से इस छोटी पोस्ट को भी स्वीकारोगे तो हो सकता है कंपनी में आगे तरक्की कर पाओ।’’

 

रॉबिन सुमित की अच्छाईयों से पहले से ही वाकिफ था उसने सुमित की बताई राह पर चलना बेहतर समझा और सुमित का शुक्रिया अदा करते हुए वहां नौकरी ज्वाइन कर ली।

 

सार: समय का सदुपयोग ही हमारे विकास की राह प्रशस्त करता है।

 

अमृता गोस्वामी

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