By अनन्या मिश्रा | Aug 21, 2025
शहनाई के शहंशाह उस्ताद बिस्मिल्ला खान आज ही के दिन यानी की 21 अगस्त को इस दुनिया से रुखसत हो गए थे। उन्होंने शहनाई को पूरी दुनिया में नई पहचान देने का काम किया था। वहीं उस्ताद बिस्मिल्ला खां का परिवार पिछली पांच पीढ़ियों से शहनाई वादन के क्षेत्र में असरदार हैसियत रखता है। उन्होंने छोटी उम्र से ही शहनाई बजाना सीख लिया था, वहीं जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनकी शहनाई को भी सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया था। तो आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर उस्ताद बिस्मिल्ला खां के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
बिहार के डुमराव जिले में 21 अगस्त 1916 को उस्ताद बिस्मिल्ला खां का जन्म हुआ था। वहीं जब वह 6 साल के थे, तो अपने पिता पैगंबर खां के साथ वाराणसी आ गए थे। यहां पर उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और शांतिनिकेतन से अपनी शिक्षा पूरी की थी। शहनाई वादन बिस्मिल्ला खां साहब को विरासत में मिला था। दरअसल, उनके परिवार के लोगों को शुरूआत से ही राग दरबारी बजाने में महारत हासिल थी।
हर साल स्वाधीनता दिवस पर लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण के बाद आज भी बिस्मिल्ला खां की शहनाई की गूंज सुनाई देती है। यह परंपार देश के पहले पीएम जवाहर लाल नेहरू से समय से चली आ रही है। इसके अलावा दूरर्शन और आकाशवाणी की सिग्नेचर ट्यून में भी बिस्मिल्ला खां की शहनाई सुनाई देती है।
महज 14 साल की उम्र में प्रयागराज में संगीत परिषद में बिस्मिल्ला खां ने अपनी शहनाई से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया था। साल 2001 में उनको भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इससे पहले साल 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, साल 1968 में पद्म भूषण और साल 1980 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा साल 1930 में बिस्मिल्ला खां को ऑल इंडिया म्यूजिक कॉफ्रेंस में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का पुरस्कार मिला था। एमपी सरकार ने सर्वोच्च संगीत पुरस्कार 'तानसेन' की पदवी से बिस्मिल्ला खां को सम्मानित किया था।
उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को संगीत की लोकधुनें बजाने में महारत हासिल थी। इनमें से 'झूला', 'बजरी', 'चैती' जैसी कठिन और प्रतिष्ठित धुनों पर अपनी पकड़ बनाने के लिए बिस्मिल्ला खां ने कठोर तपस्या की थी। इसके साथ ही उन्होंने क्लासिकल और मौसिकी में भी शहनाई को सम्मान दिलाया था। उन्होंने अपनी काबिलियत से शहनाई को संगीत के शिखर पर पहुंचाया था। शांतिनिकेतन और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उनको डॉक्ट्रेट की उपाधि से नवाजा गया था।
वह अपना सारा पैसा परिवार और जरूरतमंदों पर खर्च कर देते थे। जिस कारण बाद में उनको आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ा था। तब सरकार ने आगे आकर बिस्मिल्ला खां की मदद की थी। वहीं 21 अगस्त 2006 को उस्ताद बिस्मिल्ला खां का निधन हो गया था।