Birthday Special: उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई बजाकर किया था आजादी का स्वागत, तब से आज भी चल रही ये परंपरा

By अनन्या मिश्रा | Mar 21, 2023

दुनिया के एक मशहूर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अद्धितीय योगदान दिया। संगीत की दुनिया में बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई को एक अलग पहचान दिलवाने का काम किया था। आपको बता दें कि बिस्मिल्लाह खां वही शख्सियत हैं, जिन्होंने शहनाई की मधुर धुन के साथ 15 अगस्त, 1947 में आजादी का स्वागत किया था। जिसके बाद से प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले पर भाषण के बाद बिस्मिल्लाह खां का शहनाई वादन एक परंपरा बन गई है।


जन्म और शिक्षा

बिस्मिल्लाह खां दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संगीतकारों में से एक थे। उनका जन्म बिहार के डुमरांव गांव में 21 मार्च 1916 को हुआ था। उनके बचपन का नाम कमरुद्धीन था। लेकिन बाद में उनके दादा रसूल बख्स के नाम पर उनका नाम बिस्मिल्लाह रख दिया गया था। बिस्मिल्लाह का मतलब होता है अच्छी शुरूआत। बिस्मिल्लाह जी का परिवार और उनकी 5 पीढ़ियां शहनाई के वादन का प्रतिवादक करता है। 


बिस्मिल्लाह खां के पूर्वज बिहार के भोजुपर रजवाड़े में दरबारी संगीतकार थे। वह अपने पिता के साथ महज 6 साल की उम्र में बनारस आ गए थे। जहां पर उन्होंने चाचा ली बख्श ‘विलायतु’ से शहनाई बजाना सीखा। बिस्मिल्लाह खां के चाचा काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई वादन का काम किया करते थे। डुमराव रियासत के महाराजा केशव प्रसाद सिंह के दरबार में उनके पिता भी शहनाई वादक थे। शहनाई वादन की कला बिस्मिल्लाह खां को अपने परिवार से विरासत में मिली थी।

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शहनाई वादक के रूप में पहचान

शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने महज 14 साल की उम्र में पहली बार इलाहाबाद के संगीत परिषद् में शहनाई बजाने का कार्यक्रम किया था। लेकिन उन्होंने बेहद कम समय में अपनी प्रतिभा को निखार कर सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रुप में अपनी पहचान बनाई। उन्होंने ‘बजरी’, ‘झूला’, ‘चैती’ जैसी प्रतिष्ठित लोकधुनों शहनाई वादन को संवारा। इसके अलावा उन्होंने शहनाई को क्लासिकल मौसिक़ी और संगीत की दुनिया में अलग सम्मान दिलवाया। जिस दौरान वह शहनाई वादक के तौर पर अपनी नई पहचान बना रहे थे, उस दौरान संगीतकारों को खास अहमियत नहीं दी जाती थी।


बचपन से परिवार के साथ संगीत से जुड़े रहना और शहनाई वादन में दिलचस्पी के कारण बिस्मिल्लाह खां ने उन्होंने खुद को एक प्रसिद्ध शहनाई वादक के रूप में स्थापित किया। इसके अलावा उन्होंने शहनाई को संगीत की दुनिया में भी पहचान दिलवाने का काम किया। उनके संगीत बजाने की प्रतिभा को देखते हुए शांतिनिकेतन और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा गया था।


प्रमुख योगदान

देश की आजादी के पूर्व संध्या पर यानि की 15 अगस्त 1947 को जब लालकिले पर झंडा फहराकर आजादी का जश्न मनाया गया था। तब बिस्मिल्लाह ख़ां ने अपनी मर्मस्पर्शी शहनाई बजाकर आजादी का स्वागत किया था। तब से लेकर आज भी 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण के बाद बिस्मिल्लाह ख़ां का शहनाई वादन परंपरा बन गई है।


मशहूर एल्बम और लाइव शो

कन्नड़ फिल्म सनादी अपत्रा में राजकुमार के किरदार के लिये बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई बजाई थी।

साल 1959 में फिल्म गूंज उठी शहनाई के लिए भी बिस्मिल्लाह खां ने अपनी शहनाई की धुन दी थी।

साल 1994 में मेघ मल्हार, वोल में भी बिस्मिल्लाह खां ने अपनी शहनाई की धुन दी थी।

साल 1994 में मेस्ट्रो च्वॉइस में भी बिस्मिल्लाह खां ने अपनी शहनाई की धुन दी थी।

साल 2000 में बिस्मिल्लाह खां जी ने क्वीन एलिज़ाबेथ हॉल में लाइव शो देकर दर्शकों को अपनी शहनाई से मंत्रमुग्ध किया था।

साल 2000 में बिस्मिल्लाह खां ने लन्दन में लाइव परफॉरमेंस, वोल में भी अपनी शहनाई की धुन दी थी।


सम्मान और पुरस्कार 

साल 2001 में बिस्मिल्लाह खां को देश के सर्वोच्च सम्मान ”भारत रत्न” से सम्मानित किया गया।

साल 1980 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया था।

साल 1968 में भारत के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया था।

साल 1961 में भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्म श्री से नवाजा गया था।

साल 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था।

साल 1930 में ऑल इंडिया म्यूजिक कांफ्रेंस में बेस्ट परफॉर्मर पुरस्कार से नवाजा गया था।

इसके अलावा उनको मध्य प्रदेश सरकार द्वारा तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।


निधन

संगीत की दुनिया में शहनाई को एक अलग पहचान दिलाने वाले बिस्मिल्लाह खां न सिर्फ सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक थे, बल्कि वह अपनी दरियादिली के भी जाने जाते थे। वह शहनाई बजाकर दो भी कमाते थे, उसे गरीबों व जरूरतमंदों को दान करते थे। इसके अलावा वह अपने बड़े से परिवार का भरण पोषण भी करते थे। जीवन के आखिरी दिनों में वह दिल्ली के इंडिया गेट पर शहनाई बजाने के इच्छुक थे। लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। जिसके बाद 21 अगस्त साल 2006 में दुनिया को अलविदा कह गए।

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