By नीरज कुमार दुबे | Sep 22, 2025
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने पहली बार राज्यों की वित्तीय स्थिति पर एक दशक भर का अध्ययन प्रस्तुत किया है। रिपोर्ट में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि देश के 16 राज्य राजस्व अधिशेष (Revenue Surplus) में हैं। इसमें सबसे आगे उत्तर प्रदेश है, जिसने वित्त वर्ष 2022-23 में 37,000 करोड़ रुपये का अधिशेष दर्ज किया। कभी "बीमारू राज्यों" में गिने जाने वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश अब इस श्रेणी में शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश के बाद गुजरात (19,865 करोड़), ओडिशा (19,456 करोड़), झारखंड (13,564 करोड़), कर्नाटक (13,496 करोड़), छत्तीसगढ़ (8,592 करोड़), तेलंगाना (5,944 करोड़), उत्तराखंड (5,310 करोड़), मध्य प्रदेश (4,091 करोड़) और गोवा (2,399 करोड़) जैसे राज्य अधिशेष की सूची में हैं। वहीं अरुणाचल, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर के राज्य भी इस सूची का हिस्सा बने। हम आपको यह भी बता दें कि इन 16 राज्यों में से 10 में भाजपा की सरकार है।
इसके उलट, 12 राज्य राजस्व घाटे (Revenue Deficit) से जूझ रहे हैं। इनमें आंध्र प्रदेश (-43,488 करोड़), तमिलनाडु (-36,215 करोड़), राजस्थान (-31,491 करोड़), पश्चिम बंगाल (-27,295 करोड़), पंजाब (-26,045 करोड़), हरियाणा (-17,212 करोड़), असम (-12,072 करोड़), बिहार (-11,288 करोड़), केरल (-9,226 करोड़), हिमाचल प्रदेश (-6,336 करोड़), महाराष्ट्र (-1,936 करोड़) और मेघालय (-44 करोड़) शामिल हैं।
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल, केरल, हिमाचल और पंजाब जैसे राज्य अब केंद्र से मिलने वाले Revenue Deficit Grants पर टिके हैं। वर्ष 2023 में केंद्र ने कुल 1.72 लाख करोड़ रुपये अनुदान दिए, जिसमें से 86,201 करोड़ सिर्फ राजस्व घाटा पाटने के लिए थे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हरियाणा, तेलंगाना, महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्यों ने स्वयं का कर एवं गैर-कर राजस्व बढ़ाकर वित्तीय आत्मनिर्भरता दिखाई है। वहीं पूर्वोत्तर के राज्य और बिहार-हिमाचल जैसे प्रदेश अब भी केंद्र के कर हिस्से और अनुदानों पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
दूसरी ओर, कभी "बीमारू राज्यों" के नाम से पहचाने जाने वाले उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आज राजस्व अधिशेष की सूची में शीर्ष पर हैं तो यह देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत अच्छा समाचार है। देखा जाये तो नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ताज़ा रिपोर्ट केवल आँकड़ों का लेखा-जोखा नहीं है, बल्कि यह भारत के बदलते आर्थिक भूगोल की कहानी भी कहती है।
उत्तर प्रदेश ने 37,000 करोड़ रुपये के अधिशेष के साथ सभी राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। दशकों तक पिछड़ेपन, प्रशासनिक अक्षमता और गरीबी के प्रतीक रहे इस राज्य का अब अधिशेष की श्रेणी में आना एक ऐतिहासिक मोड़ है। इसका मतलब है कि प्रदेश की आय उसके खर्च से अधिक हो रही है। आधारभूत संरचना में निवेश, औद्योगिक गलियारों का विकास और कर संग्रहण क्षमता में सुधार इस परिवर्तन के प्रमुख कारण माने जा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश के पुराने हालात पर गौर करें तो यहां कमज़ोर बुनियादी ढाँचा, प्रशासनिक ढिलाई और निवेश के प्रति अविश्वास ने दशकों तक इसकी प्रगति को थामे रखा। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में तस्वीर बदलती दिख रही है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट केवल आँकड़ों की जीत नहीं, बल्कि उस सतत परिश्रम का परिणाम है जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में किया गया है। योगी सरकार ने वित्तीय अनुशासन, पारदर्शिता और आधारभूत ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता दी। कानून-व्यवस्था की मजबूती से निवेशकों का भरोसा लौटा, औद्योगिक गलियारों, एक्सप्रेस-वे और एयरपोर्ट जैसे प्रोजेक्ट्स ने राज्य को नई पहचान दी। यही कारण है कि आज उत्तर प्रदेश केवल अधिशेष का प्रतीक नहीं है, बल्कि वन ट्रिलियन डॉलर इकॉनॉमी बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है। हालाँकि यह लक्ष्य कठिन है। लेकिन जिस गति से राज्य ने "बीमारू" की छवि को तोड़कर राजस्व अधिशेष का मुकाम हासिल किया है, उसी गति से यदि निवेश, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार जारी रहे, तो यह सपना असंभव नहीं है। उत्तर प्रदेश की नई कहानी यह बताती है कि राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्रशासनिक प्रतिबद्धता से किसी भी राज्य की किस्मत बदली जा सकती है।
वहीं दूसरी ओर, गुजरात, ओडिशा, झारखंड, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों का अधिशेष यह दिखाता है कि आर्थिक संसाधनों का उपयोग बेहतर तरीके से किया जा रहा है। विशेषकर झारखंड और ओडिशा जैसे खनिज संपन्न राज्यों ने संसाधनों को राजस्व में बदलने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं। पूर्वोत्तर के छोटे-छोटे राज्य भी अधिशेष की सूची में हैं, जो यह संकेत देता है कि केंद्र से प्राप्त सहायता और स्थानीय कर संग्रहण मिलकर उन्हें संतुलन में ला रहे हैं।
इसके विपरीत, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे बड़े और आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण राज्य गहरे घाटे में हैं। आंध्र प्रदेश का घाटा अकेले 43,000 करोड़ से अधिक है। पंजाब का संकट और गंभीर है क्योंकि वहाँ कर्ज और सब्सिडी आधारित अर्थव्यवस्था ने वित्तीय अनुशासन को लगभग ध्वस्त कर दिया है। पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्यों का केंद्र की मदद पर अत्यधिक निर्भर होना वित्तीय आत्मनिर्भरता की कमी को दर्शाता है।
हम आपको यह भी बता दें कि रिपोर्ट का एक बड़ा निष्कर्ष यह है कि हरियाणा, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने अपने कर और गैर-कर स्रोतों से 70-80% तक राजस्व जुटाने में सफलता पाई है। यह मॉडल दिखाता है कि यदि राज्यों की कर संरचना सुदृढ़ हो और प्रशासनिक क्षमता मजबूत हो, तो वे केंद्र पर निर्भर हुए बिना अपनी वित्तीय स्थिति सुधार सकते हैं। इसके उलट, बिहार, हिमाचल प्रदेश और अधिकांश पूर्वोत्तर राज्य अपनी कुल आय का 40% से भी कम स्वयं जुटा पाते हैं। शेष हिस्सा केंद्र सरकार के कर हिस्से और अनुदानों पर टिका होता है। यह असमानता भारत की संघीय ढाँचे की एक बड़ी चुनौती है।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि अधिशेष राज्यों में से अधिकांश में भाजपा की सरकारें हैं। यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या यह राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिणाम है या केवल संयोग। वहीं, जिन राज्यों में विपक्षी दलों की सरकारें हैं, वहाँ घाटे की स्थिति अधिक गहरी दिखाई देती है। इस तथ्य का राजनीतिक विमर्श में इस्तेमाल होना तय है।
आगे की राह देखें तो घाटे वाले राज्यों को खर्च पर नियंत्रण और आय में वृद्धि के उपाय करने होंगे। इसके अलावा, संपन्न राज्यों की तरह कर प्रशासन को डिजिटल और पारदर्शी बनाना आवश्यक है। साथ ही वित्तीय असमानता दूर करने के लिए केंद्र को केवल अनुदान नहीं, बल्कि राजस्व सृजन की क्षमता बढ़ाने में राज्यों की मदद करनी होगी। इसके अलावा, लोकलुभावन योजनाओं और सब्सिडी पर नियंत्रण रखकर शिक्षा, स्वास्थ्य और अवसंरचना पर खर्च को प्राथमिकता देनी होगी।
कुल मिलाकर देखें तो सीएजी की रिपोर्ट यह बताती है कि भारत की आर्थिक तस्वीर अब केवल महानगरों या पारंपरिक संपन्न राज्यों तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे कभी "पिछड़े" कहे जाने वाले प्रदेश आज अधिशेष की सूची में शामिल हैं, जबकि पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु जैसे कभी "आगे" माने जाने वाले राज्य वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं।
बहरहाल, यह बदलाव इस बात का प्रमाण है कि अच्छी नीतियाँ, कर क्षमता में सुधार और वित्तीय अनुशासन किसी भी राज्य की किस्मत बदल सकते हैं। लेकिन साथ ही यह भी चेतावनी है कि यदि खर्च और कर्ज़ के जाल में फँसकर योजनाएँ चलाई जाएँगी तो समृद्ध दिखने वाले राज्य भी जल्दी ही घाटे में जा सकते हैं। भारत के संघीय ढाँचे के लिए यह रिपोर्ट एक दर्पण है— जो दिखाती है कि आर्थिक आत्मनिर्भरता ही राज्यों की स्थिरता और प्रगति की कुंजी है।
-नीरज कुमार दुबे