By अंकित सिंह | Mar 25, 2021
उत्तराखंड में नए मुख्यमंत्री के शपथ के साथ ही राजनीतिक चर्चाएं भले ही थम गई हो लेकिन अगले साल होने वाले चुनाव को लेकर तरह-तरह की बातें जरूर की जा रही है। वर्तमान में देखे तो एक सवाल की चर्चा हर ओर है कि क्या उत्तराखंड में चुनाव तय समय से पहले हो सकते है। उत्तराखंड की राजनीतिक फिजाओं में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि भाजपा समय से पहले उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव करवा सकती है। इस बात को बल तब मिला जब नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को विधानसभा का सदस्य बनने के लिए उपचुनाव में उतारना जरूरी है लेकिन पार्टी की ओर से सल्ट विधानसभा उपचुनाव के लिए स्थानीय प्रत्याशी को उतारने की बातें कहीं जा रही है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर सदन का सदस्य नहीं होने के बावजूद तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने हैं तो ऐसे में उन्हें सर्वप्रथम सदन की सदस्यता के लिए विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा। लेकिन पार्टी ने एक सीट पर हो रहे उपचुनाव के लिए तीरथ सिंह रावत की जगह किसी और उम्मीदवार को उतारने का फैसला किया है।
तीरथ सिंह रावत को 6 महीने के भीतर ही सदन का सदस्य होना होगा। लेकिन पार्टी फिलहाल इस तरह नहीं सोच रही है। ऐसे में इस बात की संभावनाएं जताई जाने लगी है कि अक्टूबर-नवंबर तक उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव हो सकते है। इस बात को लेकर तीरथ सिंह रावत से भी सवाल पूछा गया हालांकि उन्होंने इस पर कोई बात कहने से इनकार कर दिया। भाजपा की तरफ से यह एक मास्टर स्ट्रोक माना जा सकता है। पार्टी को यह लगने लगा है कि राज्य में उसके खिलाफ नाराजगी बढ़ी है। ऐसे में समय से पहले अगर चुनाव होते हैं तो शायद इस नाराजगी को कम करने में भाजपा कामयाबी हासिल कर सकती है। इसके अलावा इस बात पर भी पार्टी जोड़ दे रही है कि अगर समय से पहले चुनाव होते है तो विपक्ष को भी तैयारियों के लिए ज्यादा वक्त नहीं मिल पाएगा। ऐसे में भगवा पार्टी को फायदे की उम्मीद ज्यादा रहेगी। हालांकि उत्तराखंड में कांग्रेस और विपक्ष के बड़े नेता हरीश रावत समय से पहले चुनाव की मंशा को शायद भांप चुके हैं। भाजपा की ओर से इस बात को लेकर कोई संकेत नहीं दिए जा रहे हैं लेकिन 2 मई के बाद पार्टी इस पर आगे बढ़ सकती है।
राजनीतिक पंडितों का भी मानना है कि भाजपा इस योजना पर काम कर रही है और अक्टूबर तक उत्तराखंड में चुनाव हो सकते है। 2017 में पार्टी ने यहां एक तरफा चुनाव जीता था। 2022 में इसे दोहरा पाना भाजपा के लिए चुनौती है। आनन-फानन में पार्टी को चुनाव से 1 साल पहले ही मुख्यमंत्री का चेहरा बदलना पड़ा। राजनीतिक पंडित यह भी मान रहे हैं कि जिस तरह तीरथ सिंह रावत एक के बाद एक बयान देकर सुर्खियां बटोर रहे हैं इससे इस बात का भी अंदाजा लगता है कि वह चर्चा में बने रहना चाहते है। भाजपा कैडर भी पूरी तरह से सक्रिय होने लगा है। उत्तराखंड में पहले विधानसभा चुनाव कराने को लेकर यह तर्क भी दिया जा रहा है कि राज्य में भाजपा किसी भी कीमत पर चुनाव जीतना चाहती है। अगर अगले साल चुनाव होते है तो उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड पर भी पार्टी को जोर लगाना पड़ेगा। ऐसे में दो मोर्चों पर फौज तैयार करना पार्टी के लिए मुश्किल हो सकती है।
पार्टी के नेताओं का भी मानना है कि उत्तराखंड में भाजपा बार-बार सत्ता परिवर्तन के मिथक को तोड़ कर बैक टू बैक कमल खिलाने में कामयाब रहेगी और अगर इस कामयाबी को इस बार दोहराना है तो पार्टी के ज्यादातर नेताओं का मानना है कि समय पूर्व चुनाव बेहद ही जरूरी है। हालांकि, इस पर भाजपा आलाकमान को फैसला लेगा है। लेकिन कहीं ना कहीं राज्य में नेता सक्रिय हो गए है। अगर उत्तराखंड में पहले चुनाव होते हैं और पार्टी जीतती है तो उत्तर प्रदेश के लिए इससे एक अलग मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल रहेगा। साथ-साथ जिस तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा से लोगों की नाराजगी बढ़ी है ऐसे में उत्तराखंड की जीत से उस नाराजगी को कम किया जा सकता है। विपक्ष की ओर भी देखे तो भाजपा को लगता है कि राज्य में कांग्रेस आंतरिक कलह से जूझ रही है। ऐसे में पहले चुनाव कराकर एक अच्छी बढ़त हासिल की जा सकती है। विपक्षी पार्टी अभी तक चुनाव को लेकर उस तरीके की रणनीति नहीं बना रही है। जबकि भाजपा चुनाव पहले कराए जाने की स्थिति में भी खुद को मजबूत पा रही है।