By डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा | Nov 19, 2025
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाल के कांतलपाड़ा गांव में जब 7 नवंबर, 1876 में वंदे मातरम् गीत की रचना की तब उनके मानस में शायद ही यह होगा कि यह गीत स्वतंत्रता आंदोलन में आजादी के दिवानों का प्रेरक होने के साथ ही आजादी के बाद भी देश की राष्ट्रीय एकता और मातृभूमि के प्रति प्रेम और श्रृ़द्धा का प्रतीक बन जाएगा। वंदे मातरम् में जिस तरह से मॉ भारती की स्तुति की गई है वह हमारी पहचान और गौरवपूर्ण सांस्कृतिक विरासत से रुबरु कराने का माध्यम बन गई। 1870 के भयंकार अकाल और अंग्रेजों द्वारा महारानी की शान में गौड़ सेव क्वीन के लिए बाध्य करने की प्रतिक्रिया के रुप में वंदे मातरम् की आधार भूमि तैयार हुई। कुछ समय बाद ही बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास आनंद मठ में वंदे मातरम् को प्रमुख स्थान दिया गया। आनंद मठ भी गुलामी से मुक्ति और अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना से ओतप्रोत उपन्यास होने से आजादी के आंदोलन ही नहीं आज भी प्रेरणा का स्रोत है। आनंद मठ में भवानन्द संन्यासी संन्यासी विद्रोहियों का नेतृत्व करते हुए यह गीत गाते हैं। वंदे मातरम् गीत की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि गुरुवर रविन्द्र नाथ टैगोर ने 1896 के कांग्रेस के सम्मेलन में इसे अपने स्वर देते हुए स्वयं गाया। उसके बाद तो वंदे मातरम् भारत की आत्मा ही बन गया। स्वतंत्रता आंदोलन के सेनानियों के लिए तो वंदे मातरम् जयघोष ही बन गया। 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध का मार्च गीत ही वंदे मातरम् रहा। हालांकि वंदे मातरम् को लेकर मुस्लिम लीग आदि ने सांप्रदायिकता, धर्म विशेष से प्रेरित और मां दुर्गा को लेकर विरोध व्यक्त किया गया और यही कारण रहा कि वंदे मातरम् गीत के आरंभिक दो छंदों को ही कांग्रेस द्वारा राष्ट्रगीत के रुप में स्वीकारा गया।
यह हमारे लिए गौरव की बात है कि आजादी के अमृत काल में हम वंदे मातरम् के 150 वें वर्ष को मनाने जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले दिनों मन की बात में देशवासियों से संवाद कायम करते हुए वंदे मातरम् के 150 वें वर्ष पर आयोजनों की श्रृंखला के माध्यम से आज की पीढ़ी को वंदे मातरम् के इतिहास और प्रेरकता से रुबरु कराने का संदेश दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वंदे मातरम् भले ही 19 वीं शताब्दी में लिखा गया था लेकिन इसकी भावना भारत के हजारों वर्ष पुरानी अमर चेतना से जुड़ी थी। वेदों में जिस भाव से माता भूमि पुत्रों अहम् पृथिव्या भाव से जुड़ा है। 1950 में वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत के रुप में अपनाया गया। 1950 में ही जदुनाथ भट्टाचार्य ने वंदे मातरम् को संगीत दिया। जनगणमन जहां राष्ट्रगान है और औपचारिक आयोजनों में राष्ट्रगान को गाया जाता है और उसके अपने प्रोटोकाल है वहीं राष्ट्रगीत किसी भी राष्ट्रीय अवसर पर गाया जा सकता है।
वंदे मातरम् केवल गीत या उद्घोष ना होकर 140 करोड़ देशवासियों को एकजुट करने, राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत करने और सनातन भारतीय संस्कृति से रुबरु कराने का माध्यम है। भारत भूमि की सनातन सांस्कृतिक विरासत से रुबरु कराने का माध्यम है वंदे मातरम्। गुलामी के दौर में वंदे मातरम् राष्ट्रीय भावना, देश प्रेम और स्वतंत्रता आंदोलन का उद्घोष रहा है तो आजादी के बाद यह देशवासियों की आत्मा बन चुका है। बहुत कम को जानकारी होगी कि दुनिया के 7000 इस तरह के गीतों में से दुनिया के अव्वल 10 गानों को चयन किया गया और उनमें से भी हमारा वंदे मातरम् राष्ट्रगीत सबसे लोकप्रिय गीतों में दूसरे स्थान पर है। यह कोई हमारी घोषणा ना होकर 2003 में बीबीसी वर्ल्ड द्वारा कराये गये वैश्विक सर्वे में उभर कर आया है। वंदे मातरम् की लोकप्रियता और सर्वग्राह्यता को इसी से आसानी से समझा जा सकता है। आज भी वंदे मातरम् के उद्घोष मात्र से ही देशवासियों में जिस तरह से हृदय से राष्ट्र प्रेम और राष्ट्रीयता की भावना जागृत होती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। भारतीय भूमि के कण कण को प्रकाशित करते इस गीत में भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य, सांस्कृतिक परंपरा और एकता की ड़ोर में पिरोये भारत की अभिव्यक्ति है। यही कारण है कि राष्ट्रीय गीत के एक एक शब्द का अपना सौन्दर्य है और गौरवशाली परंपरा को संजोये हुए हैं। हमें हमारी गौरवशाली परंपरा को संजोये रखने के लिए वंदे मातरम् के एक एक शब्द और उसके भावार्थ को समझना होगा। आजादी के दीवानें जहां वंदे मातरम् के उद्घोष के साथ देश की आजादी के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए वहीं अब आज हमें वंदे मातरम् के भावों को समझने, आत्मसात् करने और देशविरोधी ताकतों, सांप्रदायिक तत्वों को निरुत्साहित करते हुए भारत मां के गौरव में चार चांद लगाने के समुचित प्रयास करने होंगे। खासतौर से आज की पीढी को समझने और देशभक्ति से ओतप्रोत होने की इसलिए आवश्यकता है कि आज जिस तरह से वैश्विक संकट का दौर चल रहा है और भारत की उत्तरोत्तर प्रगति से अमेरिका सहित दुनिया के देश पचा नहीं पा रहे हैं उन हालातों में वंदे मातरम् की भावना प्रत्येक भारतवासी में होना जरुरी हो गया है। हमें देश की गरिमा और गौरव को बनाये रखना होगा। वंदे मातरम् 140 करोड़ देशवासियों वासियोें को माला के मणियों की तरह राष्ट्रप्रेम और एकता से पिरोये रखेगा।
- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा