वरद चतुर्थी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि

By प्रज्ञा पाण्डेय | Jan 25, 2023

आज वरद चतुर्थी व्रत है, पौष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वरद चतुर्थी मनाई जाती है। हिन्दू धर्म में वरद चतुर्थी का खास महत्व है, तो आइए हम आपको वरद चतुर्थी के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 


जाने वरद चतुर्थी व्रत के बारे में 

भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, विघ्नहर्ता यानी आपके सभी दु:खों को हरने वाले देवता। वरद चतुर्थी व्रत के दिन विधि-विधान से श्री गणेश की पूजा करने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं। विनायक चतुर्थी के दिन श्री गणेश की पूजा मध्याह्न समय में की जाती है। इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, धन, संपन्नता एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है। साथ ही श्री गणेश जी के निम्न महामंत्र का जाप करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस साल वरद चतुर्थी 25 जनवरी को पड़ रही है।  

 

वरद चतुर्थी पर ऐसे करें पूजा 

वरद चतुर्थी के दिन व्रतधारी ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें, लाल रंग के वस्त्र धारण करें। साथ ही पूजन के समय अपने शक्ति के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित शिव-गणेश प्रतिमा स्थापित करें। संकल्प के बाद भगवान शिव और श्री गणेश का पूजन करके आरती करें। उसके बाद अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र चावल आदि चढ़ाएं। गणेश मंत्र- 'ॐ गं गणपतयै नम:' बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। अब बूंदी के 21 लड्डुओं और शिव जी को मालपुए का भोग लगाएं। पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक गणेश स्त्रोत का पाठ करें।

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गणेश जी विधिवत पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा दें। अपनी शक्ति हो तो उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें।  शाम के समय गणेश चतुर्थी कथा, श्रद्धानुसार गणेश स्तुति, श्री गणेश सहस्रनामावली, गणेश शिव चालीसा, गणेश पुराण आदि का स्तवन करें। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्री गणेश की आरती करें। 

 

वरद चतुर्थी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम 'गणेश' रखा। पार्वतीजी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। 

 

माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं, किसी को भी अंदर नहीं आने देना। भोगवती में स्नान कर जब भोलेनाथ अंदर आने लगे तो बालस्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वे घर के अंदर चले गए।

 

शिवजी जब घर के अंदर गए तो वे बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वे नाराज हैं इसलिए उन्होंने 2 थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। शिव ने लगाया था हाथी के बच्चे का सिर- 2 थालियां लगीं देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब पार्वतीजी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया है। इतना सुनकर पार्वतीजी दु:खी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ से काटकर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं। 


वरद चतुर्थी का महत्व भी जानें

परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए वरद चतुर्थी का व्रत किया जाता है। इसके अलावा कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की चतुर्थी का व्रत किया जाता है। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होता है और अगले दिन सूर्योदय तक चलता है, हालांकि शाम को चंद्रमा के दर्शन और पूजा के बाद एक बार भोजन किया जाता है। भगवान गणेश हर तरह के कष्ट को हरने वाले और कामकाज में आने वाली रुकावटों को दूर करने वाले हैं इसलिए उन्हें विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। भगवान गणेश सुख प्रदान करने वाले हैं। इसलिए यह व्रत रखने से सभी कष्ट दूर होते हैं।


गणेश जी को ज़रूर चढ़ाएं ये चीज़ें 

वरद चतुर्थी के दिन गणेश जी की पूजा करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखें। पूजा के समय गणेश जी की प्रिय मोदक का भोग, दूसरा दूर्वा और तीसरा घी ये तीनों चीजें जरूर चढ़ाएं।


- प्रज्ञा पाण्डेय

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