By अभिनय आकाश | Feb 26, 2021
कई बार हम इतिहास पढ़ते हैं और पड़कर आगे चले जाते हैं। कभी-कभी हम इतिहास को भूल भी जाते हैं लेकिन अगर आप दिमाग पर जोर डालेंगे और इतिहास पर दोबारा से सोचने की कोशिश करेंगे तो आपको कई तथ्य ऐसे पता चलेंगे जिन्हें जानकर आप बहुत हैरान हो जाएंगे। विनायक दामोदर सावरकर क्रांतिकारी, चिंतक, लेखक, कवि, वक्ता और राजनेता। वे स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रमि पंक्ति के सेनानी और राष्ट्रवादी नेता थे। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्र समर का खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था। एक सामाजिक कार्यकर्ता जिसके सुझाव पर राष्ट्र ध्वज में लगा था धर्म चक्र। आज वीर सावरकर की पुण्यतिथि है। आपको ये किसी ने बताया ही नहीं की वीर सावरकर ही थे जिन्होंने भारतीय सेना को मजबूती देने का काम भी किया था।
1857 की लड़ाई को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कराया साबित
ये वीर सावरकर ही थे जिन्होंने देश को 1857 की क्रांति की याद फिर से दिलाई और इसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा, इसके 50 वर्ष 1907 में पूरे हुए थे तब वीर सावरकर लंदन में थे और वकालत की पढ़ाई कर रहे थे। लंदन के इंडिया हाउस में उन्होंने 1857 के शहीदों और क्रांतिकारियों को याद करते हुए कार्यक्रम भी किया। सावरकर ने ही 1857 की लड़ाई को भारत की आजादी की पहली लड़ाई करार दिया था। तमाम इतिहासकारों और विश्लेषकों में ये मतभेद रहा है कि 1857 की क्रांति को आजादी का पहला स्वतंत्रता संग्राम माना जाए या न माना जाए। 2007 में यूपीए की तत्तकालीन सरकार ने 1857 की 150वीं जयंती मनाई थी।
इंदिरा ने जारी किया डाक टिकट
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने एक ट्वीट किया था जिसमें उन्होंने इंदिरा गांघी का लिखा पत्र पोस्ट किया। इस लेटर में इंडिरा गांधी ने लिखा है कि साहस पूर्वक ब्रिटिश सरकार की आज्ञा का उल्लंघन करना हमारे स्वतंत्रता संग्राम में अलग महत्व रखता है।
विनायक दामोदर सावरकर जीवन परिचय
भारतीय सेना को मजबूती देने वाले सावरकर
भारत पूरी दुनिया में एक बहुत बड़ी सैन्य ताकत है तो इसके पीछे वीर सावरकर का भी बहुत बड़ा योगदान है। आज अगर भारत दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति है तो इसके पीछे वीर सावरकर की सोच है। वीर सवारकर ने सेना में हिन्दुओं की भर्ती नहीं करवाई होती को पाकिस्तान की फौज भारत के आधे से ज्यादा हिस्से पर कब्जा कर लेती। आप कह रहे होंगे की ये कैसी बात कर रहे हैं। लेकिन आपको बता दें कि आजादी से करीब 8 साल पहले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान इंग्लैंड घिर चुका था। उसे भारतीय नौजवानों की जरूरत थी। ताकि वो दूसरे देशों में जाकर युद्ध कर सके। कांग्रेस इसके सख्त खिलाफ थी। लेकिन वीर सावरकर ने इसे अवसर की तरह देखा। उस वक्त सेना में मुसलमानों का वर्चस्व था। डबकि हिंदू सैनिकों का अनुपात बेहद ही कम था। सावरकर ने देशभर की यात्रा की और हिंदू-सिखों से सेना में भर्ती होने की अपील की। सावरकर का मानना था कि इससे उन्हें हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी मिलेगा। सावरकर की अपील काम आयी। 1946 तक भारतीय सेना में हिंदुओं और सिखों का अनुपात बढ़ गया। इसका सबसे बड़ा फायदा भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद मिला। वीर सावरकर इस वर्चस्व को नहीं तोड़ते तो बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पास सैनिकों की संख्या ज्यादा होती। उस वक्त ज्यादातर मुस्लिम सैनिक पाकिस्तान चले गये और भारतीय सेना में बचे वो सैनिक जिन्होंने 1948 में पाकिस्तानी कबायलियों और घुसपैठिओं को धूल चटाई।
नेताजी ने आजाद हिंद रेडियो पर कही ये बात
25 जून 1944 को आजाद हिंद रेडियो से नेताजी ने कहा था कि जब राजनीतिक दूरदर्शिता की कमी के कारण गुमराह हो रही कांग्रस पार्टी के लगभग सभी नेता फौज के सिपाही को भाड़े का सिपाही कहकर ताना मार रहा है वैसे समय में ये जानकर बहुत खुशी हो रही है कि सावरकर निडर होकर भारत के युवाओं को फौज में शामिल होने के लिए लगातार भेज रहे हैं।