महाराष्ट्र में वोटिंग सम्पन्न, इन VIP सीटों में कौन किस पर पड़ेगा भारी?

By अभिनय आकाश | Oct 21, 2019

लोकसभा चुनाव के सियासी घमासान के बाद एक बार फिर दो राज्य में चुनावी जमीन तैयार हो रही है और एक बार फिर सिसायी जंग में हर महारथी अपना सबसे धारदार हथियार आजमाने की कोशिश में है... 288 विधानसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में सूबे का मुखिया चुनने के लिए वोटिंग जारी है। एक तरफ बीजेपी और शिवसेना दोबारा सत्ता में वापसी के दावे कर रही है तो विपक्षी कांग्रेस और एनसीपी को वनवास खत्म होने की उम्मीद है। सीएम देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में लड़ रही बीजेपी ने 164 सीटों पर अपने कैंडिडेट्स उतारे हैं। इनमें से कुछ प्रत्याशी गठबंधन के छोटे दलों के भी हैं, जिन्हें बीजेपी ने अपने सिंबल पर टिकट दिया है। शिवसेना को 124 सीटें मिली हैं। इसके अलावा विपक्षी गठबंधन की बात करें तो कांग्रेस 147 और एनसीपी 121 सीटों पर लड़ रही है। चुनाव के तारीखों के ऐलान के पहले से ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने खुद को पेश तो ऐसे ही किया है कि उनकी सत्ता में वापसी हो रही है वो भी पूरी धमक के साथ।

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दावे तो पवार परिवार की तीसरी पीढ़ी के नेता रोहित पवार भी काफी बड़े-बड़े कर रहे हैं। ऐसे में चर्चा ये भी चल पड़ी है कि आखिर किसके वादों का रंग कितना चोखा होगा और किसके वादों का रंग सिर्फ धोखा होगा। 2019 के आम चुनाव के मोदी मैजिक ने एक इतनी बड़ी लकीर खींच दी थी जिसके सामने सब अपने आप छोटे हो गए थे। ऐसे में लोकसभा चुनाव के करीब पांच महीने बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में मोदी लहर की बानगी एक बार फिर दिखेगी या इस चुनाव में विपक्ष को सत्ता का स्वाद मिलेगा। महाराष्ट्र के चुनाव में कुछ दिग्गज प्रत्याशी हैं, जिनकी किस्मत दांव पर है। 24 अक्टूबर को इन प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला होगा। आइए डालते हैं कुछ हाई प्रोफाइल सीटों पर नजर।

 

बारामती विधानसभा सीट में 52 साल से अजेय है पवार फैमली

 

 

पुणे जिले की बारामती विधानसभा सीट से राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के भतीजे अजीत पवार फिर किस्मत आजमा रहे हैं। अजीत पवार सातवीं बार चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त हैं। 52 साल पहले 1967 में शरद पवार ने पहली बार यहां से विधानसभा का चुनाव जीता था। उसके बाद से यह सीट लगातार इस परिवार के ही कब्जे में बनी हुई है। इस सीट से शरद पवार ने छह बार चुनाव जीता। उसके बाद उनके भतीजे अजीत पवार ने भी इस सीट पर जोरदार प्रदर्शन करते हुए लगातार छह बार इसे अपने अपने कब्जे में बनाए रखा। इस बार वे सातवीं बार इस चुनाव मैदान उतरे हैं और उन्हें अपनी जीत का पक्का भरोसा है। भाजपा ने अजीत पवार के खिलाफ जातीय गणित के आधार पर एक बाहरी उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है। इस कारण उन्होंने चंद दिनों पहले ही भाजपा में शामिल हुए धनगर नेता गोपीचंद पडालकर को उम्मीदवार बनाया है।

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ठाकरे परिवार की लेटेस्ट पीढ़ी की चुनावी एंट्री

 

आदित्य जिस मध्य मुंबई की वर्ली से सियासी सफर शुरु कर रहे हैं वो शिवसेना का गढ़ मानी जाती है। वर्ली शिवसेना की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीटों में है। 1990 से हुए छह विधानसभा चुनाव में इस सीट पर पांच बार शिवसेना की जीत हुई है। 1990 से 2009 तक शिवसेना के दत्ता नलावडे शिवसेना के चार बार विधायक रहे। 2009 में एनसीपी के सचिन अहीर विधायक चुने गए थे। 2014 में एक बार फिर शिवसेना के सुनील शिंदे ने जीत हासिल की थी। हाल में सचिन अहीर भी शिवसेना में शामिल हुए हैं। सचिन अहीर का वर्ली में अच्छा प्रभाव है। आदित्य ठाकरे के चाचा और एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने इस सीट पर अपना उम्मीदवार नहीं उतारा है। वर्ली विधानसभा सीट पर एनसीपी कांग्रेस गठबंधन के बहुजन रिपब्लिक सोशलिस्ट पार्टी के सुरेश माने मैदान में हैं।

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पवार परिवार की तीसरी पीढ़ी मैदान में

 

महाराष्ट्र के अहमदनगर लोकसभा के करजत जामखेड़ विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी हमेशा मजबूत रही है। लेकिन बीजेपी को चुनौती देने के लिए इस बार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने शरद पवार के पौत्र रोहित पवार को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है। रोहित को मौजूदा विधायक और जल संरक्षण मंत्री राम शिंदे के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतारा गया है। यहां पर भाजपा का 24 साल से कब्जा है। इस सीट पर जातीय समीकरण की भी अहम भूमिका होती है. यह मराठा बहुल क्षेत्र है और धनगर समाज भी एकजुट है। राम शिंदे धनगर समाज से आते हैं तो रोहित मराठा हैं।

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परली में भाई-बहन का मुकाबला

 

चुनाव कोई भी हो, परली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जबर्दस्त खींचतान से भरा और संघर्षपूर्ण रहता है। चुनावों में सफलता और नाकामी का गणित दो बहन-भाई और मुंडे परिवार के लोगों के साथ जोड़कर देखा जाता है। राज्य की ग्रामीण विकास तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे के आमने-सामने होने की वजह से इस विधानसभा सीट एक बेहद ही रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा जहां पंकजा मुंडे का मुकाबला उनके चचेरे भाई और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे से होगा। दोनों के बीच लड़ाई केवल विधानसभा सीट के लिए नहीं है, बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता (दिवंगत) गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत को लेकर भी है। 2009 तक, धनंजय अपने चाचा के निर्वाचन क्षेत्र के कार्यों की देखरेख कर रहे थे। लेकिन जब गोपीनाथ मुंडे ने संसद के लिए चुने जाने पर अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव के लिए नामित किया तब दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए। चाचा-भतीजे में दूरी इतनी बढ़ गई कि धनंजय ने राष्ट्रवादी पार्टी का दामन थाम लिया। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में धनंजय मुंडे अपनी बहन पंकजा के खिलाफ मैदान में उतरे, लेकिन पंकजा ने उन्हें 25,895 वोट से पराजित कर दिया। बाद में पंकजा को राज्य सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। उधर, राकांपा ने भी धनंजय मुंडे को विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाते हुए मजबूती प्रदान की।

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चव्हाण की राह कितनी आसान?

 

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण भोकर सीट से मैदान में उतरे हैं। अशोक चव्हाण की पत्नी अमिता अशोकराव चव्हाण यहां से विधायक हैं। साल 2014 के विधानसभा चुनाव में अमिता चव्हाण भारी मतों से जीती थीं। उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार डॉ माधवराव भुजंगराव को हराया था। अमिता चव्हाण को 100781 वोट मिले थे। भोकर सीट दरअसल नांदेड़ जिले और लोकसभा क्षेत्र में आती है। भोकर सीट पर कांग्रेस 8 बार चुनाव जीती है जबकि एनसीपी एक बार और निर्दलीय 2 बार जीते हैं। नांदेड़ लोकसभा सीट से ही जीतकर अशोक चव्हाण के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री शंकर राव चव्हाण संसद तक पहुंचे थे। अशोक चव्हाण नांदेड़ लोकसभा सीट से सांसद भी रहे हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर होने के बावजूद अशोक चव्हाण ने बीजेपी के दिगंबर बापूजी पाटिल को चुनाव हराया था। लेकिन साल 2019 के लोकसभा में अशोक चव्हाण हार गए थे।

 

नागपुर दक्षिण पश्चिम विधानसभा सीट

 

महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फडणवीस नागपुर साउथ वेस्ट सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। महाराष्ट्र की सत्ता के शिखर पर पहुंच चुके फडणवीस के सामने सत्ता बरकरार रखने के साथ ही शिखर पर खुद को बनाए रखने की भी चुनौती है। यहां अभी तक दो बार हुए विधानसभा चुनाव में देवेंद्र फडनवीस ने कब्जा जमाया है। साल 2009 विधानसभा चुनाव में देवेंद्र फडनवीस ने कांग्रेस के उम्मीदवार विकास पांडुरंग ठाकरे को हराया था। वहीं साल 2014 विधानसभा चुनाव के दौरान फडनवीस ने अपने जीत के अंतर में इजाफा करते हुए सीएम की कुर्सी तक का सफर तय किया था।